
ललितपुर, उत्तर प्रदेश | उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ और नेहरू महाविद्यालय, ललितपुर के संयुक्त तत्वावधान में 19 और 20 सितंबर 2025 को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की स्मृति में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कृति और इतिहास के संगम का मंच था। संगोष्ठी का उद्देश्य गुप्त जी के साहित्य की प्रासंगिकता को वर्तमान संदर्भ में रेखांकित करना और नई पीढ़ी को उनकी साहित्यिक एवं नैतिक चेतना से परिचित कराना था।
संगोष्ठी के पहले दिन विभिन्न सत्रों में गुप्त जी के गद्य और पद्य साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने उनके महाकाव्यों जैसे साकेत और यशोधरा की काव्यात्मक उत्कृष्टता पर प्रकाश डाला और उनके निबंधों, संस्मरणों और पत्रों में निहित विचारों पर चर्चा की। यह सत्र आधुनिक युग के लिए प्रासंगिक था, जिसमें साहित्य के डिजिटलीकरण, ई-बुक्स, ऑडियो बुक्स और ब्लॉगों के माध्यम से साहित्य को संरक्षित और प्रचारित करने पर विचार किया गया।
ललितपुर का पुरातत्व एवं साहित्य सत्र संगोष्ठी को स्थानीय संदर्भ देता है। वक्ताओं ने ललितपुर के किले, जैन मंदिरों और अन्य ऐतिहासिक स्थलों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे इन स्थानों ने गुप्त जी सहित कई साहित्यकारों को प्रेरित किया। इस सत्र ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी क्षेत्र का साहित्य उसके इतिहास, संस्कृति और भूगोल से गहरा जुड़ा होता है। संगोष्ठी में प्रो. किशन यादव, कुलपति, तात्या टोपे विश्वविद्यालय ने मैथिलीशरण गुप्त के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना और नैतिकता के तत्वों पर जोर दिया।
उन्होंने गुप्त जी को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि देने का औचित्य सिद्ध किया और उनके काव्यों में देशभक्ति, भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों के अद्भुत समन्वय को उजागर किया। सुरेंद्र अग्निहोत्री, संपादक, नृतंकहनियाँ ने गुप्त जी के काव्य में छिपी आधुनिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उनके पात्र स्त्री विमर्श, समाज सुधार और मानवतावादी मूल्यों का प्रतीक थे। डॉ. अमित दुबे, संपादक, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान ने हिंदी संस्थान की भूमिका और गुप्त जी की साहित्यिक विरासत पर जोर दिया।
संगोष्ठी में बिहार के साहित्यकार सत्येंद्र कुमार पाठक और पूर्वी चंपारण की डॉ. अनिता देवी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। प्रो. मुकेश पांडेय, अंजली गुप्ता और डॉ. पवन पुत्र बादल जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति ने संगोष्ठी की गरिमा बढ़ाई। यह आयोजन केवल औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि एक साहित्यिक और सांस्कृतिक महायज्ञ था, जिसमें राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की साहित्यिक विरासत की पूजा की गई और उसे नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।