
जहानाबाद। विश्व बेटी दिवस पर साहित्यकार और इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि ‘विश्व बेटी दिवस’ व इंटरनेशनल डॉटर्स डे पर जोर देकर बताया कि बेटियाँ पारिवारिक और सामाजिक संस्कृति का मूल स्तम्भ हैं। यह कथन केवल भावनाओं को व्यक्त नहीं करता, बल्कि एक गहन सामाजिक सत्य को उजागर करता है कि किसी भी समाज की प्रगति में बेटियों की भूमिका केंद्रीय होती है। ‘बेटी दिवस’ की शुरुआत भारत में 2007 से हुई।
उस समय, भारतीय ग्रीटिंग कार्ड कंपनी आर्चीज़ लिमिटेड ने इसे ‘राष्ट्रीय बेटी दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया। यह पहल उस समय के भारतीय समाज में व्याप्त गहरी सामाजिक मानसिकता को चुनौती देने के लिए की गई थी, जहाँ एक बेटे की तुलना में बेटी होने को अक्सर कलंक या बोझ माना जाता था। यह उत्सव बेटियों के प्रति नकारात्मक धारणा को बदलकर एक सकारात्मक और सम्मानजनक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था।
इस दिन का मुख्य लक्ष्य यह संदेश देना था कि बेटियाँ किसी भी तरह से बेटों से कम नहीं हैं। उन्हें भी समान सम्मान, अवसर और अधिकार मिलने चाहिए। इस भारतीय पहल की सफलता ने इसे दुनिया भर में फैलाया, और कई अन्य देशों ने भी अपने यहाँ ‘पुत्री दिवस’ या ‘डॉटर डे’ मनाना शुरू कर दिया। बेटी दिवस केवल एक उत्सव नहीं है; यह एक सामाजिक आंदोलन का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य निम्नलिखित समस्याओं का मुकाबला करना है:
- लैंगिक असमानता: भारत में पारंपरिक सामाजिक मानदंडों के कारण बेटों को बेटियों की तुलना में अधिक महत्त्व दिया जाता रहा है। बेटी दिवस इस लैंगिक असंतुलन को ठीक करने और समानता को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है।
- रूढ़िवादी सोच का अंत: यह दिन उन पुरानी और रूढ़िवादी सोच को खत्म करने का माध्यम है जो कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ उत्पीड़न जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म देती हैं।
सकारात्मक परिवर्तन की जागरूकता के लिए भारत सरकार ने भी 2007 से बेटी दिवस के आयोजनों का समर्थन किया है ताकि बेटियों की क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और समाज में उनके प्रति सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके। पाठक के अनुसार, बेटियाँ निस्वार्थ प्रेम और निस्वार्थता का प्रतीक होती हैं, और यह दिवस उनके द्वारा परिवार और समुदाय में लाए गए अपार प्रेम और आनंद का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करता है। ‘राष्ट्रीय बेटी दिवस’ की तिथि अलग-अलग देशों में भिन्न हो सकती है, लेकिन भारत में इसे हर साल सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है।
दुनिया भर में लोग इस दिन को अपनी बेटियों को खास एहसास दिलाने के लिए मनाते हैं। इसमें उन्हें उपहार देना, उनके साथ समय बिताना और सार्वजनिक मंचों पर उनकी उपलब्धियों को स्वीकार करना शामिल है। यह दिन बेटियों को यह महसूस कराने पर केंद्रित है कि वे परिवार और समाज के लिए कितनी महत्वपूर्ण और अमूल्य हैं। यह उत्सव समाज को स्पष्ट संदेश देता है कि बेटियाँ किसी भी राष्ट्र का भविष्य हैं और उन्हें शिक्षित, सशक्त और सम्मानजनक अवसर प्रदान करना समय की मांग है।