
देहरादून। चार दिन से निमोनिया से जूझ रहे डेढ़ साल के बेटे की सांसें जब टूटने लगीं तो पिता ने हार नहीं मानी। खराब मौसम के कारण हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका, सड़कें आपदा में ध्वस्त हो गईं, लेकिन पिता ने बच्चे को गोद में उठाकर 18 किलोमीटर दौड़ लगाई और अस्पताल तक पहुंचा दिया। यह घटना मानव जिजीविषा और पिता के अटूट संकल्प की मिसाल बन गई है। मसूरी के थत्यूड़ निवासी समवीर का डेढ़ साल का बेटा देवांग चार दिन से बीमार था।
शुरू में बुखार के बाद उसकी हालत बिगड़ी और सांसें फूलने लगीं। डॉक्टरों ने निमोनिया बताया और बेहतर इलाज के लिए देहरादून लाने की सलाह दी, लेकिन आपदा से रास्ते बंद हो गए। बुधवार को प्रशासन ने गंभीर मरीजों को लाने के लिए हेलिकॉप्टर भेजा, पर मौसम खराब होने से उड़ान नहीं भर सका। जब बेटे की हालत लगातार बिगड़ने लगी, तो पिता समवीर ने हिम्मत दिखाई। गोद में बच्चे को लेकर वे भूस्खलन और टूटी सड़कों को पार करते हुए 18 किलोमीटर दौड़े। बड़ा मोड़ से कुठालगेट तक का सफर तय करते हुए वे दोपहर चार बजे देहरादून पहुंचे और बेटे को निजी अस्पताल में भर्ती कराया।
12 मरीजों का भी रेस्क्यू
मसूरी-दून मार्ग बंद होने से 12 और मरीज शहर में फंसे हुए थे। इनमें डायलिसिस और सर्जरी के मरीज शामिल थे। प्रशासन ने पहले हेलिकॉप्टर से लाने की योजना बनाई लेकिन मौसम ने साथ नहीं दिया। इसके बाद तीन एंबुलेंस और दो निजी वाहनों से सभी मरीजों को देहरादून भेजा गया। कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के निर्देश पर यह व्यवस्था की गई। आपदा के बाद देहरादून में यातायात व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। एसपी (यातायात) लोकजीत सिंह ने बताया कि मसूरी मार्ग खोलने की कोशिश की जा रही है, लेकिन तब तक सभी वाहन प्रतिबंधित रहेंगे। इसके अलावा विकासनगर, सहसपुर, झाझरा और अन्य इलाकों के वाहनों को डायवर्जन से होकर भेजा जा रहा है। पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे इन योजनाओं का पालन करें।
भूख से जूझते गांव, हेलिकॉप्टर से मदद
आपदा प्रभावित मालदेवता क्षेत्र के कई गांवों में खाने का संकट गहरा गया। सड़कें बंद होने से प्रशासन मदद नहीं पहुंचा पा रहा था। बाद में जिलाधिकारी सविन बंसल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुमति लेकर हेलिकॉप्टर से 700 किलो राशन पहुंचवाया। पैकेट बनाकर यह सामग्री 60 परिवारों को दी गई। फुलेत, सरखेत, छमरौली, सिल्ला, क्यारा समेत कई गांवों में यह राहत पहुंचाई गई। एसडीएम कुमकुम जोशी के नेतृत्व में पूरा ऑपरेशन चलाया गया और कर्मचारियों को गांवों में तैनात किया गया ताकि समस्याओं का तत्काल समाधान हो सके।
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यह घटना सिर्फ एक पिता की हिम्मत की नहीं, बल्कि प्रशासन की नाकामी की भी कहानी है। जब करोड़ों का तंत्र, हेलिकॉप्टर और पूरी मशीनरी मौसम और बंद सड़कों के आगे लाचार हो गई, तब एक पिता ने अकेले दम पर वह कर दिखाया जो पूरे सिस्टम को करना था। सवाल यह है कि आपदा प्रबंधन के नाम पर योजनाएँ सिर्फ कागजों में क्यों रह जाती हैं?