
अंकित तिवारी
ऋषिकेश: दीपावली का उल्लासपूर्ण पर्व अब बीत चुका है, लेकिन इसके उजाले को अपने जीवन और पर्यावरण में बनाए रखने की ज़िम्मेदारी अब हम सबकी है। दीपों का यह त्योहार हमें हर वर्ष यह याद दिलाता है कि प्रकाश हमेशा अंधकार पर और अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय पाती है।
बीते दिनों दीपों से सजा हर घर, हर गली एक नई आशा का प्रतीक बनी। हालांकि, इस रोशनी के साथ हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्या हमारा उत्सव पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी था। जब हम इलेक्ट्रॉनिक दीपों और प्लास्टिक सजावट का उपयोग करते हैं, तो वह सुंदरता के साथ-साथ प्रदूषण और अपशिष्ट भी बढ़ाती है।
मिट्टी के दीपक — परंपरा और पर्यावरण का सुंदर संगम- मिट्टी के दीपक जलाने की प्राचीन परंपरा न केवल सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी श्रेष्ठ है। ये दीपक मिट्टी से बने होने के कारण स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाते हैं और प्रकृति को कोई हानि नहीं पहुँचाते। साथ ही, इनके निर्माण से स्थानीय कुम्हारों को रोजगार और सम्मान दोनों मिलता है।
अब हमारी ज़िम्मेदारी- दीपावली के बाद यह समय आत्मचिंतन का है—क्या हम आने वाले वर्षों में और अधिक सजग होकर इस पर्व को मना सकते हैं? यदि हम प्लास्टिक और कृत्रिम सजावट को त्यागकर प्राकृतिक विकल्प अपनाएँ, तो यह न केवल पर्यावरण का संरक्षण होगा, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान भी।
आइए, इस दीपावली के उजाले को आगे बढ़ाएँ—संकल्प लें कि अगली बार हम केवल मिट्टी के दीपकों से घर सजाएँगे, प्रदूषण मुक्त उत्सव मनाएँगे और अपने परिवेश को स्वच्छ बनाए रखेंगे। एक दीप से आरंभ हुआ प्रकाश अब हमारे सोच और कर्मों में भी उजाला करे—यही सच्ची दीपावली होगी।