शिक्षक समाज की धरोहर
सुनील कुमार माथुर
शिक्षक समाज की धरोहर है । चूंकि विधार्थियों को शिक्षा देने के साथ ही साथ अच्छे संस्कार देने में शिक्षक का बहुमूल्य योगदान रहता हैं । शिक्षक समाज के पथ प्रदर्शक व मजबूत आधार है । विधार्थियों के चरित्र निर्माण और उन्हें योग्य व जिम्मेदार नागरिक बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हैं । सुरक्षित व संस्कारवान युवापीढ़ी ही देश को तरक्की के रास्ते पर ले जातीं है ताकि देश में सद् भावना , देश प्रेम व भाईचारे की भावना का संचार हो ।
शिक्षक समाज की धरोहर है । विश्व में जितने भी महापुरुष , योद्धा व संत आदि हुए है उनके व्यक्तित्व निर्माण में उनके गुरूओं का सर्वाधिक योगदान रहा हैं । अतः शिक्षकों के प्रति आदर भाव रखना ही सही मायनों में शिक्षकों का सम्मान हैं । जिस तरह से एक शिल्पकार मूर्ति को गढने में सब कुछ झोंक देता हैं उसी तरह से गुरु भी बच्चों को योग्य नागरिक बनाने का कार्य करता हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि गुरु अच्छे शिष्य तैयार करने के लिए अपना जीवन तक लगा देते हैं । अच्छे व सम्पर्पित भाव से कार्य करने वालें शिक्षकों पर पूरा देश गर्व करता हैं । चूंकि वह विधार्थियों को शिक्षित कर हीरा तरासता हैं । गुरू हमें बेहतर जीवन जीने के काबिल बनाता हैं । गुरू हमें अनेकानेक बुराइयों से दूर रखते हुए सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करता हैं ।
शिक्षा संस्कारों की जननी है और शिक्षा प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है अपितु जीवन में व्यावहारिक ज्ञान कि शिक्षा का होना भी नितान्त आवश्यक है।
व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में मां का महत्वपूर्ण स्थान हैं मनुष्य अपने जीवन में दुःख के समय सबसे पहलें मां को ही याद करता हैं । आज मनुष्य भौतिक आवश्यकताओं की ओर अधिक ध्यान दे रहा हैं साथ ही भक्ति की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है । यदि मनुष्य अपनें जीवन में भक्ति का समावेश करे तो मनुष्य के जीवन के साथ – साथ पारिवारिक जीवन में भी एक बदलाव आ सकता हैं ।
मनुष्य पर जब दुःख पडता हैं तब मनुष्य का ध्यान ईश्वर की ओर खींचा चला जाता हैं । इसलिए मनुष्य को सुख-दुःख के समय ईश्वर की आराधना करनी चाहिए । शिक्षा हमें सिखाती है कि घर का कचरा अवश्य साफ कीजिए लेकिन साथ ही साथ समाज में व्याप्त अज्ञानता का कचरा भी दूर कीजिए । साथ ही साथ मन में जो अंहकार रूपी कचरा जमा हुआ है उसे भी दूर कीजिए । शिक्षा हमारा सबसे बडा आभूषण है।
शिक्षा संस्कारों की जननी है और शिक्षा प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है अपितु जीवन में व्यावहारिक ज्ञान कि शिक्षा का होना भी नितान्त आवश्यक है । किताबी ज्ञान हमें रोजगार दिला सकता हैं लेकिन लोगों के साथ कब कैसा व्यवहार करना चाहिए यह नहीं सिखाता है यह तो हमें व्यवहार से ही समाज में देखकर , बडे बुजुर्गों से सिखना चाहिए । तभी सफल जीवन हम जी सकतें है । जीवन जीना भी एक कला है और जिसने इस कला को सीख लिया समझों उसने जीवन को सही ढंग से निर्वाह करना सीख लिया हैं।
Very nice
True
Nice
True
Nice
True
True
Nice Article.
True
Nice
Nice article
True 👍