
राज शेखर भट्ट
देहरादून। सूचना विभाग में सरकार के पैसे का कितना सदुपयोग होता है, यह बात आज पता चली है। अपने ही अपनों के साथ नहीं होते, इस बात का तकाजा भी आज पूरा हुआ है। क्योंकि एक सप्ताह से सूचना विभाग के द्वारा दिये गये विज्ञापनों, समय और धनराशि का खुलासा किया जा रहा है, लेकिन कोई अन्य पत्रकार इस मामले साथ देने को आगे नहीं आ रहा है। बल्कि अधिकांशतः फोन पर सुझाव का पिटारा लेकर आते हैं। बात करें सूचना विभाग और सरकार के पैसे के सदुपयोग की तो सात दिन से वही दिखाने की कोशिश की जा रहा है। लेकिन एक कहावत सच्ची साबित होती नजर आ रही है कि…
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
अब बात करते हैं सूचना विभाग के नजरानों की और सूचना विभाग के नियम-कानून की, जो रोज बनते हैं और रोज टूटते हैं। सूत्रों के अनुसार सबसे पहला नाम है एक साप्ताहिक समाचार पत्र, जिसका नाम ‘‘न्यूज हाईट’’ है। इस समाचार पत्र के द्वारा फरवरी 2023 से दिसम्बर 2024 तक शायद अतुलनीय कार्य किये गये होंगे। जिसके फलस्वरूप सूचना महानिदेशक ने इस 1 वर्ष 10 माह के समय में इस समाचार पत्र को लगभग 21 लाख रूपये के विज्ञापन दिये। महानिदेशक महोदय से विनम्र निवेदन है कि वो अतुलनीय कार्य क्या थे, सभी को बतायें। जिससे कि आपको खुशी हो और सभी के लिए नियम-कानून एक हों।
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बहरहाल, सभी समाचार पत्र नियम-कानून को ध्यान में रखकर ही चलते हैं। सूचना विभाग के अधिकारी और महानिदेशक नियमों को ध्यान में रखते हैं या ताक पर, जल्द पता चल जाएगा। उपरोक्त समाचार पत्र को 1 वर्ष 10 माह में 21 लाख रूपये के विज्ञापन दिये गये हैं, लेकिन एक समाचार पत्र को सिर्फ 3 माह के अंतराल में लगभग 10 लाख रूपये के विज्ञापन दे दिये गये। लगता इस समाचार पत्र के कार्य ज्यादा अतुलनीय रहे होंगे और इस समाचार पत्र ने देहरादून में अपनी प्रसिद्धि से हलचल मचा दी होगी। इसीलिए इस समाचार पत्र का नाम है ‘‘दून हलचल’’ और यह भी साप्ताहिक समाचार पत्र है।
उत्तराखण्ड सरकार का खजाना है, जिसका महानिदेशक महोदय द्वारा इतना सदुपयोग किया जा रहा है। महानिदेशक महोदय का विवेक अब महाविवेक बन चुका है, जिससे सभी पत्रकारों को कई सुख-सुविधा प्राप्त हो रही है। ऐसी परिस्थितियों को देखकर आज मुझे मान्यता प्राप्त पत्रकार स्व. चन्द्र शेखर भट्ट जी की कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो बहुत कुछ कहती है-
यहां-वहां सब ओर, कुकुरमुत्ते जम गये।
अंधे सेनानायक, काने राजा बन गये।
गूंगे दुभाषी, पढ़े-लिखे फैशनेबल, अनपड़ टीचर बन गये।
क्या होगा तेरा भारत, कब तक उतारूं तेरी आरत।
उत्तराखण्ड में अब कुछ ऐसा ही माहौल दिखाई दे रहा है, जहां पुराने पत्रकार सूखी रोटी खा रहे हैं और महानिदेशक महोदय नये पत्रकारों को सरकारी खजाने के द्वारा से शहद और घी-रोटी से नहला रहे है। बहरहाल, बात करते हैं अक्टूबर 2024 से जून 2025 के समय की। इस 8 माह के समय में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग ने अपने नियमों को गौर से देखा और महानिदेशक महोदय की नजर एक और साप्ताहिक समाचार पत्र पर पड़ी। इस समाचार पत्र नाम ‘‘रॉयल हिन्दुस्तान’’ है और इस समाचार पत्र को विभाग से इस 8 माह के समय में 10 लाख रूपये के विज्ञापन प्राप्त हुये। क्यों दिये, क्या कारण थे, क्या नियम थे, क्या कार्यवाही थी? अब तक विभाग के पास इसका केवल एक जवाब है, जिसे विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने महानिदेशक महोदय का विवेक कहा है।
जय हो विवेक देवता की… जो कुछ समाचार पत्रों पर मेहरबान होता है और फिर लगातार उन्हीं पर मेहरबान होता रहता है। यह एक ऐसा विवेक है, जो शांत स्वरों में यह भी कहता है कि बाकि जिन पत्रकारों को हमने विज्ञापन नहीं दिये हैं, वो घुइयां छीलें। क्योंकि समाचार पत्रों की नियमानुसार छंटनी की जा चुकी है, उन्हीं में से एक ‘‘हिमांजली एक्सप्रेस’’ है। इस समाचार पत्र को विभाग द्वारा जुलाई 2024 से मई 2025 तक लगभग 9 लाख 50 हजार रूपये के विज्ञापन दिये गये हैं। यह 10 माह का समय नियम-कानूनों मान्यता देता है या धज्जियां उड़ाता है, यह समय बतायेगा।
अंततः एक ओर लगभग 51 लाख रूपये की दक्षिणा चन्दन के टीके के साथ महानिदेशक महोदय ने 4 समाचार पत्रों को दे दी है। वहीं दूसरी ओर परिस्थितियां साफ-साफ भाषा में कहती हैं कि सभी पत्रकार बंधुओं को एक बात याद रखनी चाहिए, ‘‘हंस चुगेगा दाना तुनका, कौवा मोती खायेगा।’’ लेकिन आज का समय जो है, वो कल नहीं रहेगा। हो सकता है समय ऐसी करवट बदले कि न हंस रहेगा और न ही कौवा रहेगा। जो दाना-तुनका और मोती बचेगा वो एक साथ कबाड़ी उठा ले जायेगा।