
देहरादून। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य, जो जलविद्युत क्षमता के लिए देशभर में जाना जाता है, आने वाले वर्षों में ऊर्जा की भारी चुनौती का सामना करेगा। अंतरराष्ट्रीय परामर्शदाता कंपनी मैकेंजी ग्लोबल की एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट में यह बड़ा खुलासा हुआ है कि वर्ष 2032 तक प्रदेश में बिजली की मांग दोगुनी हो जाएगी।
प्रदेश सरकार ने यह अध्ययन ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम के निर्देश पर कराया था, ताकि आने वाले दशक में ऊर्जा की जरूरतों का सटीक आकलन हो सके और समय रहते उत्पादन एवं वितरण के लिए ठोस रणनीति बनाई जा सके।
बढ़ती आबादी, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से बढ़ेगी मांग
मैकेंजी की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में बढ़ते शहरीकरण, तीव्र औद्योगिकीकरण, इलेक्ट्रिक वाहनों की लोकप्रियता और पर्यटन गतिविधियों में निरंतर वृद्धि बिजली की खपत को तेजी से बढ़ा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के घरेलू उपभोक्ताओं की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में और बढ़ेगी, वहीं औद्योगिक क्षेत्र और पर्यटन स्थलों पर बिजली की मांग में 35 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि संभव है।
विशेष रूप से हरिद्वार, देहरादून, काशीपुर और रुद्रपुर जैसे औद्योगिक नगरों में यह वृद्धि और अधिक होगी, जबकि बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, नैनीताल और मसूरी जैसे पर्यटन स्थलों पर मौसम के अनुसार मांग में अचानक उछाल देखने को मिलेगा।
मांग का गणित: सात वर्षों में लगभग दोगुनी खपत
मैकेंजी ग्लोबल ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के साथ मिलकर 2019 से 2032 तक की मांग का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। आंकड़े बताते हैं कि 2019 में जहां मांग 2216 मेगावाट थी, वहीं वर्ष 2024 में यह 2635 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। कंपनी का अनुमान है कि यह मांग 2032 तक 4400 मेगावाट के आसपास होगी। यह वृद्धि दर राज्य की ऊर्जा आपूर्ति व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है।
| वर्ष | सीईए अनुमान (MW) | मैकेंजी अनुमान (MW) | औसत मान्य अनुमान (MW) |
|---|---|---|---|
| 2026 | 3072 | 3124 | 3035 |
| 2027 | 3249 | 3402 | 3217 |
| 2028 | 3435 | 3664 | 3410 |
| 2029 | 3623 | 3922 | 3614 |
| 2030 | 3847 | 4105 | 3831 |
| 2031 | 4094 | 4255 | 4004 |
| 2032 | 4159 | 4403 | 4184 |
रिपोर्ट यह भी बताती है कि उत्तराखंड की मौजूदा बिजली उपलब्धता भविष्य की इस अनुमानित मांग की तुलना में अभी लगभग 30 प्रतिशत कम है।
उपलब्धता की स्थिति: उत्पादन से अधिक आयात पर निर्भरता
राज्य की बिजली उपलब्धता का बड़ा हिस्सा अब भी बाहरी स्रोतों पर निर्भर है। वर्तमान में उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPCL) के पास कुल 3308 मेगावाट के पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) हैं। इनमें—
- कोयला संयंत्रों से : 533 मेगावाट
- एटॉमिक स्रोतों से : 46 मेगावाट
- गैस आधारित : 390 मेगावाट
- बायोमास : 52 मेगावाट
- जलविद्युत (हाइड्रो) : 1970 मेगावाट
- हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स : 100 मेगावाट
- सौर ऊर्जा : 217 मेगावाट
साथ ही टीएचडीसी के पंप स्टोरेज प्लांट से 200 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की प्राप्ति की उम्मीद है।
ऊर्जा विभाग की रणनीति: स्थानीय उत्पादन पर जोर
ऊर्जा विभाग ने रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2029-30 तक बिजली की कुल उपलब्धता को 4218 मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए सरकार तीन प्रमुख मोर्चों पर काम कर रही है—
- जलविद्युत परियोजनाओं का पुनर्जीवन: कई ठप या अधूरी हाइड्रो परियोजनाओं को फिर से शुरू किया जाएगा।
- सौर ऊर्जा का विस्तार: सौर ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 217 मेगावाट से बढ़ाकर अगले छह वर्षों में 600 मेगावाट से अधिक करने की योजना है।
- हाइब्रिड मॉडल: हाइड्रो और सोलर दोनों को मिलाकर उत्पादन स्थिरता बढ़ाई जाएगी।
चुनौतियां: ट्रांसमिशन नेटवर्क और पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ
मैकेंजी रिपोर्ट ने चेताया है कि केवल उत्पादन बढ़ाना पर्याप्त नहीं होगा। उत्तराखंड का पर्वतीय भूगोल, कमजोर ट्रांसमिशन नेटवर्क, और पर्यावरणीय मंजूरियों में देरी भविष्य की ऊर्जा रणनीति के लिए सबसे बड़ी बाधाएं हैं। विशेष रूप से ऊंचाई वाले जिलों में ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित करना महंगा और जोखिमपूर्ण कार्य है।
सरकार की प्रतिक्रिया
प्रमुख सचिव ऊर्जा आर. मीनाक्षी सुंदरम ने कहा —
“राज्य सरकार ने पहले से ही भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयारी शुरू कर दी है। हमारा लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देना और स्थानीय उत्पादन को अधिकतम करना है।”
उन्होंने यह भी बताया कि उत्तराखंड में ऊर्जा आत्मनिर्भरता केवल बिजली की उपलब्धता का विषय नहीं है, बल्कि यह राज्य के सतत विकास और आर्थिक वृद्धि का आधार भी है।






