
पिथौरागढ़। उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कैंपस संस्थान सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज, पिथौरागढ़ के विद्युत विभाग में कार्यरत डॉ. अखिलेश सिंह ने प्रदेश ही नहीं, पूरे देश का गौरव बढ़ाया है। उन्हें अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई दुनिया के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची (2025) में शामिल किया गया है। यह सम्मान उनके उच्चस्तरीय शोध और वैश्विक स्तर पर किए गए योगदान को दर्शाता है।
डॉ. सिंह का शोध कार्य विद्युत फ्रिक्वेंसी नियंत्रण को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग के माध्यम से संचालित करने पर आधारित है। साथ ही, उन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल सोलर पावर चार्जिंग स्टेशन विकसित करने में न्यूरो स्लाइडिंग मोड बैक-स्टेपिंग कंट्रोलर के प्रयोग पर भी गहन अध्ययन किया। उनके इन शोध कार्यों का उपयोग आज विश्वभर के कई विश्वविद्यालयों और कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। यह उपलब्धि बताती है कि डॉ. सिंह के शोध केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप हैं।
सहयोग और टीम वर्क
इस शोध यात्रा में डॉ. सिंह को कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों का सहयोग प्राप्त हुआ। इनमें डॉ. बी.पी. जोशी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) के प्रो. भारत भूषण शर्मा, आईआईटी धनबाद के प्रो. गोविंद मुर्मू और आईआईटी रुड़की से पीएचडी कर चुके डॉ. नागेंद्र कुमार शामिल हैं। इस संयुक्त प्रयास ने शोध कार्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। डॉ. अखिलेश सिंह को इससे पहले भी उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून द्वारा बेस्ट टीचर्स अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। वे संस्थान में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं, जिनमें डीन अकादमिक, परीक्षा नियंत्रक, और इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कंप्यूटर विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में योगदान शामिल है। शिक्षा और शोध के क्षेत्र में उनकी समर्पित सेवाएं सदैव प्रेरणादायक रही हैं।
गर्व का क्षण
इस उपलब्धि पर सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज और उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में खुशी की लहर दौड़ गई है। संस्थान के निदेशक, सहयोगियों और छात्रों ने डॉ. सिंह को उनकी इस असाधारण सफलता पर बधाई दी। यह सम्मान न केवल उत्तराखंड के लिए गौरवपूर्ण क्षण है, बल्कि पूरे भारत को विश्व पटल पर एक नई पहचान दिलाने वाला है। डॉ. अखिलेश सिंह की यह उपलब्धि इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि उत्तराखंड की धरती में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। वैश्विक स्तर पर उनकी पहचान आने वाली पीढ़ी के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।