
राज शेखर भट्ट
देहरादून। सभी को पता है कि सदियों से जो सत्ता के नाम पर चुटकियां ले रहे थे, उनका जनता से 36 घंटों में सत्ता परिवर्तन कर दिया। जिनको Gen-Z नाम दिया गया, Gen-Z का अर्थ कई लोग समझ चुके होंगे और जो नहीं समझे हैं, वह भी जल्द ही समझ जायेंगे। अभी इस समाचार के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि Gen-Z को किसी चीज से परेशानी नहीं है, उनको परेशानी है केवल ‘‘व्यवस्था’’ से, ‘‘System’’ से। ये वही सिस्टम या व्यवस्था है, जिसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारी (आईएएस, आईपीस, पीसीएस इत्यादि) चला रहे हैं, बना रहे है और बिगाड़ भी रहे हैं।
देवभूमि उत्तराखण्ड की बात करें तो हम भी थोड़ा कनफूजिया गये हैं। कहने का तत्पर्य यह है कि शासन सत्ता पर है या सत्ता शासन कर रही है। यह समझ नहीं आ रहा है कि नियमो के अनुरूप कार्य हो रहा है या कार्यों के अनुरूप नियमों को बना दिया जा रहा है। यह समझ नहीं आ रहा है कि किसी के पास लगन और कर्मठता होने से कार्य हो रहे हैं या ऊपर तक पहचान होना और पैसे का बोलबाला होना ही अच्छे कार्य की पहचान है। आखिर 25 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी एक सूबा अपनी राजधानी नहीं ढूंढ पाया, क्यों? इसी कार्यप्रणाली के कारण या इसी व्यवस्था के कारण, सभी सवाल संदेह के घेरे में हैं। सवाल सभी अधूरे हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री आवास से लेकर सचिवालय तक, निजी विज्ञापनों की आग से लेकर सूचना एवं लोक संपर्क विभाग तक केवल राजनीति, भाई-भतीजा, अपना-पराया, मंत्री-मुख्यमंत्री से पहचान की ही बातें सामने आती है।
व्यवस्था पंगू हो गयी है या उसे पंगू बना दिया गया है, यह सोचने वाली बात होगी। जैसा कि 30 अगस्त 2025 को एक पत्र श्रीमान् मुख्य सचिव महोदय को भेजा गया था। आज 12 दिन होने पर भी प्रार्थी को वहां से कोई भी जवाब नहीं प्राप्त हुआ। हो सकता है ई-मेल आइडी गलत हो, तो उसे सुधारना भी आपका कार्य है, न प्रार्थी का और न जनता का। यदि पत्र से संबंधित मामला महोदय का नहीं है तो संबंधित अधिकारी को अग्रेषित किया होगा। क्या फाईल को अग्रेषित करने के बाद प्रार्थी को सूचना देना, यह नियमों में नहीं आता? महोदय यदि ऐसा कोई नियम नहीं है, तो अपने स्तर से लागू करवायें, जिससे कि प्रार्थी को पता रहे कि उसके पत्र पर कार्यवाही हो रही है या नहीं। अगर वह प्रार्थना पत्र कूड़े में जा चुका है तो अब क्या किया जा सकता है।
जबकि महोदय को सूचना विभाग के संबंध में प्रकाशित सभी समाचार के लिंक भी भेजे गये हैं। उनके द्वारा पत्र और समाचार पढ़ गये या नहीं, कोई कार्यवाही गतिमान है या नहीं, इसका हिसाब-किताब तो राम भरोसे चल रहा है। यदि वह प्रार्थना पत्र कार्यवाही के लायक ही नहीं है, नियमों के हिसाब से नहीं है तो कम से कम प्रार्थी को बता तो दो कि पत्र में क्या कमी है। बहरहाल, पत्र पहुंचा या नहीं, अग्रेषित किया या नहीं, कार्यवाही होगी या नहीं, सभी जवाब अधर में लटके हुये हैं। यह है हमारी देवभूमि उत्तराखण्ड का सिस्टम, हमारे सूबे की व्यवस्था। नेपाल में क्या हुआ है सभी को पता है। भगवान न करे ऐसे Gen-Z यहां भी बनने लगे और व्यवस्था को बदलने के लिए तख्तापलट कर दें। फिर कौन कहां गिरेगा, कौन भाग रहा होगा, किससे भाग रहा होगा, कैसे भाग रहा होगा और क्यों भाग रहा होगा। इन सबका जवाब भी सिस्टम ही देगा, जो आपने ही बनाया है, जनता ने नहीं।
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अब तक सूचना विभाग के निदेशक महोदय, मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल और मुख्य सचिव महोदय को प्रार्थना पत्र दिये गये हैं। आज देवभूमि के राजाजी अर्थात मुख्यमंत्री महोदय पुष्कर सिंह धामी जी को तथा हमारे देश के राजाजी अर्थात प्रधानमंत्री महोदय नरेन्द्र मोदी जी को भी प्रार्थना पत्र भेजकर देखते हैं। फिर होगा इंतजार यह देखने के लिए कि क्या होता है? कोई रिप्लाई आता है या सबकी व्यवस्था होती है।
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सरकार हर विभाग को बजट देती है ताकि वे जनता के पत्रों पर कार्यवाही कर संबंधित व्यक्ति को सूचित करें लेकिन पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई हैं । पत्रों पर कार्यवाही तो दूर रही उन्हें पत्र की प्राप्ति तक की सूचना नहीं दी जा रहीं हैं । यह कैसी विडम्बना है । अतः पत्रों पर तत्काल प्रभाव से कार्यवाही की जाकर संबंधित को अवगत कराया जाये । चूंकि समस्या तो समाधान चाहती है न कि दलगत राजनीति ।