
गोपेश्वर (चमोली)। उत्तराखंड के चमोली ज़िले में बुधवार देर रात एक बार फिर प्राकृतिक आपदा ने दस्तक दी। घाट तहसील के नंदानगर क्षेत्र में अचानक बादल फटने की घटना ने कुंतरी लगा फाली, सैंती कुंतरी, धुरमा और सेरा गांव को तहस-नहस कर दिया। आधी रात के बाद जब अधिकांश लोग गहरी नींद में थे, तभी मूसलधार बारिश और बिजली गिरने से लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिला।
घटना रात करीब एक बजे की बताई जा रही है। तेज़ बारिश और पहाड़ों से गिरे मलबे ने देखते ही देखते कई मकानों को अपनी चपेट में ले लिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि शोर और मलबे की आवाज़ सुनकर लोग अंधेरे में ही घरों से निकलकर सुरक्षित स्थानों की ओर भागे। हालांकि, कई लोग समय रहते बाहर नहीं निकल पाए। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, कुंतरी लगा फाली से आठ और धुरमा से दो लोग लापता हैं।
पशुधन और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान
केवल घर ही नहीं, बल्कि ग्रामीणों की जीविका का साधन भी आपदा की चपेट में आ गया। कई गौशालाएं पूरी तरह तबाह हो गईं और बड़ी संख्या में मवेशी बह गए। मोक्ष गाड़ गदेरा उफान पर आने से सेरा गांव के कई मकान बह गए। नंदप्रयाग–नंदानगर मोटर पुल भी खतरे में है, जबकि पेट्रोल पंप और पुराने बाज़ार को जोड़ने वाला पुल पूरी तरह बह चुका है।
तेज़ बारिश और मलबे के चलते थराली क्षेत्र और सोल घाटी में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कई सड़कें बंद हो चुकी हैं और गांवों का संपर्क मुख्य बाज़ार से कट गया है। लोगों को राहत सामग्री और दवाइयों तक पहुँचाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
राहत और बचाव कार्य
चमोली के जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने बताया कि SDRF और NDRF की टीमें मौके पर राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं। मेडिकल टीमें और एंबुलेंस तुरंत प्रभावित क्षेत्रों में भेजी गई हैं। नंदानगर के सालूबगड़ और लांखी गांवों में भी मकानों को खतरा बताया गया है, जबकि धुरमा गांव में कई घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि वे लगातार प्रशासन से संपर्क में हैं और हालात की पल-पल निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने प्रभावित परिवारों के सुरक्षित होने की प्रार्थना की और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि राहत सामग्री और अस्थायी पुनर्वास की व्यवस्था तुरंत सुनिश्चित की जाए।
स्थानीय लोगों की दहशत
घटना के बाद से स्थानीय लोग दहशत में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि लगातार बारिश और बादल फटने जैसी घटनाओं ने उन्हें असुरक्षित महसूस कराया है। कई परिवार सुरक्षित स्थानों की तलाश में रिश्तेदारों के यहां या अस्थायी शिविरों में शरण ले रहे हैं।
मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में भी राज्य के कई हिस्सों में भारी बारिश की संभावना जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित निर्माण कार्य पहाड़ों की नाजुक पारिस्थितिकी को और कमजोर बना रहे हैं, जिससे इस तरह की आपदाएं बार-बार सामने आ रही हैं।
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इस आपदा ने एक बार फिर पहाड़ की नाजुक भौगोलिक स्थिति और प्रशासनिक चुनौतियों को उजागर किया है। सड़कों के टूटने और पुलों के बह जाने से राहत पहुँचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे हालात में कई सवाल उठते हैं—
- क्या पहाड़ी इलाकों में आपदा प्रबंधन की तैयारी पर्याप्त है?
- क्या सरकार और प्रशासन को पहले से कोई ठोस प्लानिंग करनी चाहिए थी?
- स्थानीय लोगों को किस तरह की प्रशिक्षण और सुरक्षा व्यवस्थाएँ दी जानी चाहिए?
- क्या लगातार बढ़ते निर्माण कार्य और पर्यावरणीय असंतुलन इस तरह की आपदाओं को और खतरनाक बना रहे हैं?
आपकी नज़र में इस आपदा से निपटने के लिए सबसे अहम कदम क्या होना चाहिए? अपनी राय, सुझाव और अनुभव नीचे लिखें। आपकी प्रतिक्रिया भविष्य की नीतियों और योजनाओं को दिशा दे सकती है।