
सत्येन्द्र कुमार पाठक
करपी, अरवल, बिहार
सनातन धर्म की दीप संस्कृति में नरक चतुर्दशी, जिसे नरक चौदस, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है, प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। पांच दिवसीय दीपावली महोत्सव का यह दूसरा दिन है और इसका धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यह दिन केवल दीपों के उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि जीवन में अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और नरक के कष्टों से मुक्ति का प्रतीक है।
इस पर्व के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ, मान्यताएँ और विशिष्ट अनुष्ठान जुड़े हुए हैं, जो इसे भारतीय संस्कृति में एक अनूठा स्थान प्रदान करते हैं। यह नाम भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध करने की कथा से जुड़ा है। इसका शाब्दिक अर्थ है — “नरक से मुक्ति दिलाने वाली चतुर्दशी।” यह दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन भी दीपावली की ही तरह घरों में दीप जलाए जाते हैं, जो आने वाले बड़े पर्व की तैयारी और उसकी झलक प्रस्तुत करते हैं।
रूप चतुर्दशी / रूप चौदस
इस दिन अभ्यंग स्नान (तेल और उबटन लगाकर स्नान) करने की प्रथा है, जिससे व्यक्ति को सौंदर्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे “रूप चतुर्दशी” कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में इस दिन मां काली की पूजा की जाती है, जिन्हें बुरी शक्तियों और संकटों का नाश करने वाली देवी माना जाता है।
नरकासुर की कथा
वराह पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार और भूदेवी के पुत्र असुर नरकासुर प्राग्ज्योतिषपुर (वर्तमान असम के गुवाहाटी क्षेत्र) का राजा था। वह अत्यंत क्रूर और दुराचारी था। उसने 16,100 राजकुमारियों को बंदी बना रखा था। उसकी अत्याचारिता से त्रस्त देवता और ऋषि-मुनि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को मुक्त कराया।
इस विजय के उपलक्ष्य में लोगों ने घरों में दीप जलाए। तभी से यह पर्व बुराई पर अच्छाई और अत्याचार पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी कन्याओं को सम्मान दिलाने हेतु उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में चर्मण्यवती (वर्तमान चंबल क्षेत्र) के राजा रन्तिदेव अत्यंत धर्मात्मा थे। एक बार एक भूखा ब्राह्मण उनके द्वार से बिना भोजन किए लौट गया। मृत्यु के समय यमदूत उन्हें लेने आए और बताया कि यही उनके नरकगमन का कारण है।
राजा ने एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों से उपाय पूछा। ऋषियों ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान बताया। राजा ने ऐसा ही किया और पाप से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त हुए। तभी से यह मान्यता बनी कि इस दिन व्रत और पूजा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। नरक चतुर्दशी पर संध्या के समय भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। यह दीपदान अकाल मृत्यु और दुर्भाग्य से रक्षा के लिए होता है।
माना जाता है कि यम के निमित्त दीप जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जलाकर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे घर के बाहर रख देता है — यह दीपक “यम का दीया” कहलाता है।
रूप चतुर्दशी और अभ्यंग स्नान
इस दिन सूर्योदय से पूर्व तेल और उबटन लगाकर, अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने का विशेष महत्व है। इसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे व्यक्ति पापों से मुक्त होकर नरक से मुक्ति प्राप्त करता है। यह स्नान रूप और सौंदर्य प्रदान करने वाला भी माना गया है, इसलिए इसे “रूप चौदस” कहा जाता है। स्नान के बाद भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक है। स्नान के पश्चात यमराज के नाम तर्पण का विधान भी है, जिसमें तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है।
संध्या के समय घर के हर कोने में दीप जलाए जाते हैं। विशेष रूप से यमराज के लिए दीपदान किया जाता है — यह दीपक मुख्य द्वार, तुलसी के पास या घर के बाहर रखा जाता है। इस पर्व का एक उद्देश्य घर की स्वच्छता भी है। दीपावली से पहले लोग अपने घरों का कचरा बाहर निकालते हैं, जो नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है। नरक चतुर्दशी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में कितना भी अंधकार क्यों न हो, सत्य, धर्म और साहस से उस पर विजय प्राप्त की जा सकती है। यह दिन नरक के भय से मुक्ति, पापों के क्षय और पुण्य की प्राप्ति का प्रतीक है।
यह पर्व दीपों की रोशनी से न केवल घर को, बल्कि मन के अंधकार को भी दूर करता है और हमें सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। छोटी दीपावली का यह त्योहार वास्तव में बड़े उत्सव — दीपावली — की शुरुआत है, जो धार्मिक आस्था, स्वच्छता, सौंदर्य और यमराज के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का प्रतीक है, जहाँ प्रत्येक पर्व आध्यात्मिक उत्थान और सामाजिक समरसता का संदेश लेकर आता है।