
राज शेखर भट्ट
देहरादून | उत्तराखंड में सरकारी भर्ती परीक्षा में कथित अनियमितताओं के मामले ने राज्य सरकार के पारदर्शिता के दावे को सवालों के घेरे में ला दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड बेरोजगार संघ और तकनीकी डिप्लोमा प्राप्त छात्रों से बातचीत में कहा कि राज्य में किसी भी भर्ती परीक्षा में भ्रष्टाचार, नकल या अनुचित साधनों के लिए शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी। उन्होंने इसे पारदर्शी भर्ती का संदेश बताया।
हालांकि, कई युवाओं और बेरोजगार संघ के पदाधिकारियों का मानना है कि सरकार के दावे सिर्फ रूढ़िवादी घोषणाओं तक ही सीमित रह गए हैं। पिछले दिनों संबंधित परीक्षा में अनियमितताओं के चलते परीक्षा निरस्त करने के निर्णय के बाद भी युवाओं में नाराजगी कायम है, क्योंकि सालों से भर्ती प्रक्रिया में सुधार नहीं हुआ और इंतजार लंबा होता रहा। सीएम धामी ने कहा,
“उत्तराखंड में किसी भी भर्ती परीक्षा में भ्रष्टाचार, नकल या अनुचित साधनों के लिए शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी। हमारे राज्य के युवाओं की मेहनत, लगन और ईमानदारी ही भविष्य की सबसे बड़ी पूंजी है, और सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर है।”
राज्य सरकार ने नकल विरोधी कानून लागू किया है, जिससे परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। इसके तहत कोई भी व्यक्ति या संगठन परीक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करेगा तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। संघ के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से भविष्य की परीक्षाओं में नकल-रोधी प्रावधानों को और अधिक सुदृढ़ करने और भर्ती प्रक्रिया को समयबद्ध रूप से संचालित करने का अनुरोध किया। सीएम ने कहा कि पारदर्शी भर्ती ही सुशासन की पहचान है, और सरकार इसी दिशा में लगातार काम कर रही है। इस अवसर पर बेरोजगार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
धामी सरकार के दावे बनाम वास्तविकता: पारदर्शिता सिर्फ कागजों में, हकीकत में विपक्षी असर
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार लगातार पारदर्शिता और सुशासन के दावे करती रही है, लेकिन सरकारी कामकाज की हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत नजर आती है। राज्य का सूचना एवं लोक संपर्क विभाग इस विरोधाभास का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। सूत्र बताते हैं कि विभाग ने लंबे समय से कुछ चुनिंदा मीडिया हाउस और पत्रकारों को ही सरकारी विज्ञापन और सहयोग दिया है, जबकि छोटे और मध्यम मीडिया हाउस तथा स्वतंत्र पत्रकार पूरी तरह अनदेखे रह गए हैं। विभाग RTI के तहत मांगी गई जानकारी देने में विलंब करता है या उसे छुपाने की कोशिश करता है।
इस रवैये के कारण पत्रकारों की स्वतंत्र रिपोर्टिंग बाधित हो रही है और राज्य में सूचना का पक्षपाती वितरण हो रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नीति केवल व्यक्तिगत लाभ या रेवड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप और सूचना नियंत्रण की संभावना भी शामिल है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि क्या मुख्यमंत्री को इस पक्षपात की जानकारी है। यदि उन्हें पता है, तो यह नैतिक और प्रशासनिक सवाल खड़ा करता है; यदि अनजान हैं, तो इसका मतलब है कि विभाग स्वतंत्र रूप से अपने पक्षपातपूर्ण निर्णय ले रहा है।
वहीं, दूसरी ओर मुख्यमंत्री धामी लगातार मीडिया और जनसमूह के सामने पारदर्शी भर्ती और भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता का संदेश देते रहे हैं। हाल ही में उत्तराखण्ड बेरोजगार संघ और तकनीकी डिप्लोमा प्राप्त छात्रों से भेंट के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने संबंधित परीक्षा को निरस्त कर दिया और नकल-रोधी कानून लागू किया है। उनका दावा है कि भविष्य की परीक्षाओं में समयबद्ध और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित की जाएगी। हालांकि वास्तविकता यह है कि सरकार के इस दावे और सूचना विभाग के पक्षपाती रवैये में गहरा विरोधाभास है। जहां विभाग में पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव देखा जा रहा है, वहीं सीएम खुद को युवाओं के हित में भ्रष्टाचार-रहित परीक्षा के संरक्षक के रूप में पेश कर रहे हैं।
इससे जनता और मीडिया के बीच विश्वास का संकट गहरा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर धामी सरकार सूचना विभाग और भर्ती प्रक्रिया में समान रूप से पारदर्शिता लागू नहीं करती है, तो न केवल पत्रकारिता प्रभावित होगी, बल्कि युवाओं और आम जनता के बीच सरकारी नीतियों पर भरोसा भी कमजोर होगा। धामी सरकार के वक्तव्य और विभागीय कामकाज में विरोधाभास स्पष्ट है। एक तरफ सीएम पारदर्शी भर्ती और भ्रष्टाचार-रोधी नीति की बात करते हैं, तो दूसरी ओर उनके विभाग में पक्षपाती विज्ञापन और सूचना नियंत्रण की वास्तविकता सामने आती है। इस असमानता ने सरकार के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।