
सुनील कुमार माथुर
सदस्य, अणुव्रत लेखक मंच, जोधपुर (राजस्थान)
इस मोबाइल के युग में आज व्यक्ति किताबों से दूर होता जा रहा है और किताबों को एक बोझ समझ रहा है, जबकि किताबें एकांत में व्यक्ति का सबसे अच्छा मित्र हैं। पुस्तकें ही एक ऐसा माध्यम हैं जो विद्यार्थियों को तकनीक, अनुशासन और नवाचार के माध्यम से समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान देती हैं। इसलिए व्यक्ति को किताबें पढ़ने के साथ ही साथ हर रोज अपने मन के विचारों का आदान-प्रदान करना चाहिए। इसी के साथ श्रेष्ठ साहित्य का सृजन भी करते रहना चाहिए, क्योंकि कड़ी मेहनत, अनुशासन और सृजनशीलता सफल जीवन की कुंजी हैं। पुस्तकें उपयोगी, संदर्भपूर्ण और पाठकों की आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए।
हमारे मन व मस्तिष्क में दिन भर ढेरों विचार आते और जाते हैं। अतः जो अच्छे विचार और भाव आएँ, उनके क्रियान्वयन के लिए भावना बनानी चाहिए। हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प से सब कुछ संभव है। अगर श्रेष्ठ साहित्य सृजन के प्रति हमारी श्रद्धा और समर्पण है, तो यह जीवन सार्थक है। वहीं दूसरी ओर समाज व सरकार का भी दायित्व है कि वे श्रेष्ठ साहित्य सृजनकर्ताओं की मेहनत और समर्पण को सम्मान दें और उन्हें आर्थिक सहयोग प्रदान करें।
मेहनत और अनुशासन से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है और जो लोग परिश्रमी होते हैं, उन्हें उनके पथ से कोई भी नहीं डिगा सकता। आदर्श संस्कारों की बदौलत ही इंसान अनुशासित, श्रमशील व ईमानदारी के साथ आगे बढ़ता है और धैर्य, सहनशीलता, त्याग, नम्रता, विनम्रता, कर्मठता व भक्ति के मार्ग की ओर प्रशस्त होता है। इसलिए जीवन में कड़ी मेहनत, अनुशासन और सृजनशीलता को अपनाए रखें और खुशहाल जीवन व्यतीत करें।