
‘अभिव्यक्ति’ और सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी की गोष्ठी में रचनाकारों ने छूए दिल के तार
चंडीगढ़ | साहित्यिक चेतना की ऊष्मा और रचनात्मकता की अनुगूंज से गूंज उठा चंडीगढ़ का सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी सभागार, जहां ‘अभिव्यक्ति’ और सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मासिक साहित्य गोष्ठी ने कविता, लघुकथा, व्यंग्य और विचारों की शानदार बौछार की। इस गोष्ठी की मेज़बानी वरिष्ठ लेखिका सत्यवती आचार्य ने की, जिन्होंने इस आयोजन को अपने दिवंगत पति, सुप्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट और लेखक स्वर्गीय माधव आचार्य को समर्पित किया। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन ‘अभिव्यक्ति’ के निदेशक विजय कपूर ने किया।
रचनाओं में बहती रही संवेदना और सृजन की धाराएं
गोष्ठी की शुरुआत सत्यवती आचार्य की प्रेरणास्पद कविता “बढ़े चलो…” से हुई, जिसमें करुणा, प्रेम और स्नेह का आह्वान था। इसके बाद आर.के. सुखन की कविताएं “क्या सावन के गीत मैं छेड़ूं…” और “किसी का हो कोई खुदा ना करे…” ने दिलों को छू लिया। विजय कपूर की कविता “झील” में प्रकृति की निस्पंद गहराई को छूने वाला चित्र खिंचा, जबकि विमल कालिया की “मैंने देखा है एक शहर…” ने शहरी जटिलताओं को भावप्रवणता से प्रस्तुत किया। डॉ. सुनीत मदान की पंक्तियाँ “भविष्य भावनाओं के भित्तिचित्र से विकसित हुआ है” और डॉ. अर्चना आर. सिंह की “क्या देखा है तुमने देश मेरा?” ने चिंतन की नई दिशाएं खोलीं।
स्त्री संवेदना, आत्मचिंतन और सामाजिक व्याख्या
सारिका धूपड़ की कविता “कभी तुम भी बैठना खिड़की के पास अकेले…” ने आत्म-चिंतन की ओर प्रेरित किया। पंजाबी रचनाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए निम्मी वशिष्ठ की कविता “तन दी चादर हो गई झीनी…” ने भावनाओं की गहराई को पंजाबी रस में पिरोया। करीना मदान की “पत्थर की हो जाऊंगी मैं” और अश्वनी मल्होत्रा भीम की “जहां राम हो वहां काम नहीं…” जैसी रचनाओं ने स्त्री-विमर्श और समकालीन विडंबनाओं को स्वर दिया। शहला जावेद की “ये ख्वाहिशें भी कतई खुदसर होती हैं” और अमरजीत अमर की “हमको अक्सर इम्तिहां दर इम्तिहां मिलते रहे” जैसी रचनाएं जीवन की सूक्ष्म संवेदनाओं की झलक थीं।
डॉ. निर्मल सूद की “कोहिनूर” में प्रेम और आकांक्षा का द्वंद्व था, जबकि सीमा गुप्ता की “आदमी नजरबंद…” ने आधुनिक जीवन की विवशताओं पर सवाल खड़े किए। ममता ग्रोवर की “ना हमने शब्दों को जुबां बख्शी…” और खुशनूर कौर की “बहुत कुछ है जो उलझ गया है…” रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाती बेहतरीन रचनाएं थीं। अन्नू रानी शर्मा की “अपनी हर बात को नश्तर क्यों बनाना यारो” और बी.बी. शर्मा की “वक्त बलवान है, अपने निशान छोड़ेगा” ने भी जीवन के अनुभवों की गूंज छोड़ी।
दूसरे सत्र में कहानियों और व्यंग्य का जलवा
गोष्ठी का दूसरा सत्र गद्य रचनाओं को समर्पित रहा। विजय कपूर की कहानी “अमरु” ने गहरी संवेदना को छुआ, तो विमल कालिया की “दो बहनें” का एनिमेटेड पाठ रोचकता का केंद्र बना। राजिंदर सराओ की “मेरा रब मर गया” ने श्रोताओं को भीतर तक झकझोरा। वहीं, अश्वनी मल्होत्रा भीम ने अपने व्यंग्य “खाली दिमाग खोजों का घर” से हँसी का फव्वारा छोड़ा। हरमन रेखी ने “रिश्ते का चुपचाप खत्म होना” विषय पर गहराई से बात रखी।
गोष्ठी में विशेष रूप से उपस्थित रहे – लाइब्रेरियन डॉ. नीज़ा सिंह, वरिष्ठ कहानीकार सुभाष शर्मा, डॉ. जसवीर चावला, डॉ. दलजीत कौर, कवियत्री व अभिनेत्री बबीता कपूर, सुरिंदर कादडोड़, नीरू नीर और सुरिंदर कुमार। इनकी उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और ऊँचा किया। यह साहित्यिक आयोजन न केवल विभिन्न विधाओं की रचनात्मक प्रस्तुतियों का मंच बना, बल्कि लेखकों, कवियों और पाठकों के बीच संवाद की पुलिया भी साबित हुआ। ऐसे आयोजन साहित्यिक संस्कृति को समृद्ध करते हैं और नई प्रतिभाओं को प्रेरणा देते हैं।