जीवन की चतुर्दिक विकास का मूल है मां
जीवन की चतुर्दिक विकास का मूल है मां, मातृ दिवस का माताओं द्वारा अपने बच्चों के जीवन पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को स्वीकार करने, मूल्यों को प्रदान करने, सहायता प्रदान करने और विकास का पोषण करने की क्षमता है।भारत में, मातृ दिवस पर, परिवार अपने जीवन में माताओं की अमूल्य भूमिका का सम्मान करने के लिए देश भर में माताओं के निस्वार्थ प्रेम और बलिदान का जश्न मनाते हैं।
जहानाबाद। विश्व मातृ दिवस के के अवसर पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि जीवन की चतुर्दि विकास एम ममता की मूर्ति मां है। मातृ दिवस जीवन पर माताओं और मातृशक्तियों के गहरे प्रभाव को संजोने और स्वीकार करने का समय है। प्रतिवर्ष मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है। मदर्स डे माताओं और मातृतुल्य विभूतियों का सम्मान एवं परिवारों और समाज के लिए बलिदान और अमूल्य योगदान है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस प्रत्येक वर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे अवकाश अन्ना जार्विस द्वारा अपनी मां की मानवीय कार्यों के प्रति समर्पण मदर डे स्थापित किया गया था। राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने 1924 ई. को अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में नामित किया था। स तिथि को वसंत त्योहारों के दौरान माताओं और मातृत्व का जश्न मनाने की परंपरा प्राचीन ग्रीक और रोमन संस्कृतियों का हैं।
मातृ दिवस का माताओं द्वारा अपने बच्चों के जीवन पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को स्वीकार करने, मूल्यों को प्रदान करने, सहायता प्रदान करने और विकास का पोषण करने की क्षमता है।भारत में, मातृ दिवस पर, परिवार अपने जीवन में माताओं की अमूल्य भूमिका का सम्मान करने के लिए देश भर में माताओं के निस्वार्थ प्रेम और बलिदान का जश्न मनाते हैं। इसी तरह, यूनाइटेड किंगडम में, बच्चे अक्सर अपनी माताओं को स्नेह के प्रतीक के रूप में फूल और कार्ड भेंट करते हैं।
जापान में, माताओं को उपहार में दिया गया कार्नेशन प्यार और कृतज्ञता का प्रतीक है। इथियोपिया के परिवार बड़े उत्सव की दावतों के लिए इकट्ठा होते हैं। मैक्सिकन सेरेनेड और कविता पाठ के माध्यम से माताओं का सम्मान और नेपाल में, माता तीर्थ औंसी त्योहार है। मातृ दिवस का सार्वभौमिक माताओं और मातृ विभूतियों के हमारे जीवन पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को संजोने और स्वीकार करने का आवश्यक है।
मंत्री दिवस के अवसर पर मगबन्धु अखिल का लघुकथा विशेषांक का विमोचन करते हुए साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि बच्चों को माताएं लघू कथा, कहानी कह कर बच्चों को आनंदित करती है। रांची झारखंड से प्रकाशित मग बंधु अखिल के संपादक डॉ. सुधांशु शेखर मिश्र ने लघुकथा पर विस्तृत चर्चा की वही स्वंर्णिम केयाल केंद्र की अध्यक्षा एवं लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव ने मातृशक्ति एवं ममता पर उल्लेख की।