
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) मध्य प्रदेश
वीवीआईपी महज एक पैसा कमाने का जरिया ही नजर आता है, परंतु इस कारण आमजन को अत्यंत परेशानी भोगनी पड़ती है। जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे दूर से ही दर्शन कर सकते हैं। उन्हें ईश्वर के दर्शन पाने के लिए भारी रकम चुकानी ही होगी। ऐसे में एक मध्यमवर्गीय यदि अपने घूमने के बजट से बढ़कर पूंजी खर्च कर देता है, तभी सुगमता वाले दर्शनों के लिए जा पाता है।
ऊपर से यह वीआईपी दर्शन भी एक धंधा बनता जा रहा है। बड़े-बड़े मंदिरों पर आसपास की दुकानों वालों ने कमीशन बेस पर आमदनी भी शुरू कर दी है। यदि आप वीआईपी कोटे से नहीं हैं तो भी वे आपको वीआईपी कोटे में दर्शन करवा देंगे—बस कुछ एक्स्ट्रा पैसे लेकर। इस प्रकार वह दर्शन तो कर लेता है, परंतु कहीं ना कहीं उसकी आस्था को पैसे से तोला जाता है। दर्शनों को पैसे से तोले जाने के कारण उसकी आस्था टूटती है, और हिंदुत्व के लिए यह एक शर्मनाक बात है। मंदिर हमारी आस्था के साथ हमारे भगवान के दर्शन के लिए बनाए गए हैं, ना कि किसी वीवीआईपी और आमजन में अंतर करने के लिए। इस अंतर के कारण ही वह दोबारा जाने की सोच ही छोड़ देता है।
सरकार को अब वीआईपी दर्शन की व्यवस्था को छोड़कर सभी के लिए समान सोचना चाहिए। यदि वे इतने ही वीआईपी होंगे तो सामान्यतः मंदिर में उनका स्वागत भाव होता ही है और अलग से उनके लिए स्वयं पुलिस निकास बना देती है तुरंत। इसीलिए पैसे देकर यह वीआईपी दर्शन का नाटक खत्म होना चाहिए। सरकार को इस बड़े टूरिज्म सेक्टर पर अब ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि आम जनता द्वारा ही सबसे ज्यादा चढ़ोतरी भगवान पर चढ़ाई जाती है।
देश का सबसे ज्यादा टूरिज्म मंदिरों के कारण ही संभव है। फिर भी आप कहीं भी किसी भी मंदिर चले जाएं—बस कुछ मंदिरों को छोड़कर—लगभग सभी मंदिरों में व्यवस्थाएं गड़बड़ ही नहीं, बदहाल हैं। अभी हाल में कई समाचारों में भीड़ के चलते लोगों का दम घुटने के कारण मौत की खबर भी सामने आई थी, जिसमें एक बच्ची और एक बुजुर्ग महिला ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
मंदिरों पर होने वाली अव्यवस्था के कारण इस भीड़ की मैं खुद साक्षी बनी हूं। हरिद्वार में मनसा देवी के मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़ होने पर लाइन में खड़े रहने पर हाल के पंखे भी चालू नहीं किए गए थे, और दूसरी तरफ वीआईपी आराम से सुखद दर्शन पा रहे थे। एक बार तो ऐसा लगा जैसे दम ही घुट जाएगा। यह क्या व्यवस्थाएं हैं? पैसा तो हम भी बराबर हर जगह टैक्स के रूप में दे ही रहे हैं। फिर भी यह वीआईपी का चार्ज लगाकर सरकार क्या साबित करना चाह रही है? यह हर उस मध्यमवर्गीय इंसान की मांग है जो अपने पैसे जोड़कर अपने ईष्ट के दर्शन हेतु तीर्थ करना चाहता है।
सरकार को इस टूरिज्म पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यही बिगड़ी हुई व्यवस्था के अंतर्गत तिरुपति जी में मिलावटी घी एवं लड्डू में मांस होने का भी दावा किया गया था। इसके अलावा दक्षिण भारत, उड़ीसा, केरल इत्यादि क्षेत्रों में जहां एक तरफ भव्य मंदिरों के कारण टूरिज्म पहुंचता है, वहीं यहां की सिस्टम व्यवस्था को देखकर कई घंटे की लाइन में खड़े रहना पड़ता है। कई जगह तो चार दिन में एक बार नंबर आता है। तब भी ढंग से दर्शन पाने के लिए भीड़ में धक्का-मुक्की के साथ कड़ी मशक्कत भी करनी पड़ती है।
वहीं वीआईपी लाइन में दर्शन के लिए कुछ पैसे ज्यादा देने से दर्शन आराम और सुगमता से हो जाते हैं। सोचने योग्य है कि क्या वे इतनी सारी भीड़ के बराबर पैसे देते हैं? क्या वीआईपी लोग मंदिर को करोड़ों का चंदा प्रदान करते हैं? शायद इसीलिए ही उनको मात्र कुछ पैसे के कारण सुगमता प्रदान की जाती है। इस स्थिति को देखा जाए तो मन में सवाल उठता है कि क्या आम जनता का कोई महत्व नहीं? क्या उनकी आस्था झूठी है? क्या आस्था से बड़ा है ये पैसा?
अन्य सभी परिस्थितियों को सोचते हुए इन बदहाल स्थितियों के कारण ही एक मध्यम वर्ग पुनः जाने में संकोच करता है। यहां तक कि विदेशों से आया टूरिज्म भी यहां की व्यवस्थाओं को देखकर कुछ खास खुश नहीं होता। वह भावना में बेहतर आ तो जाता है पर कड़ी परेशानियों के कारण पुनः आने का विचार वह भी त्याग देता है। वह फिर सुगम क्षेत्र में घूमने ज्यादा पसंद करता है, और इस अव्यवस्था की बुराई भी खुलकर करता है।
एक समय था जहां मंदिरों के ट्रस्ट द्वारा सभी प्रकार के कार्य संपन्न किए जाते थे। आज ये ट्रस्ट व्यवस्थाएं ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं। मंदिर की देखरेख करने वाले कार्यकर्ताओं की सैलरी भी नाममात्र की होती है। ऐसे में यह वीआईपी दर्शन पैसा कमाने का एक जरिया बन गया है। इसे तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि मंदिर के ट्रस्ट को आसपास के स्थान की देखरेख की जिम्मेदारी भी दे ताकि पहले की तरह मंदिर ट्रस्ट पैसे हजम करने की जगह आसपास के स्थान का टूरिज्म बढ़ाने के लिए व्यवस्थाओं का कार्य कर सके। कुछ कार्य ट्रस्ट द्वारा भी पूरे किए जाने चाहिए—सब कुछ सरकार पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। जैसे अत्यधिक भीड़ बढ़ने पर मंदिर के अंदर सुचारु व्यवस्था के साथ दर्शन कराना भी मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी बनती है।