क्या देवनागरी लिपि को आज के बच्चे जानते हैं?

प्रेम बजाज
देवनागरी लिपि एक भारतीय लिपि है, जिसमें बहुत सी भारतीय भाषाएं और बहुत सी विदेशी भाषाएं भी लिखी जाती है। यह बाएं से दाएं लिखी जाती है। संस्कृति, हिन्दी, मराठी, सिन्धी, हरियाणवी, डोगरी, कश्मीरी, इस, बुंदेली, कोंकणी, पाली, नेपाली, गढ़वाली, भोजपुरी, नागपुरी, मैथिली आदि एवं अनेक भाषाएं देवनागरी में लिखी जाती हैं।
इसके अतिरिक्त गुजराती, रोमानी, उर्दू और पंजाबी इत्यादि भाषाएं भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। देवनागरी सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली लिपि है। देवनागरी लिपि क्या है…? देवनागरी लिपि अंग्रेजी की रोमन लिपि और फारसी लिपि में लिखी जाती है। भारत के प्राचीन शिलालेखों एवं सिक्कों के दो पहलू मिले हैं जिसमें ब्राह्मी और खरोष्टी दो लिपियां मिली हैं।
देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्म लिपि से हुआ, ब्राह्म लिपि को नागरी कहा जाता था, नागरी का संस्कृत शब्द से जुड़ कर देवनागरी का जन्म हुआ, जो पहले गुप्त लिपि, फिर कुटिल लिपि एवं 10वीं शताब्दी में देवनागरी लिपि के नाम से विकसित हुई। सर्वप्रथम देवनागरी का उपयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट ने अपने शिलालेख में किया था। 8 वीं और 9 वीं शताब्दी में भी यह लिपि बहुत प्रचलित हुई। देवनागरी लिपि भारत के अधिकतर क्षेत्रों में प्रचलित रही, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में ताम्रपत्रों, शिलालेख एवं ग्रंथों में देवनागरी लिपि का उपयोग किया गया।
देवनागरी लिपि के विकास के सम्बन्ध में कई मत प्रचलित है। जैसे गुजरात के नागर ब्राह्मणों कितनी होने के कारण इसे नागरिक लिफ्ट कहा जाता है, कुछ का मत है कि नगर की लिपि होने से इसे नागरी लिपि कहा जाता है, एवं कुछ विद्वानों का मानना है कि यह नाग वंश के राजाओं की लिपि है, इसलिए से नागरी लिपि कहा जाता है। मगर इसका तंत्रिका चिन्ह देव नगर से संबंधित है इसलिए भी इसे देवनागरी कहा जाता है। स्थापत्य कि एक नागर शैली में चतुर्भुज आकृति थी,इसी तरह देवनागरी में भी चतुर्भुज अक्षर ग प भ म है, इसलिए भी इसे देवनागरी कहा जाता है। वस्तुतः इसकी प्रमाणिकता संदिग्ध है ।
ईशा 8 वीं शदी में देवनागरी लिपि के वर्णों की शिरोरेखाए दो भागों में विभक्त थी, जो 11 वीं शदी में मिल कर एक हो गई और 11 वीं शताब्दी में देवनागरी लिपि स्थिर हो गई थी लेकिन 15 वीं शताब्दी में इसमें निखार आया। तमांग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका मगही, भोजपुरी, नागपुरी, गुजराती, रोमानी, पंजाबी, उर्दू भाषाएं, मैथिली और राजस्थानी भाषा आदि सैकड़ों भाषाएं और स्थानीय बोलियां भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं । आज के समय में अधिकतर हिंदी रोमन लिपि का प्रयोग करते हैं, इस पर चेतन भगत जैसे भारतीय अंग्रेजी के लेखकों ने रोमन हिंदी लिपि को ही स्वीकार्य किया। क्या ये हमारी हिंदी के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं?
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से हिंदी के रोमनीकरण की चुनौतियां एवं समाधान की दिशा में आनलाइन संगोष्ठी में कुछ नामचीन विद्वान ऐसे ही प्रश्नों के घेरे में आए। उपस्थित हर व्यक्ति ने इस विषय पर चिंता व्यक्त की, और कहा कि हिंदी के रोम- रोम में बसी रोमन लिपि को बहुत बड़ा खतरा बताया। वरिष्ठ लेखक अनिल जोशी के अनुसार देवनागरी लिपि खतरे में है। हिंदी और देवनागरी को अलग नहीं किया जा सकता। देवनागरी के अस्तित्व की रक्षा की आवश्यकता है।
मोबाइल संदेश हो या सोशल साइट्स हर इंसान हिंदी को रोमन लिपि में लिखने में जरा भी संकोच नहीं करता । यही कारण है हमें आज भी भाषा की अस्मिता और संस्कृति की चुनौती से गुजारना पड़ रहा है। ऐसे में भाषा और लिपि पर चर्चा की आवश्यकता है। डॉ० जवाहर कर्णावट के अनुसार स्वाधीनता संग्राम में हिंदी की विशेष भूमिका रही । लेकिन देवनागरी के स्थान पर रोमनी करण एक बहुत बड़ी चुनौती है। इंडियन एक्ट 343 (1) देवनागरी लिपि में हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषा चिंतक राहुल देव ने महात्मा गांधी की पुस्तक एवं सम्मेलनों में दिए भाषणों का संदर्भ देते हुए हिंदी की महत्ता को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि आज का बच्चा सबसे पहले अंग्रेजी का शब्द भी बोलना सीखता है, आज के समय में बच्चे क ख ग की बजाए ए बी सी डी पहले सीखते हैं आज के बच्चे हिंदी के बजाय रोमन और अंग्रेजी में सहज महसूस करते हैं, तो आगे वह किस तरह से हिंदी और देवनागरी सीखेगा ? क्यों सीखेगा ?
आज के डिजिटल युग में भारतीय भाषाएं एवं लिपियां कमजोर हो रही हैं। नया कुंजीपटल सीखना बच्चों को अरुचिकर लगता है। माना कि विज्ञान का युग है, लेकिन कम्प्यूटर और मोबाइल जैसी चीजों का जब अविष्कार हुआ तभी हिंदी टंकण के विषय पर ध्यान देना चाहिए था, जो कि चूक गया।
इंसान की यह प्रवृत्ति देवनागरी लिपि पर खतरा दर्शाती है। भारत में पारंपरिक ज्ञान अंग्रेजों द्वारा उपेक्षित रहा। वरिष्ठ लेखक अनिल जोशी के अनुसार जब तक हमारी भाषा हमारे रोजगार का माध्यम नहीं बनेगी हम आज की पीढ़ी को आकर्षित नहीं कर सकते। उनके अनुसार मंत्रियों, नागरी लिपि संस्थान एवं अन्य संस्थाओं को इस कार्य के लिए आगे आना होगा । उनके अनुसार पूरे देश में जो इन मुद्दों पर ध्यान दे, इसके लिए एक समिति की आवश्यकता है ।
वरिष्ठ लेखक एवं भाषा विद डॉक्टर राजेश कुमार के अनुसार भाषा और लिपि का संबंध शरीर और आत्मा की तरह है किसी भाषा की लिपि कलंदर में विकसित होती है। हिंदी माध्यम की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हमने उपनिवेशवाद अर्थात colonialism से तो आज़ादी पा ली मगर मानसिक दासता में हम अभी भि जकड़े हैं । आज भी सारा बॉलीवुड हो या अन्य सभी रोमन में संवाद पढ़ते हैं।
हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक एवं भाषा चिंतक बरूण कुमार ने चेतन भगत एवं असगर बजाहत के प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए कहा था कि अंग्रेजी को क्यों ना देवनागरी में लिखा जाए। जिस तरह से हम रोमन लिपि की और बढ़ रहे हैं, आज रोमन लिपि कि देवनागरी लिपि को बहुत बड़ी चुनौती है। यदि हम रोमन की ओर जाएंगे तो हमें हमारा अतीत भी बदलना होगा। भारतीय पारंपरिक ज्ञान और अध्यात्म को भी रोमन में बदलना होगा।
मोबाइल और इंटरनेट के ज़रिए एस एम एस के ज़रिए हिंदी को रोमन पद्धति में लिखने का चलन दिखाई देता है। बेशक ये रोमन लिपि का प्रयोग अभी प्रारंभिक चरण में है मगर फिर भी यदि सामाजिक, प्राद्योगिक, एवं व्यापारिक स्तर पर पहल ना की गई तो भविष्य में सम्भवतः रोमन लिपि अपनी जड़ें पकड़ लेगी और देवनागरी दम तोड़ देगी। क्योंकि भाषा की जीवंतता उसी के उपयोग पर निर्भर है । इसलिए समाजिक स्तर पर देवनागरी लिपि को बचाने के लिए प्रचार, प्रसार, प्रयोग के प्रत्येक स्तर पर जागरूकता लाई जाए।
इसके लिए सबसे पहले सरकार को कदम उठाना होगा, देवनागरी लिपि को सार्वभौमिक रूप से स्वीकारना होगा, सरकार के मानदेय कम करने के कारण स्वयं सेवी संस्थाएं भाषा और लिपि प्रचार में रूचि कम लेने लगी है , भाषा को हम किसी भी लिपि में लिखी सकते हैं लेकिन अगर हम किसी लिपि को नहीं अपनाते तो भविष्य में उस लिपि पर संकट गहराएगा । हमें हिन्दी भाषा को देवनागरी लिपि के रूप में आगे लाना चाहिए , जिससे भाषा रोज़गार से जुड़े ।
सरकार के साथ समाज के वरिष्ठ अधिकारियों, नेताओं और आम जनता को भी हिन्दी भाषा को और उसके देवनागरी लिपि के रूप को आगे लाने का प्रयास करना होगा, जिसके लिए स्कूलों में हिन्दी अनिवार्य करनी होगी, हिन्दी के साथ हिन्दी का रूपांतर देवनागरी भी प्रयोग में लानी होगी। बच्चों को देवनागरी की तरफ मोड़ना होगा, उन्हें अपनी प्राचीन, सभ्यता, संस्कृति, भाषा का ज्ञान देना होगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »प्रेम बजाजलेखिका एवं कवयित्रीAddress »जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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