
(देवभूमि समाचार)
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार बहुत दयावान है, उत्तराखण्ड के सभी पत्रकारों के हितों में कार्य कर रही है। यह बात हंसने वाली तब प्रतीत होगी, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का खुद का विभाग ही भ्रष्टाचारी हो। वह विभाग, जो सभी पत्रकारों के हित में कार्य कर रहा है। अब सोचने वाली बात यह है कि क्या यह विभाग ही भ्रष्टाचारी है, जिसके खिलाफ सालों से आरटीआई, शिकायती पत्र लगाये जा रहे हैं? या यहां के कर्मचारी भी भ्रष्टाचार कर रहे हैं? या महानिदेशक भ्रष्टाचार के पुजारी है? या मुख्यमंत्री ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं? क्योंकि गंगा ऊपर से बहती है।
जल्द ही सभी बातें हमारे सामने होंगी, क्योंकि इस मुद्दे पर खोजबीन जारी है और आरटीआई का सहारा लिया गया है। देखते हैं विभाग आरटीआई का क्या जवाब देता है। सही देता है या गलत यह समय बतायेगा। बहरहाल, कितनी ही कार्रवाई कर लो, होना कुछ नहीं है। क्योंकि चोर-चोर मौसेरे भाई। कर्मचारी, अधिकारी, बड़े अधिकारी, मंत्री और मुख्यमंत्री सभी जब एक जैसे हों तो कौन किस पर कार्रवाई करेगा। आम जनता और आम पत्रकार की कौन सुनता है। अपनी 20 साल की पत्रकारिता से इतना जरूर पता चला है कि सूचना विभाग और निदेशालय में कौन सही है और कौन गलत है।
अभी शुरूआत है, पाठकों को केवल हिंट दे रहा हूं। क्योंकि सुबूत अभी पूरे नहीं हैं। सुबूतों के हिसाब से अगर बात करें तो आखिर किस आधार पर या किस नियम पर मुख्यमंत्री/महानिदेशक सूचना विभाग ने 1 करोड़ रूपये के विज्ञापन दिये। यदि मुख्यमंत्री के लिए कोई नियम नहीं होता तो इतना समझना जरूरी है कि लोकतंत्र है यह, तानाशाही नहीं। महानिदेशक की बात करें तो आप नौकरी कर रहे, राजा बनने की मत सोचो। क्योंकि सपनों के महल जब धराशायी होते हैं तो जाता कुछ नहीं है… क्यों, क्योंकि उसके लिए स्वाभिमान होना जरूरी है। यदि स्वाभिमान डीजी के विवेक पर ही निर्भर हो तो नाश हो ऐसे विवेक का, जो पूरे उत्तराखण्ड में 2-4 लोगों तक ही अटका हुआ है।
सूचना के एक अधिकारी ने बताया कि विज्ञापन डीजी के विवेक पर निर्भर है। अगर ऐसा है तो क्या डीजी का विवेक इन्ही समाचार पत्रों पर अटका हुआ है। जब हम लोग विज्ञापन की बात करें तो आपके पास बहाने रहते हैं कि बजट नहीं है, आपदा है, फलाना है ढिमकाना है। यदि ऐसा है तो 18-20 महीने में 1 करोड़ 16 हजार रूपये के विज्ञापन एक साप्ताहिक समाचार पत्र को किस नियम के हिसाब से दिये, उस वक्त आपदा और बजट की बातें कहां गयी। समाचार पत्र का नाम सण्डे पोस्ट हो, जो कि साप्ताहिक समाचार पत्र है, उसे कितने विज्ञापन मिले, समझने की कोशिश करें।
सितम्बर 2023 – 1500000/- (पन्द्रह लाख रूपये)
दिसम्बर 2023 – 2000000/- (बीस लाख रूपये)
मार्च 2024 – 1500000/- (पन्द्रह लाख रूपये)
जून 2024 – 1500000/- (पन्द्रह लाख रूपये)
जुलाई 2024 – 14000/- (चौदह हजार रूपये)
नवम्बर 2024 – 1500000/- (पन्द्रह लाख रूपये)
मार्च 2025 – 1000000/- (दस लाख रूपये)
जून 2025 – 1000000/- (दस लाख रूपये)
उपरोक्त सभी हिसाब-किताब सुबूतों के हिसाब से है, बाकि आरटीआई का उत्तर बतायेगा कि क्या सच है। कुल मिलाकर एक करोड़ रूपये के विज्ञापन दिये गये हैं, डीजी के विवेक के अनुसार। अन्य समाचार पत्रों के लिए डीजी का विवेक खत्म। यही है दयावान सरकार की खासियत और जहां डीजी का विवेक इतना बड़ा हो तो वहां सभी पत्रकार तो खुश रहेंगे ही। सभी पाठकों से एक अनुरोध है कि न्यूज पर कमेंट करके अपनी राय जरूर दें और अपना नम्बर छोड़ दें, क्योंकि सुबूत और आरटीआई के जवाब आने के बाद जल्द ही देहरादून प्रेस कांफ्रेस भी की जायेगी, जरूरत पड़ी तो पीआईएल का भी सहारा लिया जाएगा। आप भी साथ होंगे तो शायद तस्वीर बदले, नहीं तो ये सुधरने वाले नहीं हैं।
सभी समाचार पत्रों को रोटेशन प्रणाली से विज्ञापन मिलने चाहिए ताकि सभी को नियमानुसार विज्ञापन मिल सकें और किसी को भी शिकायत नहीं रहेगी । इतने विज्ञापन तो मिलने ही चाहिए कि पत्रकार अपना जीवन यापन आसानी से करते हुए समाचार पत्र का प्रकाशन जारी रखते हुए जनता और सरकार के बीच एक पूल का कार्य कर सकें । तभी मिशनरी पत्रकारिता का जलवा देख सकतें हैं ।
सम्पूर्ण प्रक्ररण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और बेहिसाब बंदरबांट बंद होनी चाहिए।