गांव जाना चाहता हूं

सुनील कुमार घुट रहा है दम मेरा शहर की इन फिजाओं में अब सुकून भरी छांव चाहता हूं इसलिए गांव जाना चाहता हूं। तरस गए देखे बिन अपनों को नैन कटते नहीं अब तो मेरे दिन-रैन सीने से लग कर अपनों के अपनत्व का भाव चाहता हूं इसलिए गांव जाना चाहता हूं। सूने-सूने लगते हैं … Continue reading गांव जाना चाहता हूं