
वाराणसी। वाराणसी में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत ने भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के स्वच्छता एवं सहायक सेवाओं विभाग में वरिष्ठ सहायक (लिपिक) के पद पर कार्यरत रहे राजेश कुमार को अदालत ने दोषी ठहराते हुए पांच साल की कठोर कारावास और एक लाख रुपये का अर्थदंड दिया है। यह फैसला 12 सितंबर 2025 (शुक्रवार) को सुनाया गया।
मामला वर्ष 2016 का है। शिकायतकर्ता के पिता स्व. कल्लू बीएचयू में स्वीपर के पद पर कार्यरत थे। सेवाकाल में ही उनकी मृत्यु हो जाने के बाद परिवार को मृत्यु लाभ (Death Benefits) और अन्य सेवा संबंधी बकाया धनराशि पाने का अधिकार था। लेकिन इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के नाम पर लिपिक राजेश कुमार ने शिकायतकर्ता से 75,000 रुपये की रिश्वत की मांग की। शिकायत पर संज्ञान लेते हुए सीबीआई ने जाल बिछाया।
- 2 जून 2016 को सीबीआई ने मामला दर्ज किया।
- इसके बाद शिकायतकर्ता की मदद से ट्रैप की कार्रवाई की गई।
- इस दौरान राजेश कुमार को 30,000 रुपये रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया।
जांच और आरोप पत्र
गिरफ्तारी के बाद सीबीआई ने आरोपी से पूछताछ की और विस्तृत जांच की। पर्याप्त साक्ष्य मिलने पर सीबीआई ने 30 जून 2016 को आरोपी राजेश कुमार के खिलाफ आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल किया। लंबी सुनवाई के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने राजेश कुमार को दोषी करार दिया। अदालत ने माना कि राजेश कुमार ने सरकारी कर्मचारी रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया और शिकायतकर्ता से रिश्वत लेने का अपराध किया है। इसके बाद अदालत ने उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत दोषी मानते हुए पांच साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने से दंडित किया।
भ्रष्टाचार पर सख्त संदेश
अदालत के इस फैसले को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से जुड़े कर्मचारी द्वारा मृतक कर्मचारी के परिजनों से लाभ दिलाने के नाम पर रिश्वत मांगना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी गंभीर अपराध माना गया।