
🎉 महानिदेशक को भेजा ज्ञापन, विभागीय आदेशों पर जताई नाराजगी 🎉
अल्मोड़ा। उत्तराखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति और लोक परंपराओं के संवाहक कलाकारों ने राज्य के सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग के खिलाफ तीखी नाराजगी जताई है। प्रदेश के पंजीकृत सांस्कृतिक दलों ने विभाग द्वारा जारी हालिया आदेशों को न केवल “कलाकार विरोधी” बल्कि “संस्कृति के अपमान” के रूप में करार दिया है। नाराज कलाकारों ने महानिदेशक, सूचना एवं लोकसंपर्क को ज्ञापन भेजकर विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं और तत्काल जियो टैगिंग संबंधी आदेश वापस लेने की मांग की है।
बैठक में मौजूद कलाकारों ने कहा कि विभाग लोकसंस्कृति और लोककला के संवर्धन के नाम पर कलाकारों को योजनाओं के जाल में उलझा रहा है। परंपरागत लोक दलों से जियो टैगिंग प्रमाणपत्र की मांग न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों में काम करने वाले वास्तविक कलाकारों का अपमान भी है। उन्होंने कहा कि यह आदेश केवल कुछ गिने-चुने शहरों के लोगों के लिए सुविधाजनक है, जबकि पहाड़ के दूरस्थ इलाकों में रहने वाले असली लोक कलाकारों के पास न तो तकनीकी साधन हैं और न ही ऐसी व्यवस्था जिससे वे इस आदेश का पालन कर सकें।
“विभाग संस्कृति नहीं, आंकड़े गिन रहा है”
कलाकारों ने आरोप लगाया कि विभाग आज संस्कृति के असली अर्थ से भटक चुका है। अब लोककला, नृत्य, गीत, वादन की गुणवत्ता देखने के बजाय विभागीय अधिकारी कागज़ी फाइलें और ऑनलाइन फॉर्म भरवाने में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृति का मर्म लोक जीवन में है, न कि डेटा शीट्स में। विभाग के अफसर कलाकारों के साथ संवाद करने की बजाय उन्हें नोटिसों और नियमों में उलझा रहे हैं।
बैठक में उपस्थित कलाकारों ने कहा कि राज्य की पहचान उसकी लोकसंस्कृति से है। लेकिन आज वही कलाकार, जिन्होंने वर्षों तक मेलों, पर्वों, और सरकारी कार्यक्रमों में लोकधुनों के ज़रिए उत्तराखंड की छवि को ऊंचा किया, अब विभागीय अनदेखी और अपमान के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि कलाकारों के लिए विभाग ने न तो कोई स्थायी मंच बनाया, न ही पारिश्रमिक वितरण में पारदर्शिता रखी। इसके बजाय नए-नए तकनीकी आदेश थोपकर उन्हें काम से बाहर किया जा रहा है।
🌟 न्यायिक लड़ाई की चेतावनी 🌟
कलाकारों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि विभाग अपने आदेशों को वापस नहीं लेता, तो वे न्यायालय की शरण लेंगे। उन्होंने कहा कि विभाग को चाहिए कि वह लोक कलाकारों के हितों की रक्षा करे, न कि उन्हें प्रशासनिक झंझटों में फंसाए। कलाकारों ने पूर्व में किए गए कार्यों का सत्यापन करने के लिए पुराने प्रमाणपत्र और बिल भुगतान प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की भी मांग की।
बैठक में मौजूद रहे कलाकार
बैठक में वरिष्ठ लोक कलाकार नरेश पांडे, मोहन रौतेला, नीलम रौतेला, मुकेश रौतेला, दीवान सिंह, नरेश तिवारी, हरीश जोशी, हेमंत रौतेला, मदन सिंह आदि उपस्थित रहे। सभी ने एकमत से कहा कि विभाग की मनमानी से लोककला की जड़ें कमजोर हो रही हैं और यदि सरकार ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड की लोकधुनें केवल फाइलों और यादों में रह जाएंगी।








