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  • भारत में गरीबी के कारण : मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के साथ अंतर्संबंध

    भारत में गरीबी के कारण : मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के साथ अंतर्संबंध

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    भारत में गरीबी के कारण : मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के साथ अंतर्संबंध… भारत में गरीबी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकारी पहल, आर्थिक सुधार, शैक्षिक कार्यक्रम और समुदाय-संचालित परियोजनाओं को एकीकृत करना शामिल है। प्राथमिक रणनीतियों में से एक में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना शामिल है. #राज शेखर भट्ट

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    हाल के अनुमानों के अनुसार, भारत की लगभग 21.9% आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है, जो देश की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का एक स्पष्ट संकेतक है। यह आंकड़ा उन लाखों व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उच्च गरीबी दर की निरंतरता को आर्थिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारकों की जटिल परस्पर क्रिया के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। समस्या के व्यापक समाधान के लिए इन अंतर्निहित कारणों को समझना महत्वपूर्ण है।

    भारत में गरीबी में आर्थिक असमानताओं का महत्वपूर्ण योगदान है। अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है, धन का एक बड़ा हिस्सा कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो गया है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच के कारण यह आर्थिक असमानता और बढ़ गई है, जो ऊपर की ओर सामाजिक गतिशीलता में बाधा उत्पन्न करती है। उचित शिक्षा के बिना, व्यक्ति अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों तक ही सीमित रह जाते हैं, जिससे गरीबी का चक्र कायम रहता है। इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं का मतलब है कि बहुत से लोग बीमारियों का इलाज नहीं करा सकते हैं, जिससे उनके वित्तीय संसाधनों पर और दबाव पड़ता है।

    सामाजिक असमानताएँ, विशेषकर जाति व्यवस्था में निहित असमानताएँ, हानिकारक भूमिका निभाती रहती हैं। जाति के आधार पर भेदभाव से सामाजिक बहिष्कार होता है और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं। ग्रामीण-शहरी विभाजन भी गरीबी में योगदान देता है, ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर बुनियादी ढांचे, नौकरी के अवसरों और आवश्यक सेवाओं की कमी होती है। यह असमानता कई लोगों को बेहतर संभावनाओं की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर करती है, जहां उन्हें उच्च जीवन लागत और अपर्याप्त रोजगार के अवसरों वाले भीड़भाड़ वाले शहरों का सामना करना पड़ता है।

    ऐतिहासिक और प्रणालीगत कारक गरीबी को और बढ़ाते हैं। जाति-आधारित भेदभाव, हालांकि आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया गया है, फिर भी संसाधनों और अवसरों तक पहुंच को सीमित करते हुए विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। ग्रामीण-शहरी विभाजन स्पष्ट बना हुआ है, ग्रामीण क्षेत्र विकास में पिछड़े हुए हैं। इसके अलावा, सरकारी नीतियां अक्सर अपर्याप्त या खराब तरीके से लागू की गई हैं, जिससे गरीबी के मूल कारणों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रही है। भ्रष्टाचार, नौकरशाही की अक्षमताओं और लक्षित समर्थन की कमी के कारण गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से की गई पहल अक्सर असफल हो जाती हैं।



    इन बहुमुखी कारणों को व्यापक रूप से समझने से, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में गरीबी एक लगातार मुद्दा क्यों बनी हुई है। आर्थिक असमानताओं को दूर करना, शैक्षिक और स्वास्थ्य देखभाल पहुंच को बढ़ाना, सामाजिक असमानताओं का मुकाबला करना और प्रभावी सरकारी नीतियों को लागू करना गरीबी को कम करने और लाखों भारतीयों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं।



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    गरीबी उन्मूलन के उपाय और इसका मुद्रास्फीति एवं बेरोजगारी से संबंध

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    भारत में गरीबी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकारी पहल, आर्थिक सुधार, शैक्षिक कार्यक्रम और समुदाय-संचालित परियोजनाओं को एकीकृत करना शामिल है। प्राथमिक रणनीतियों में से एक में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना शामिल है, जो ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देता है। ऐसी पहल न केवल तत्काल वित्तीय राहत प्रदान करती हैं बल्कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास में भी योगदान देती हैं।



    समावेशी विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आर्थिक सुधार महत्वपूर्ण हैं। छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) को बढ़ावा देने वाली नीतियां नौकरियां पैदा करने और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को उत्तेजित करके गरीबी में कमी लाने पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। अविकसित क्षेत्रों में निवेश करने वाले व्यवसायों के लिए कर प्रोत्साहन लागू करना और नियामक ढांचे को सरल बनाना निवेश को आकर्षित कर सकता है और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा दे सकता है।



    गरीबी के खिलाफ लड़ाई में शिक्षा आधारशिला बनी हुई है। सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना जैसी पहलों का उद्देश्य स्कूल में नामांकन और प्रतिधारण दर को बढ़ाना है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि गरीब पृष्ठभूमि के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। बाजार की मांग के अनुरूप व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम युवाओं को ऐसे कौशल से लैस कर सकते हैं जो रोजगार क्षमता को बढ़ाते हैं, जिससे बेरोजगारी दर में कमी आती है।



    समुदाय-संचालित परियोजनाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। माइक्रोफाइनेंस संस्थान और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) ऋण तक पहुंच प्रदान करके और उद्यमशीलता गतिविधियों को प्रोत्साहित करके व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाते हैं। ये जमीनी स्तर के आंदोलन न केवल व्यक्तिगत परिवारों का उत्थान करते हैं बल्कि आर्थिक झटकों के खिलाफ सामुदायिक लचीलेपन को भी मजबूत करते हैं।



    गरीबी, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच परस्पर संबंध जटिल है। उच्च मुद्रास्फीति क्रय शक्ति को नष्ट कर देती है, जिसका गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने वाली प्रभावी मौद्रिक नीतियां मजदूरी और बचत के मूल्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, बेरोजगारी आय के अवसरों को सीमित करके गरीबी को बढ़ाती है। बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं, व्यावसायिक प्रशिक्षण और निजी क्षेत्र के रोजगार के लिए प्रोत्साहन के माध्यम से रोजगार सृजन इस मुद्दे को कम कर सकता है।

    बेरोजगारी और अपराध दर के बीच संबंध को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि उच्च बेरोजगारी दर अक्सर बढ़े हुए अपराध से जुड़ी होती है, क्योंकि आर्थिक हताशा व्यक्तियों को गैरकानूनी गतिविधियों की ओर ले जाती है। व्यापक रोजगार सृजन रणनीतियों के माध्यम से बेरोजगारी को संबोधित करने से सामाजिक स्थिरता बढ़ सकती है और अपराध दर में कमी आ सकती है।



    निष्कर्षतः, भारत में गरीबी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है जिसमें सरकारी नीतियां, आर्थिक सुधार, शिक्षा और सामुदायिक पहल शामिल हों। गरीबी, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच सूक्ष्म संबंधों को समझना दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने वाले स्थायी समाधान तैयार करने की कुंजी है।

    कविता : अम्बर


    भारत में गरीबी के कारण : मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के साथ अंतर्संबंध... भारत में गरीबी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकारी पहल, आर्थिक सुधार, शैक्षिक कार्यक्रम और समुदाय-संचालित परियोजनाओं को एकीकृत करना शामिल है। प्राथमिक रणनीतियों में से एक में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना शामिल है. #राज शेखर भट्ट

  • ओल्ड पेंशन स्कीम व समायोजित शिक्षक

    ओल्ड पेंशन स्कीम व समायोजित शिक्षक

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    ओल्ड पेंशन स्कीम व समायोजित शिक्षक, एक ओर सरकार सामाजिक सुरक्षा के नाम घर बैठे लोगों को सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बिना कोई काम किये पेंशन दे रही है, वहीं दूसरी ओर बच्चों का भविष्य संवारने वाले शिक्षकों को पेंशन से वंचित कर रहीं हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

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    सेवानिवृत हर सरकारी कर्मचारी पेंशन का हकदार हैं और उसे सरकारी नियमानुसार सेवानिवृति पर पेंशन दी जाती है। चूंकि पेंशन कर्मचारी की खुशहाली का जीवन बीमा हैं। उसके बुढापे की लाठी हैं। इतना ही नहीं सेवानिवृत कर्मचारी को आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है़ और कर्मचारी की मृत्यु पर आश्रित को पेंशन मिलती हैं।

    मगर राजस्थान में सरकार ने 80 प्रतिशत अनुदानित शिक्षण संस्था़ओं में कार्यरत शिक्षकों को 01 जुलाई 2011 से सरकारी स्कूलों में ( ग्रामीण स्कूलों में ) समायोजन के नाम पर लगाया और सेवाकाल के दौरान 9 – 18 – 27 का लाभ भी दिया और सर्विस बुक भी पहले वाली को लगातार जारी रखा, लेकिन सेवानिवृति के बाद उन शिक्षको को अन्य लाभों से वंचित कर दिया जिसमे पेंशन भी शामिल हैं।

    राजस्थान सरकार ने समायोजन के दौरान इन शिक्षकों से एक शपथ पत्र भरवा लिया कि वे ग्रामीण इलाकों में सरकारी नौकरी करते पुराने कोई लाभ की मांग नहीं करेगे। उक्त शर्त तर्कसंगत नहीं है। चूंकि सर्विस बुक को लगातार जारी रखा, 9-18 का लाभ भी दिया। स्कूल अनुदानित शिक्षण संस्थान थी फिर सेवाकाल के बीच में कर्मचारियों के विरूध्द यह कैसी शर्त।

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    एक ओर सरकार अपने आपकों लोक कल्याणकारी सरकार कहती है और समानता की बात करती है और साथ ही साथ कर्मचारियों को पेंशन से भी वंचित कर रही हैं। ये कर्मचारी 01 जुलाई 2011 से सरकारी कर्मचारी न होकर अपनी प्रथम नियुक्ति से शिक्षक है। इसलिए राजस्थान सरकार समायोजित शिक्षकों को पेंशन देंने के लिए गणना 1 जुलाई 2011 से न कर उनकी प्रथम नियुक्ति से गणना कर पेंशन का लाभ दें।



    चूकि इन कर्मचारियों ने अपने जीवन का अमूल्य समय करीबन 25 से 30 साल तो अनुदानित शिक्षण संस्थाओं में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। अब उन्हें पेंशन से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता हैं। राज्य सरकार बार बार यह दौहरा रही हैं कि हमने ओल्ड पेंशन स्कीम ( ओ पी एस ) योजना शुरू कर दी है लेकिन समायोजित शिक्षकों को ओल्ड पेंशन स्कीम का लाभ देने के बारे में मौन धारण कर रखा हैं।



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    जिससे इस मंहगाई के दौर में उन्हें अपना व अपने परिवारजनों का जीवन व्यापन करना मुश्किल हो गया है। अतः सरकार तत्काल उन्हें उनकी प्रथम नियुक्ति तिथि से पेंशन दें व अनावश्यक रूप से जोडी गई शर्त वापस लें। जब ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की हैं तो फिर समायोजित शिक्षकों को इस लाभ से वंचित करना न्याय संगत नहीं कहा जा सकता है।



    एक ओर सरकार सामाजिक सुरक्षा के नाम घर बैठे लोगों को सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बिना कोई काम किये पेंशन दे रही है, वहीं दूसरी ओर बच्चों का भविष्य संवारने वाले शिक्षकों को पेंशन से वंचित कर रहीं हैं। यह कैसी दौहरी मानसिकता।


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    ओल्ड पेंशन स्कीम व समायोजित शिक्षक, एक ओर सरकार सामाजिक सुरक्षा के नाम घर बैठे लोगों को सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बिना कोई काम किये पेंशन दे रही है, वहीं दूसरी ओर बच्चों का भविष्य संवारने वाले शिक्षकों को पेंशन से वंचित कर रहीं हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

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