
सत्येन्द्र कुमार पाठक
करपी, अरवल, बिहार
शिक्षा का वास्तविक अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना या अच्छे अंक लाना नहीं है। यह उससे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति के भीतर ज्ञान, कौशल और नैतिक मूल्यों का समन्वय स्थापित करती है, उसे एक जिम्मेदार नागरिक और एक बेहतर इंसान बनाती है। आजकल की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हम अक्सर शिक्षा को केवल रोजी-रोटी कमाने का साधन मान बैठते हैं।
हम भूल जाते हैं कि डिग्री या नौकरी पाना एक पड़ाव हो सकता है, लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं। अगर हमारी शिक्षा हमें धैर्य, करुणा, ईमानदारी और विनम्रता नहीं सिखाती, तो वह अधूरी है। महात्मा गांधी ने कहा था, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वांगीण और सर्वोत्तम विकास से है।” इसका मतलब है कि शिक्षा को हमारे दिमाग के साथ-साथ हमारे दिल और हाथों को भी विकसित करना चाहिए। हमें केवल ‘क्या सोचना है’ यह सिखाने के बजाय ‘कैसे सोचना है’ यह सिखाना चाहिए।
सच्ची शिक्षा हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है। यह हमें सिखाती है कि असफलता भी सीखने का एक हिस्सा है और हार मान लेना किसी समस्या का हल नहीं है। एक शिक्षित व्यक्ति वह नहीं है जो हर सवाल का जवाब जानता हो, बल्कि वह है जो हर समस्या का सामना रचनात्मक ढंग से कर सकता हो।
निष्कर्ष: हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में चरित्र निर्माण और नैतिक मूल्यों को सर्वोच्च स्थान देना होगा। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे जहाँ ज्ञान का प्रकाश अहंकार को नहीं, बल्कि मानवता और सहयोग को बढ़ावा दे। शिक्षा एक मशाल है, जो केवल हमारे जीवन को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को रोशन करती है।









