
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
किसी के मुख से सुनी बात के आधार पर अपने रिश्तों और मधुर संबंधों को खराब मत कीजिए, चूंकि रिश्ते अपने हैं दूसरों के नहीं। इन्हें जितना संवारा जाता हैं ये उतने ही प्रगाढ़ होते चले जाते हैं बस इन्हें कब, कहां व कैसे संवारना हैं। यह कला आपकों आनी चाहिए। रिश्तों को संवारने, प्रगाढ़ बनाने व हर वक्त मजबूती रूपी धैर्य, सहनशीलता, त्याग जैसा खाद, पानी व धूप देनी पड़ती है अन्यथा आपके जरा सा तेज आवाज में बोलने पर वे ऐसे दरक जाते हैं जैसे कांच में दरार आ जाने पर वह बिखर जाता हैं फिर तो उसमें धुंधली या अस्पष्ट तस्वीर ही दिखाई देती हैं। अतः कभी भी किसी भी मामले में सोच समझ कर ही निर्णय लें। कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं लें अन्यथा बाद में पछताना पड़े।
कहते हैं कि धनवान व्यक्ति वह नहीं है जिसके पास अपार धन-संपदा हो अपितु धनवान व्यक्ति वह है जिसके पास आत्मविश्वास, धैर्य, त्याग, सहनशीलता, करूणा, प्रेम और स्नेह, सद् व्यवहार करें, परोपकारी व सेवाभावी हो। हर व्यक्ति अपने नसीब का खाता हैं कोई किसी पर बोझ नहीं है। जब परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन और मुख दिया हैं तो वह भोजन की भी व्यवस्था करता हैं। कभी भी कोई भूखे पेट नहीं सोता है। पशु-पक्षी कमा नहीं सकते हैं फिर भी परमात्मा उनके लिए भोजन की व्यवस्था करता है फिर हमें तो परमात्मा ने बल, बुद्धि, शक्ति दी हैं तब हम तो मेहनत मजदूरी करके भी अपना जीवन यापन कर रहे हैं और जो बीमार व रोगी हैं। चल फिर नहीं सकते हैं उनके पास भी भामाशाहों के माध्यम से दो वक्त का भोजन पहुंच रहा हैं।
हमारी सभ्यता और संस्कृति विश्व की सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है जो हमें परोपकार की भावना के साथ रहने की प्रेरणा देती हैं। यहीं कारण है कि आज पड़ोसी पड़ोसी का ख्याल रखता है और उनके सुख दुःख में साथ निभाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि परमात्मा व समय हमें भूखा नहीं सोने देता हैं भले ही कोई दाल का हलवा खाता है लेकिन हमें वह दाल रोटी तक पहुंचा ही देता हैं। इसलिए सवेरे उठते ही व रात को सोते वक्त ईश्वर के प्रति आभार जरूर व्यक्त करें।
तनाव मुक्त रहें : उक्त वाक्य छोटा सा है और हर कोई आसानी से बोल देता हैं कि तनाव मुक्त रहें और मस्ती भरा जीवन व्यतीत करें। कहने वाला तो कह कर अपनी ओर से इतिश्री कर लेता हैं। लेकिन जब कोई उनसे यह पूछे कि जब आप तनाव में रहते हैं तब अपने आपकों मुक्त कर पाते हैं। जवाब सीधा सा हैं नहीं… नहीं… नहीं। कोई भी बात कहना आसान है लेकिन उस पर अमल करना या चलना बड़ा ही कठिन कार्य हैं। यह तो भुगतभोगी ही जानता हैं।
कोई आर्थिक दृष्टि से, कोई बीमारी से, कोई रिश्तेदारों से, कोई पढ़ाई को लेकर, कोई परीक्षा को लेकर, कोई उसके परिणाम को लेकर परेशान हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हर कोई किसी न किसी समस्या को लेकर परेशान व तनाव में हैं। अब हमारे मित्र को ही ले लीजिए। उनकी पत्नी को स्वर्गवास हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है कि पुत्र ने पिता को अपना वेतन देना बंद कर दिया। जब मर्जी हुई तब अपने हिसाब से वेतन दे दिया और जब मर्जी हुई तब वेतन बंद कर देता हैं। पिता के पूछने पर वह उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं देता हैं।
इतना ही नहीं जब मर्जी हुई तब पिता से कभी दो सौ तो कभी पांच सौ अलग से मांग लेता हैं ऐसी स्थिति में पिता बेहद तनाव में रहता हैं। कभी कभार पिता की इच्छा होती है कि बेटे को घर से निकाल दूं लेकिन यह सोच कर चुप हैं कि इसके पीछे जो लड़की (बहू) आई है उसका क्या दोष हैं जो उसे निकालूं। बस यहीं सोच सोच कर पिता रो धोकर तनाव पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है। क्या आपके इतना कह देने से (तनाव मुक्त रहें) उसकी समस्या का समाधान हो सकता है। कदापि नहीं। हर समस्या का एक ही समाधान हैं साथ में बैठकर आपसी बातचीत की जाये तभी गलत फहमियां मिट पायेगी और समस्या का हल निकल पायेगा।