
(देवभूमि समाचार)
देहरादून। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, जिसके बारे में सभी को पता है। अगर इस विभाग के अधिकारियों ने सभी पत्रकारों ने एक नजर से देखा होता, सभी के साथ समान व्यवहार किया होता तो ऐसी बातें सुनने को नहीं मिलती। इस विभाग के खिलाफ कई पत्रकारों ने, कई समाजसेवियों ने और कई आरटीआई एक्टिविस्टों ने कागजी लड़ाई लड़ने की कोशिश की। जिसमें से कुछ स्वयं चुप हो गये और कुछ को इस विभाग ने चुप करा दिया।
जैसा कि पिछले समाचारों में स्पष्ट आंकड़े रखते हुये सण्डे पोस्ट, खबर लाये हैं, पर्वत संकल्प, हिमालय गौरव उत्तराखण्ड, पर्वत जन, हस्तक्षेप, उत्तराखण्ड शंखनाद, न्यूज हाईट, दून हलचल, रॉयल हिन्दुस्तान और हिमांजली एक्सप्रेस पर सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा की गयी मेहरबानी को बताया गया है। इसे मेहरबानी इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि अगर यह अधिकारी अपनी ड्यूटी को ड्यूटी समझकर कर रहे होते तो इतने पत्रकारों को इनसे नाराजगी नहीं होती। इन बातों से स्पष्ट यह भी होता है कि किसी ने सही कहा कि…
जैसी करनी, वैसी भरनी ।। बोये पेड़ बबूल का तो अमवा कहां से होय।
देवभूमि समाचार टीम और साथ में जुड़े अन्य पत्रकारों से विज्ञापन से संबंधित कुछ नये आंकड़े प्राप्त हुये हैं। जिनके अनुसार श्रमिक मंत्र, विराट न्यूज चैनल, हार्ट ऑफ दून सिटी, आदित्य बुलेटिन, जन भड़ास, दून प्रसिद्धि, आज की तकरीर और हिमालय कला संगम नाम मुख्य हैं। यह सभी नाम भी सूचना एवं लोक संपर्क विभाग और सीएम के खासों में शामिल हैं। इससे संबंधित समाचार कल प्रकाशित किया जायेगा। बहरहाल, अभी यह जानना जरूरी है कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के महानिदेशक और विज्ञापन से संबंधित अधिकारी (मनोज शुक्ला और रवि बिजारनियां) के बारे में पत्रकारों की राय है।
तोहफा : सूचना विभाग ने सण्डे पोस्ट को दिये 1 करोड़ के विज्ञापन
1. मेरा समाचार पत्र ‘दून विचार’ प्रकाशित होते हुये 14 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज तक मेरा एक भी प्रार्थना पत्र विज्ञापन के लिए स्वीकृत नहीं हुआ। लगभग 1 वर्ष पूर्व एक पृष्ठ का विज्ञापन (लगभग 15 हजार रूपये) प्राप्त हुआ था, उसके लिए भी मेरे द्वारा बहुत जद्दोजहद की गयी थी। कुल मिलाकर कहें तो रिटायर पान सिंह बिष्ट, वर्तमान अधिकारी मनोज शुक्ला और महानिदेशक महोदय बंशीधर तिवारी जी की कार्यप्रणाली से मैं बिलकुल भी खुश नहीं हूं।
-सीएल चौधरी, 83 डोभालवाला, देहरादून
2. वर्ष 2006 से मेरी मासिक पत्रिका ‘इंडियन आईडल’ प्रकाशित हो रही है। कई बार सूचना एवं लोक संपर्क विभाग से विज्ञापन के संदर्भ में कई बार आवेदन किया गया, लेकिन एक बार भी स्वीकृति नहीं मिली। मैं स्वयं पान सिंह बिष्ट जी से उनसे उनके हिसाब से बात भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पान सिंह बिष्ट के बाद मनोज शुक्ला जी कुर्सी पर बैठे तो शुरूआती दौर में उनका व्यवहार अच्छा था। हम सभी एक-दूसरे को जान-पहचान रहे थे। उनके कुर्सी पर बैठने से अब तक लगभग डेढ़ साल में उनके द्वारा लगभग 30-35 हजार रूपये के विज्ञापन दिलाये गये।
-अनिल कक्कड़, 112 चन्द्रनगर, देहरादून
3. जब से मेरा समाचार पत्र शुरू हुआ है, तब से लेकर आज तक मेरे सभी आवेदनों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। मैं इस बात को क्या समझूं कि मेरे समाचार पत्र में क्या कमी है। क्या इन अधिकारियों को जवाब देने में कठिनाई होती है या इनको अपने खास लोगों को विज्ञापन बांटने से फुर्सत नहीं मिलती है। कुछ दिनों पूर्व विज्ञापन के लिए मनोज शुक्ला को अपना आवेदन दिया तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया और रवि बिजारनियां जी से मिलने को कहा। उसके बाद रवि बिजारनियां से मिलकर आवेदन दिया तो लगा विज्ञापन मिल जायेगा। आज बस इतना कहूंगा कि पता नहीं मेरा वो आवेदन कहां गया। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में महानिदेशक एवं विज्ञापन से संबंधित अधिकारी कोई भी व्यवहार कुशल नहीं है, सभी रटी-रटाई बातें करते हैं।
-रविन्द्र राठौर, यमुनोत्री एन्क्लेव, चन्द्रबनी रोड, देहरादून
4. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में चल रहा है भाई-भतीजावाद और कमीशन खोरी। जिसके हम पुराने पत्रकारों की कोई सुनवाई नहीं है। जब पान सिंह बिष्ट जी गद्दी पर बैठे थे, तब भी मेरे समाचार पत्र को एक भी अतिरिक्त विज्ञापन प्राप्त नहीं हुआ। एक निजी विज्ञापन प्राप्त करने के लिए मेरे द्वारा सीएम के पास आवेदन भेजा गया। सूत्रों के अनुसार मोहन जोशी जी ने आवेदन को स्वीकृत करके विभाग को भेज दिया गया। जिस निजी दर के विज्ञापन के आवेदन को पान सिंह बिष्ट के द्वारा केवल दस हजार रूपये के विज्ञापन पर रोक दिया गया। उस दिन पता चला कि जब सीएम की स्वीकृति को विभागीय अधिकारी न मान रहे हों, तो इसे क्या कहेंगे आप। पान सिंह बिष्ट के बाद उस कुर्सी पर मनोज शुक्ला बैठे हुये हैं। मेरे द्वारा छः माह पूर्व इनको विज्ञापन के लिए आवेदन दिया गया था। मैं आवेदन की स्थिति जानने के लिए जितनी बार उनके पास पहुंची, हमेशा उनका कहना यही रहता है कि विज्ञापन हम नहीं दे सकते, विज्ञापन डीजी साहब ही देंगे। यहां पर इतना समझना जरूर चाहिए कि शुक्ला जी को पूरे उत्तराखण्ड के समाचार पत्रों के साथ अन्य प्रदेशों के समाचार पत्रों से संबंधित कार्य को संभालने की ड्यूटी दी गयी है तो उसे निष्ठा से निभायें, न कि काम से पल्ला झाड़कर।
-गीता पाण्डेय, देहरादून
5. सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग देहरादून हमारे लिए केवल समाचार पत्र को जमा करने ही रह गया है। क्योंकि जितने प्रार्थना पत्र मेरे समाचार से संबंधित यहां जमा किये गये, एक पर भी कार्यवाही नहीं हुयी। मुझे भी अतिरिक्त विज्ञापन नहीं प्राप्त हुआ है। यह विभाग केवल अपने चित-परिचितों को ही अच्छे और बड़े विज्ञापन देता है। कई जगह से यह भी पता चला है कि विज्ञापन प्राप्ति के लिए यह विभाग लेन-देन की बात करता है। इस संबंध में सुबूत न होने के कारण ही हम लोग चुप हैं। जब पान सिंह बिष्ट ने कोई भी कार्य अच्छे व्यवहार से नहीं किया और मनोज शुक्ला के भी ऐसे ही हाल हैं।
-ऐ.के. सिंह, कृष्णा मार्केट, सुभाषनगर, देहरादून
6. साप्ताहिक समाचार पत्र ‘रणजीत स्वर’ के लिए विज्ञापन प्राप्त करने के संबंध में कई बार विभाग को प्रार्थना दिये गये। लेकिन मनोज शुक्ला ने एक भी प्रार्थना पत्र कार्यवाही नहीं की। सीधा-सीधा मतलब है कि प्रार्थना पत्र को कूड़े का डिब्बा दिखा दिया गया। जबकि दूसरी ओर अनेक समाचार पत्रों को निजी और विभागीय दर पर अच्छे-अच्छे विज्ञापन दिये जा रहे हैं। क्यों… यह समझना बहुत मुश्किल है, जबकि नियमों ऐसा बिलकुल नहीं है कि अपने मनपसंदीदा समाचार पत्र को ही जवाब दो और उनको ही विज्ञापन दो।
-अजय नेगी, 83 भण्डारी बाग, देहरादून
7. विज्ञापन के लिए सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में आवेदन करने का मतलब है कि लाखों कंकड़ों के बीच से एक हीरे का पत्थर ढूंढकर निकालना। ऐसा ही हाल इस विभाग का भी है, जहां विज्ञापन के लिए आवेदन केवल लिये जाते हैं, उन पर कितनी कार्यवाही होती है, यह तो राम ही जाने। ऐसे ही मेरे समाचार पत्र ‘दून क्राईम समाचार’ का भी है। न जाने कितने समाचार मेरे द्वारा सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के खिलाफ पढ़े हैं। यह भी सुनने को मिला है कि यह विभाग भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसा है। अब तो मुझे भी इन बातों पर भरोषा करना ही पड़ेगा। ऐसे अधिकारियों के ऊपर कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।
-प्रदीप राठौर, देहरादून
8. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, एक ऐसा विभाग है, जहां अधिकारी से विभागीय और निजी दर पर विज्ञापन के लिए पूछो तो वह महानिदेशक को आगे कर देता है। महानिदेशक को लेकर बातें करो तो सभी सीएम की दुहाई देने लगते हैं। यदि सीएम ही पूरा विभाग संभाल रहे हैं तो महानिदेशक बंशीधर तिवारी क्या कर रहे हैं। यदि बंशीधर तिवारी जी ने यह कार्य रवि बिजारनिया और मनोज शुक्ला के हाथों में सौंप रखा है तो यह दोनों अधिकारी सभी पत्रकारों को समान भाव से क्यों नहीं देख रहे हैं। क्या इन अधिकारियों को विभाग में वरिष्ठ पद देते हुये ‘‘बहानों की पोटली’’ भी दे दी गयी थी, जिससे कि यह समाचार पत्रों को विज्ञापन देने के मामले में बहानों की सौगात देते रहें। मेरी मासिक पत्रिका ‘हिमवंत मेल’ के विज्ञापन से संबंधित विभागीय और निजी दर पर आवेदन को लेकर मैं रवि बिजारनियां जी और मनोज शुक्ला जी से भी मिला, लेकिन आज तक मेरा एक भी आवेदन मंजूर नहीं किया गया। क्योंकि इनके अनुसार विज्ञापन डीजी साहब देंगे, जो मुश्किल से हफ्ते में 2 या 3 दिन विभाग में कुछ घण्टे तक रहते हैं और उस दिन कई पत्रकार जुबां पर मक्खन लेकर उनके कमरे के बाहर बैठे रहते हैं। अतः कुल मिलाकर विभागीय और निजी दर पर विज्ञापन पाने के लिए आवेदन करना एक टेढ़ी खीर है।
-आशीष डोभाल, दूधली, देहरादून
9. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग से विज्ञापन पाना बहुत मुश्किल है, चाहे वह विभागीयद दर पर हो या निजी दर पर हो। क्योंकि यह विभाग बहानों के लिए मशहूर है। अपने समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशन के लिए कई आवेदन मेरे द्वारा मनोज शुक्ला जी को दिये गये, उसके बाद कई बार मैं उनसे मिलकर भी आया। मैं जब भी मनोज शुक्ला जी से विज्ञापन के आवेदन की स्थिति जानने के लिए मिलने आया, उनका हमेशा एक ही जवाब रहता था कि फाईल चला दी है, डीजी साहब ही आपकी फाईल को स्वीकृत करेंगे। आज तक विज्ञापन नहीं मिला, जिसका सीधा मतलब है कि न फाईल चलाई गयी, न डीजी साहब ने देखा और न ही मुझे विज्ञापन मिला। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग की ऐसी कार्यप्रणाली को रोकना बहुत जरूरी है, जहां विज्ञापन के मामले में केवल सेटिंग करनी पड़ती हो।
-नीतीश नौटियाल, मोहकमपुर, देहरादून
51 लाख : विज्ञापन विभाग या ‘विवेक देवता’ की निजी मेहरबानी योजना…?
10. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग को बहानों का विभाग कहना सही होगा। ऐसा कहने से मेरा मतलब केवल इतना है कि यदि पत्रकारिता अर्थात लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की देख-रेख करना, समाचार पत्रों को विज्ञापन देना और प्रकाशित समाचारों की जांच करना इस विभाग का कार्य है तो पत्रकारों में भेद-भाव क्यों किया जा रहा है। किसी समाचार पत्र को कुछ नहीं और किसी समाचार पत्र को करोड़ों की सौगात दे देना, मुझे नहीं लगता कि यह विभाग के नियमों के अनुरूप होगा। इस विभाग के अधिकारी-कर्मचारी केवल बातों और बहानों को लेकर घूमते हैं। जिससे कोई भी पत्रकार खुश नहीं हो सकता है।
-सलीम रज़ा, ब्राह्मणवाला, देहरादून