
जहानाबाद। विश्व नदी दिवस के अवसर पर नदियों के संरक्षण के महत्व को उजागर करते हुए, जीवनधारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह जी 5 के सदस्य, साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि “नदी मानव संस्कृति और सभ्यता की अमूल्य विरासत है।” पाठक ने भारतीय संस्कृति की पहचान मानी जाने वाली पवित्र नदियों—गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सोन, फल्गु, कावेरी, गोदावरी, क्षिप्रा, सिंधु, गंडक, बागमती, पुनपुन—को इसका साक्षात् प्रमाण बताया।
उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज नदियाँ अतिक्रमण और प्रदूषण की चपेट में हैं। यदि प्रत्येक नागरिक ने नदियों को बचाने का संकल्प नहीं लिया, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। स्वच्छ जल और पर्यावरण के अभाव में इंसान और जीव-जंतु, दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। विश्व नदी दिवस हर साल सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है। यह एक वार्षिक वैश्विक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नदियों के महत्व को रेखांकित करना और दुनिया भर में उनके बेहतर संरक्षण के लिए जन जागरूकता और नेतृत्व को बढ़ावा देना है।
इस दिवस की स्थापना कनाडाई संरक्षणवादी मार्क एंजेलो ने की थी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रयास की प्रेरणा कनाडा में 1980 में शुरू हुए ‘बीसी नदी दिवस’ की सफलता से मिली थी। 2005 में, संयुक्त राष्ट्र के “जीवन के लिए जल दशक” की शुरुआत के उपलक्ष्य में, मार्क एंजेलो के प्रस्ताव पर पहला विश्व नदी दिवस आयोजित किया गया। पहले आयोजन के बाद से यह पहल एक वैश्विक आंदोलन बन गई है, जिसमें अब दुनिया भर के लाखों लोग शामिल हो रहे हैं। विश्व नदी दिवस प्रत्येक वर्ष सितंबर माह के चौथे रविवार को मनाया जाता है। विश्व नदी दिवस 28 सितंबर 2025 को मनाया जाता है।
विश्व नदी दिवस पर विभिन्न देशों में नदियों के महत्व पर जोर देते हुए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं:
- यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में, स्वस्थ जलमार्गों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए मछली की बाधाओं को हटाने और नदी के पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने के लिए गतिविधियाँ होती हैं।
- बांग्लादेश में शैक्षिक कार्यक्रम, सामुदायिक सफाई और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जो दैनिक जीवन और पर्यावरण में नदियों के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
- भारत के धर्मशाला में, स्वयंसेवक और संगठन “जीवन के जलमार्ग” थीम के साथ भागसू नदी के किनारे एकत्र होते हैं, जो नदी संरक्षण के प्रति सामुदायिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
पाठक ने विशेष रूप से बिहार में बहने वाली गंगा, गंडक, बागमती, कोशी, फल्गु, पुनपुन, बूढ़ी गंडक, मोरहर जैसी नदियों का उल्लेख किया। उन्होंने आगाह किया कि जहाँ वैदिक नदी हिरण्यबहु विलुप्त हो चुकी है, वहीं दरधा जैसी कई अन्य नदियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुँच रही हैं। यह स्थिति नदियों के प्रति तत्काल और गंभीर ध्यान देने की मांग करती है। नदियाँ केवल प्राकृतिक संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये मानव सभ्यता की धमनियाँ हैं। उनके संरक्षण के लिए अब सामूहिक और सक्रिय कदम उठाना समय की मांग है।