
सुनील कुमार माथुर
मन मे अगर शांति है तो मनुष्य का असली मंदिर उसके अपने अंदर है। मन का अशान्त होना जीवन का सबसे बडा अपशकुन है । वही शान्त मन का स्वामी होना सबसे बडा शकुन और शौभाग्य है । हमे हर उस कार्य से परहेज रखना चाहिए जो अपने लिए अशांति का कारण बने । वह कार्य स्वागत योग्य हैं जो हमारे मन में शांति में सहायक बने ।
स्वयं को चिंता , तनाव , घुटन और मानसिक अवसाद से मुक्त रखनें का उतरदायित्व अपने आप पर हो जाता हैं । बाहर से किये जाने वाले परिवर्तनों से जीवन में परिवर्तन नहीं आते है । स्वयं कि सोच और मानसिकता में आने वाला परिवर्तन ही जीवन को परिवर्तित कर वास्तविक दिशा प्रदान कर सकता हैं । हमें आइनों को बदलने के बजाय चेहरों को बदलना चाहिए । आइने बदलने से चेहरे नहीं बदलते , चहरों को बदलने से आइने अपने आप बदल जाते हैं ।
स्वस्थ मन से किया गया कार्य व्यक्ति के लिए सुख का सेतु बन जाता है । वही दूसरी ओर बगैर मन से किया गया कार्य हमारे लिए बंधन बना रहता है । हम अपने हर कार्य को इतने स्वस्थ व प्रसन्नचित से सम्पादित करे कि कार्य ही प्रार्थना बने और कार्य ही मुक्ति का ध्दारा । हमें अपनी शांति को बरकरार रखने के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्यशील व प्रसन्न रहना चाहिए ।
यही जीवन में सदा स्मरण रखनें योग्य मंत्र है शांति चाहिए तो व्यक्ति शान्त रहे । हर हाल में मस्त रहो । यही मन की शांति पाने का प्रथम व अंतिम सूत्र हैं ।
सद् गुणों के संस्कार आत्मिक विकास में योगभूत आधार तो बनते ही है साथ ही व्यवहार के धरातल पर स्वस्थ , सुखी और आनंदमय जीवन के लिए भी सहयोगी होते है । इन सद् गुणों को आत्मसात कर जीवन में सजाने एवं संवारने वाला व्यक्ति दुनियां में अपने गुणों की सौरभ बिखेरता महकता हुआ लोगों के लिए सदैव स्मरणीय , आदरणीय और पूज्यनीय हो जाता हैं ।
शिष्य गुरु के आदेशों एवं निर्देशों को सर्वोपरि मानते हुए उसको आत्मसात करता हैं तथा आज्ञा की अनुपालना कर गुरु के प्रति आस्था , श्रध्दा , भक्ति और विश्वास के साथ प्रिती भाव से संपर्क स्थापित कर समर्पित हो जाने पर जीवढन नैया पार की जा सकती है । व्यक्ति का मूल्यांकन उम्र से नहीं बल्कि उसकी योग्यता से होता हैं ।
हरा भरा विशाल वृक्ष झुक जाता हैं पर गिरता नहीं हैं लेकिन सूखा हुआ ढूंढ अकडपन के कारण टूट जाता हैं पर झुकता नहीं हैं । इसी तरह विनम्रता से परिपूर्ण व्यक्ति उन्नति के शिखर पर पहुंचने में सफलता अर्जित करते हैं । अत: व्यक्ति को क्षणिक भौतिक सुखों का परित्याग कर शाश्वत आत्मिक सुख की राह अपनानी चाहिए ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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