धर्म-संस्कृति

लव कुश की जन्मभूमि है सीतामड़ई

सत्येन्द्र कुमार पाठक

नवादा जिला मुख्यालय के दक्षिण-पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर रजौली अनुमंडल के मेसकौर प्रखण्ड का सीतामढ़ी स्थित सीतामड़ई सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है। मेसकौर प्रखण्ड का क्षेत्रफल 122 वर्गकीमि में 1528 घरों में 2011 जनगणना के अनुसार 44358 लोग 60 गांवों में निवास करते है। रासलपुरा गाँव। का क्षेत्रफल 227 हेक्टेयर में 92 घरों में 613 निवासी की उपासना केंद्र सीतामढ़ी में अवस्थित 16 फीट लम्बी और 11 फीट चौडी सीता मड़ई व सीता सीता गुफा है। एकसमुद्र तल से 80 मीटर व 282 फिट उचाई पर धरवार हिल्स के पठार पर भगवान राम के सैनिकों एवं विश्वकर्मा द्वारा धरवार वन के वाल्मिकी तपस्वी स्थल पर माता सीता की निर्वासन स्थली एवं लॉव कुश की जन्म स्थली गोलनुमा चट्टान को काटकर कंदरा द्विप्रकोष्ट का सीतामड़ई का निर्माण गया था।

सीतामड़ई गुफा पत्थरों पर पॉलीश की गयी है। पॉलीश के आधार पर गुफा को मौर्य काल में विकसित था। सीतामड़ई गुफा का संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए सेन वंशीय राजा आदित्य सेन द्वारा मठ का निर्माण किया गया था। माणिक सम्प्रदाय के उपासकों का स्थल था। निर्वासन काल में सीता का निवास स्थल हैं। सीतामड़ई गुफा के प्रथम प्रकोष्ठ के बाद द्वितीय व अंतिम प्रकोष्ठ के चबूतरे पर माता सीता के साथ लव और कुश की पाषाण युक्त मूर्ति स्थापित है। गुफा के बाहर की ओर एक चट्टान दो भागों में विभाजित सीता जी के धरती में समाने की घटना कहा गया है। लव-कुश की जन्मभूमि एवं बालपन की कर्मभूमि है। सीतामड़ई के मैदानी भाग में कबीर पंथ के उपासक,

रैदास पंथ का रविमन्दिर, विश्वकर्मा पंथ का विश्वकर्मा मंदिर,वाल्मीकि पंथ का वाल्मीकि मंदिर, शबरी मंदिर,शिवमंदिर, कृष्ण मंदिर हनुमान मंदिर विभिन्न जातियों का आराध्य मंदिर है। यहां की मंदिरों में सामाजिक, सांस्कृतिक सौहार्द के रूप में प्रतिवर्ष अगहन मास की शुक्ल पक्ष में उत्सव मनाते है। खरवार एवं लोहरा जानजाति का उपासना स्थल था। सीतामड़ई मंदिर का निर्माण 1957 में किया गया। सीतामड़ई मंदिर एवं क्षेत्र धार्मिक न्यास परिषद के अधीन है। सीतामढ़ी से 2 किमी पर अवस्थित दलहा व दाहा, ढहा झील के किनारे पीपल वृक्ष का पाषाण युक्त स्तम्भ भगवान राम का अश्वमेघ यज्ञ का अश्व को लव और कुश द्वारा बंधा गया था। पाषाण युक्त स्तम्भ के तट पर भगवान राम के सैनिक अश्वमेघ घोड़े को लव कुश से मुक्त हेतु युद्ध में सैनिक ढेड़ होने के कारण झील स्थल को ढेड़ व परास्त हो गया था। ढहा झील के किनारे अनेक पाषाण बिखरे पड़े है।

वाल्मीकि आश्रम, श्रृंगी आश्रम, लोमश ऋषि आश्रम ,था। कीकट प्रदेश का साधना स्थल, मगध साम्राज्य का राजा वृहद्रथ वंशीय जरासंध, सहदेव ,दृहसेन एवं रिपुंजय ने सीतामड़ई के क्षेत्रों का विकास किया गया। इक्ष्वाकु वंशीय एवं कुशवंशीय वृहद्वल, प्रद्योत वंशीय नंदी, मौर्य काल, गुप्तकाल, पालकाल एवं सेन काल की कीर्ति एवं सांस्कृतिक विरासत सीतामढ़ी की पठार में विखरी पड़ी है। नरहट परगना के तहत 1819 ई. में सीतामढ़ी का विकास हुआ। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर 1906 एवं 1957, हैमिल्टन बुकानन की डायरी 1840 ई., अब्राहम ग्रियर्सन की नोट्स ऑफ गया, कननिघम रिपोर्ट आर्कियोलॉजिकल सर्वे , 1581 ई. में राजा टोडरमल ने सीतामढ़ी का उल्लेख किया है।

सीतामढ़ी परिभ्रमण 8 दिसंबर 2024 को विश्व हिंदी परिषद के आजीवन सदस्य एवं जीवन धारा नमामि गंगे के राष्ट्रीय सचिव साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने सीतामढ़ी क्षेत्रों में फैले सांस्कृतिक विरासत, माता सीता का निर्वासन स्थल, लवकुश की जन्म स्थली, बालपन की कर्म स्थली, विश्वामित्र की तपस्थली आदि महत्वपूर्ण स्थान का परिभ्रमण किया। सीतामढ़ी मंदिर के पुजारी सीताराम पाठक द्वारा सीतामढ़ी की की। चर्चा की। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक के साथ मुजफरपुर अवधदुत डिस्ट्रिक्ट व्यूरो चीफ एवं जिला आचार्यकुल मुजफरपुर की संयोजिका व स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, हरियाणा के साहित्यकार डॉ. त्रिलोक चंद फतेहपुरी, सुप्रीम कोर्ट दिल्ली के अधिवक्ता एवं राष्ट्रीय विधिक शिक्ष के प्रवर्तक समर बहादुर सरोज, विधान सभा बिहार के निदेशक पी के सिंह, अशोक स्मृति संस्थान / साहित्य प्रेरणा मंच हिसुआ, नवादा के अध्यक्ष ओंकार कश्यप
शामिल हैं।


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