
राज शेखर भट्ट
ऊधम सिंह नगर | उत्तराखंड परिवहन निगम के नियमित कर्मियों को अगस्त और सितंबर का वेतन अब तक नहीं मिला है। इसके अलावा आउटसोर्स और संविदा कर्मियों को भी सितंबर का वेतन नहीं मिला है। कर्मचारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही है, लेकिन सरकार और प्रशासन की उदासीनता साफ दिख रही है। कर्मचारी संगठनों ने मंगलवार तक वेतन भुगतान का समय दिया है, अन्यथा आंदोलन की चेतावनी दी है। रोडवेज कर्मचारी यूनियन के क्षेत्रीय मंत्री मनिंदर सिंह का कहना है कि दो महीने का वेतन न मिलने से कर्मचारी मानसिक और आर्थिक दोनों रूप से परेशान हैं। कई कर्मचारी अपने परिवार की मूलभूत जरूरतें पूरी करने में असमर्थ हैं।
उन्होंने कहा, “नियमित वेतन समय पर न मिलने से कर्मचारियों की मनोबल गिर रही है। निगम प्रबंधन और सरकार को तुरंत कदम उठाने चाहिए।” रोडवेज कर्मचारी संयुक्त परिषद (कार्यशाला) के क्षेत्रीय मंत्री दिनेश कुमार ने इसे कर्मचारियों के साथ अन्याय करार दिया। उन्होंने चेताया कि यदि मंगलवार तक वेतन नहीं मिला तो व्यापक हड़ताल और आंदोलन होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि निगम में वेतन भुगतान में देरी सिर्फ कर्मचारियों की व्यक्तिगत स्थिति नहीं बिगाड़ रही, बल्कि पूरे संगठन की कार्यकुशलता पर भी असर डाल रही है। इससे रोडवेज की सेवाओं में बाधा उत्पन्न हो सकती है, और आम जनता को भी असुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
मुख्यमंत्री धामी की नकारात्मक भूमिका
राज्य सरकार, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कर रहे हैं, इस मामले में पूरी तरह से उदासीन दिखाई दे रही है। सार्वजनिक हित से जुड़े इस गंभीर मामले में सरकार की प्राथमिकता कर्मचारियों के हित के बजाय अन्य राजनीतिक या दिखावटी कामों पर नजर आ रही है। पिछले कुछ महीनों में सरकार कई घोषणाएं कर चुकी है, लेकिन कर्मचारियों के समय पर वेतन भुगतान में कोई ठोस कदम नहीं दिख रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक स्पष्ट संकेत है कि मुख्यमंत्री धामी प्रशासनिक जवाबदेही में पीछे हैं और कर्मचारियों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहे।
कर्मचारी संगठनों ने बार-बार सरकार से अनुरोध किया है कि वेतन भुगतान को प्राथमिकता दी जाए और भविष्य में ऐसी समस्याओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए स्पष्ट समयबद्ध योजना बनाई जाए। हालांकि प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। कर्मचारी और संगठन इस संकट के समाधान के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता से स्पष्ट है कि इस दिशा में गंभीर प्रयास अभी तक नहीं हुए हैं।