
नामी हकीम की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया से फंसाते थे ग्राहक, एसटीएफ के अनुसार पूरा कारोबार फैजान के खाते से संचालित होता था। इसी खाते में ग्राहकाें से मिलने वाली धनराशि जमा होती थी। फैजान का यह खाता अमरिया पीलीभीत में बैंक ऑफ बड़ौदा का है। दिलचस्प बात रही कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों को नकली दवाओं के कारोबार का पता नहीं चल सका।
[/box]रुद्रपुर। सितारगंज में एसटीएफ, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त कार्रवाई में नकली हर्बल दवाइयां बनाने वाले गैंग को लेकर कई खुलासे हुए हैं। दो सगे भाई शक्तिवर्धक हर्बल दवाएं बनाते थे और दवाओं के प्रचार के लिए दो फेसबुक पेज बनाए हुए थे। ये लोग नीम हकीम और वैद्यों को 3000 से 4000 रुपये देकर उनके वीडियो बनाते थे।
दो फेसबुक पेजों पर वीडियो को अपलोड कर दवाओं के लिए अपने नंबर प्रदर्शित करते थे। बरामद दवाइयों, मशीन और मकान को सील कर दिया गया है। बताया कि पीलीभीत के थाना अमरिया के ग्राम उदयपुर निवासी सलमान और उसका भाई फैजान हर्बल दवा बनाने का काम कर रहे थे। दोनों फेसबुक पेज की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए हर दिन के 500-500 रुपये प्रायोजित शुल्क अदा करते थे।
ग्राहकों की ओर से दवाओं की मांग आने पर कूरियर कंपनियों के जरिये दवाएं भेजकर ग्राहकाें से दवा के रुपये लेते थे। मामले में पुलिस ने किरायेदार का सत्यापन नहीं करने पर मकान मालिक का चालान किया है। एसटीएफ के सीओ सुमित पांडे की ओर से इंस्पेक्टर एमपी सिंह की अगुवाई में गठित टीम ने सितारगंज के थारु गौरीखेड़ा क्षेत्र में स्थानीय प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के साथ एक घर में छापा मारा। वहां हर्बल दवाएं बनाने लिए भारी मात्रा में चूर्ण, कैप्सूल, पाउडर मिला।
वहां तैयार दवाओं में किसी ब्रांड के रैपर, टैग नहीं लगे थे। इन दवाओं की ताकत बढ़ाने और बीमारियों के इलाज के लिए ऑनलाइन बिक्री की जा रही थी। मौके से टीम को मुर्गा लिखे हुए चूर्ण के कट्टे मिले हैं और इसी चूर्ण को प्लास्टिक के कैप्सूलों में भरा गया है। स्वास्थ्य विभाग ने इन दवाओं के सैंपल लेकर जांच के लिए भिजवाए हैं। बताया कि एक डिब्बे के 1575 रुपये वसूले जाते थे। सभी प्रकार की बीमारियों में एक ही प्रकार की दवा भेजी जाती थी। कहा कि इन दवाओं के संबंध में फोरेसिंक जांच से ही वास्तविकता सामने आ पायेगी।
एसटीएफ के अनुसार फैजान और सलमान ने दो मकान किराए पर लिए थे। एक मकान में दोनों भाई दवाएं बनाते थे और दूसरे मकान में दवाओं की बुकिंग के लिए कॉल सेंटर बनाया गया था। यहां दवाओं की बुकिंग के लिए चार युवक रखे गए थे और उनको सात मोबाइल दिए गए थे। ये लोग कॉल करने वाले ग्राहकों की डिमांड बुक करते थे और दवाओं के फायदे भी बताते थे। चारों लोग भी पीलीभीत के रहने वाले हैं। दोनों भाइयाें ने गोरखधंधे की खबर न किसी को लगे, इसलिए किसी स्थानीय को काम पर नहीं रखा था।
एसटीएफ के अनुसार आरोपियों ने पहले चार महीने से दवाएं बेचने की बात कही थी। लेकिन जब एसटीएफ ने रजिस्टर खंगाले तो उसमें फरवरी से दवाएं बेचने की बात सामने आई है। ये लोग साढ़े तीन हजार से अधिक डिब्बे ऑनलाइन बेच चुके हैं और इसकी एवज में लाखों रुपये कमा चुके हैं। यही नहीं कोरियर कंपनियों से अनुबंध रहता था।
एसटीएफ के अनुसार पूरा कारोबार फैजान के खाते से संचालित होता था। इसी खाते में ग्राहकाें से मिलने वाली धनराशि जमा होती थी। फैजान का यह खाता अमरिया पीलीभीत में बैंक ऑफ बड़ौदा का है। दिलचस्प बात रही कि पुलिस और खुफिया एजेंसियों को नकली दवाओं के कारोबार का पता नहीं चल सका।
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