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उत्तराखंड में बसना चाहते थे टाटा, मुग्ध थे पहाड़ों के सौंदर्य पर

उत्तराखंड में बसना चाहते थे टाटा, मुग्ध थे पहाड़ों के सौंदर्य पर… साहित्य, कला, संगीत, योग तथा ध्यान में उनकी गहरी रुचि थी। एक बार जब मैंने उनसे पूछा कि इन सब के लिए वह समय निकाल लेते हैं, तो उनका जवाब था कि काम के बाद बचा समय इन्हीं सब में बिताता हूं। निशंक कहते हैं कि देश ने एक अमूल्य हीरा खोया है।

देहरादून। उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य पर पद्म विभूषण रतन टाटा मुग्ध थे। उनका उत्तराखंड से बेहद आत्मीय लगाव था और उनका यहां बसने का सपना था। यह कहना है पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का। निशंक कहते हैं कि बतौर मुख्यमंत्री मैंने राज्य स्थापना दिवस नौ नवंबर 2010 को रतन टाटा को आमंत्रित किया था। उन्होंने बहुत ही सहज भाव से निमंत्रण स्वीकार किया था और कार्यक्रम में शामिल हुए थे। नैनो कार की लॉन्चिंग से लेकर उसके उत्पादन तक की प्रक्रिया में उनका उत्तराखंड आना जाना लगा रहता था।

साहित्य, कला, संगीत, योग तथा ध्यान में उनकी गहरी रुचि थी। एक बार जब मैंने उनसे पूछा कि इन सब के लिए वह समय निकाल लेते हैं, तो उनका जवाब था कि काम के बाद बचा समय इन्हीं सब में बिताता हूं। निशंक कहते हैं कि देश ने एक अमूल्य हीरा खोया है। उनका हर गरीब को सक्षम बनाने का सपना था। देश सशक्त और समृद्ध बने इसके लिए जीवन भर संकल्पित रहे। देश उनके योगदान को कभी नहीं भुला सकता।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाट के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि टाटा ने देश की औद्योगिक प्रगति और सामाजिक के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उनका दृष्टिकोण, समर्पण और व्यावसायिक कुशलता न केवल टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक ले गई, बल्कि उन्होंने राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। सीएम ने कहा, टाटा ने रोजगार सृजन, समाज के सशक्तिकरण और नवाचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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उत्तराखंड में बसना चाहते थे टाटा, मुग्ध थे पहाड़ों के सौंदर्य पर... साहित्य, कला, संगीत, योग तथा ध्यान में उनकी गहरी रुचि थी। एक बार जब मैंने उनसे पूछा कि इन सब के लिए वह समय निकाल लेते हैं, तो उनका जवाब था कि काम के बाद बचा समय इन्हीं सब में बिताता हूं। निशंक कहते हैं कि देश ने एक अमूल्य हीरा खोया है।

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