
क्या विभाग के पास इतना पैसा भी नहीं है कि एक ऐसी वेबसाईट बनायें, जो छोटे-छोटे एरर से बंद हो जाये। बल्कि विभाग को उस वेब में एक कॉलम ऐसा भी बनाना चाहिए, जिसमें निम्न चीजें तुरंत प्रदर्शित हों-
1- किसी भी संस्थान को अतिरिक्त विज्ञापन जारी होते ही वेबसाईट पर प्रदर्शित हो।
2- उक्त अतिरिक्त विज्ञापन से संबंधित आवेदन, आरओ, ऑर्डर तथा प्रकाशित विज्ञापन की कॉपी भी प्रदर्शित हो।
3- किस पत्रकार की मान्यता है, किसकी नहीं है और मान्यता से संबंधित सभी तथ्य और प्रक्रिया भी प्रदर्शित हो।
4- वेब मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रत्येक कार्य का विवरण भी प्रदर्शित हो।
5- कुल मिलाकर सूचना विभाग के सभी कार्य, विज्ञापन आवंटन के साथ-साथ पूर्ण धनराशि का विवरण प्रदर्शित हो।
(ए.के. सिंह)
देहरादून। उत्तराखण्ड में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग लंबे समय से सरकारी संवाद का मुख्य स्तंभ रहा है। यह विभाग न केवल राज्य की खबरों और विज्ञापनों के जरिए जनता तक संदेश पहुँचाता है, बल्कि सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी भी इसी के माध्यम से साझा होती है। लेकिन अब इस विभाग के कामकाज को लेकर पत्रकारों में असंतोष की लहर चल रही है। कई पत्रकारों का कहना है कि विभाग “पसंदीदा” मीडिया हाउस को ही विज्ञापन और सरकारी सहयोग देता है, जबकि छोटे और मध्यम मीडिया हाउस और स्वतंत्र पत्रकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
सूत्रों की मानें, तो सूचना विभाग कई मामलों में सूचना अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी देने में देरी करता है या उसे छुपाने की कोशिश करता है। इसका सीधा असर पत्रकारों के कामकाज और स्वतंत्रता पर पड़ता है। कई पत्रकार इस असंतोष के कारण अपनी रिपोर्टिंग में बाधाओं का सामना कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल व्यक्तिगत लाभ या रेवड़ी बाँटने तक सीमित मामला नहीं है। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप और सूचना पर नियंत्रण का भी सवाल है। सरकारी विज्ञापन और जानकारी कुछ चुनिंदा मीडिया तक ही सीमित रह जाती है, जबकि अन्य पत्रकार पूरी तरह अनदेखे रह जाते हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या मुख्यमंत्री को इस पक्षपात की जानकारी है। अगर उन्हें पता है, तो यह नैतिक और प्रशासनिक सवाल खड़ा करता है। और अगर अनजान हैं, तो इसका मतलब है कि विभाग स्वतंत्र रूप से अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर निर्णय ले रहा है। अभी यह देखना बाकी है कि सरकार और विभाग इस मुद्दे पर क्या कार्रवाई करेंगे। पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ इसकी निगरानी कर रहे हैं, क्योंकि इस रवैये का प्रभाव सीधे राज्य की पत्रकारिता और लोकतांत्रिक सूचना प्रणाली पर पड़ता है।
यदि पाठक भी सच्चा मीडिया है और गोदी मीडिया या डरा हुआ मीडिया नहीं है तो निम्न लिंक में क्लिक करके हमारे साथ जुड़ सकता है। क्योंकि लड़ाई बहुत लम्बी है और लड़ाई अकेले की नहीं बल्कि सार्वजनिक हित की है।
WhatsApp : https://wa.me/message/KMFRQ5VWUZDUH1