
सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों में ‘सौर संप्रदाय’ (सूर्य संप्रदाय) का महत्वपूर्ण स्थान है, जहाँ भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देवता मानकर उनकी उपासना की जाती है। यह संस्कृति मूलतः जल, अग्नि और प्रकृति की पूजा पर आधारित है, जो इसे अत्यंत प्राचीन और जीवनदायी स्वरूप प्रदान करती है। पुराणों और विशेष रूप से ऋग्वेद में ‘शाकद्वीप’ का उल्लेख मिलता है, जिसे सात देशों एवं पर्वतों से युक्त बताया गया है। यह शाकद्वीप प्राचीन काल में सूर्य की उपासना और सौर संप्रदाय का केंद्रीय स्थल माना जाता था, जहाँ से यह उपासना पद्धति सम्पूर्ण भारत में फैल गई। सूर्योपासना की यह परंपरा सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग तक निरंतर चली आ रही है। इसका प्रमाण वेदों, पुराणों, संहिताओं और स्मृति ग्रंथों में मिलता है।
ऋषि भारद्वाज, भगवान राम, कृष्ण, साम्ब, वसु, वृहद्रथ, जरासंध, सहदेव, शर्याति, सुकन्या, इक्ष्वाकु, और करूष जैसे अनेक महान विभूतियों द्वारा सूर्योपासना किए जाने का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। सौर संप्रदाय के विकास में शाकद्वीपीय ब्राह्मण और मग (मग ब्राह्मण) समुदाय का विशेष योगदान रहा। मगों को प्रकृति के गहन उपासक और आयुर्वेद के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। उनकी पूजन पद्धति में सूर्य और चंद्र के साथ-साथ पंचतत्व—जल, थल (पृथ्वी), और नभ (आकाश)—की उपासना शामिल है। इस परंपरा में वृक्षों में पीपल, बरगद, आंवला, शाक, केला, तुलसी, और दूब को पवित्र मानकर पूजा की जाती है।
नदियों में गंगा, पुनपुन, फल्गु, नर्मदा, गोदावरी और क्षिप्रा आदि को सूर्य की शक्ति का स्रोत मानकर वंदना की जाती है। भारत के पूर्वी क्षेत्रों—बिहार, झारखण्ड और ओडिशा—में सूर्योपासना के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं, जिनमें छठ पूजा प्रमुख उदाहरण है। मगध क्षेत्र में देव, उमगा, गया, अंगारी, कोणार्क (ओडिशा), उलार, पंडारक और हंडिया प्रसिद्ध सूर्योपासना स्थल हैं। सौर संप्रदाय में भगवान सूर्य के 12 अवतारों (द्वादश आदित्य) की उपासना की जाती है। ये विश्व के विभिन्न स्थलों पर भिन्न रूपों में पूजे जाते हैं, जो सूर्य की ऊर्जा के विविध पहलुओं को दर्शाते हैं।
द्वादश आदित्य- पुराणों के अनुसार, महर्षि कश्यप और अदिति से उत्पन्न 12 पुत्रों को द्वादश आदित्य कहा जाता है। उनके प्रमुख स्वरूप इस प्रकार हैं:
- इंद्र – देवाधिपति, इंद्रियों पर नियंत्रण, शत्रुओं का दमन।
- धाता – सृष्टि कर्ता, सामाजिक नियमों का पालन।
- पर्जन्य – मेघों के नियंत्रक, वर्षा के देवता।
- त्वष्टा – वनस्पति, औषधियों और वास्तु के देवता।
- पूषा – अन्न और धान्य में निवास, पोषण के प्रदाता।
- अर्यमा – वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार।
- भग – चेतना, ऊर्जा और काम शक्ति के प्रदाता।
- विवस्वान – अग्नि देव, उष्मा और पाचन शक्ति के प्रतीक।
- विष्णु – देवताओं के शत्रुसंहारक और मुक्तिदाता।
- अंशुमान – वायु रूप में तेज और सजगता के प्रदाता।
- वरुण – जल के देवता, सृष्टि नियंत्रक।
- मित्र – मित्रता और सद्भाव के देवता।
द्वादश आदित्य किसी विशिष्ट मंदिर के बजाय काशी (वाराणसी) में विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं, जैसे लोलार्कादित्य (लोलार्क कुंड), सांबादित्य (सूर्य कुंड), उत्तरार्कादित्य, केशवादित्य, खखोलादित्य आदि। वृंदावन में भी द्वादश आदित्य टीला के रूप में प्रसिद्ध है।
प्रमुख सूर्य मंदिर
- कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा – 13वीं शताब्दी, गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा निर्मित, विशाल रथ आकार, 1984 में यूनेस्को विश्व धरोहर।
- देवार्क मंदिर, औरंगाबाद, बिहार – छठ पूजा के लिए प्रमुख।
- रांची सूर्य मंदिर, बुंडू, झारखण्ड – मकर संक्रांति और छठ के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़।
- कन्दाहा सूर्य मंदिर, सहरसा, बिहार – सात घोड़ों के रथ पर सूर्य प्रतिमा।
- उलार सूर्य मंदिर, पटना, बिहार – प्राचीन सूर्य उपासना स्थल।
- मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, गुजरात – 11वीं शताब्दी, चालुक्य वंश, सूर्य कुंड प्रसिद्ध।
- मार्तंड सूर्य मंदिर, जम्मू और कश्मीर – 8वीं शताब्दी, अब भग्नावशेष।
- झालरापाटन सूर्य मंदिर, राजस्थान – 10वीं शताब्दी।
- ओसियां सूर्य मंदिर, जोधपुर, राजस्थान।
विश्व भर में सूर्योपासना के प्रमाण भी मिलते हैं: चीन, मिस्र और दक्षिण अमेरिका (माया सभ्यता) में। सौर संप्रदाय केवल पूजा पद्धति नहीं, बल्कि यह प्रकृति, स्वास्थ्य और जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का संगम है। सनातन धर्म में सूर्य को जगत की आत्मा और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। सूर्योपासना ने भारतीय उपमहाद्वीप की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को युगों-युगों से प्रकाशित किया है।
सत्येन्द्र कुमार पाठक, करपी, अरवल, बिहार – 804419 मोबाइल: 9472987491