
सुनील कुमार माथुर
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में रंगोली का विशेष स्थान है। भारतीय महिलाएं तीज-त्योहार पर घर के आंगन, चौक और द्वार पर खुले में रंगोली बनाती हैं, जिसे सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कु. अंशुल माथुर ने बताया कि सदियों से परिवार में रंगोली की परंपरा रही है। यह केवल रंगों का संगम ही नहीं है, अपितु नारी की कला और जीवन को निखारने का एक सुनहरा अवसर भी है।
उन्होंने बताया कि रंगोली न केवल रंगों का एक मेल है, बल्कि यह एक शुभ कार्य है और भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान भी है। वैसे भी रंगोली का जीवन में बड़ा ही महत्व है। रंगोली बनाना कोई टाइम पास करना नहीं है, अपितु रंगोली के रंग जीवन में नई दिशा और दशा दिखाते हैं। इतना ही नहीं, यह दुनियादारी के नित्य नए अनुभव भी सिखाती है; बस जरूरत है अनुभवों को सीखने की।
अंशुल माथुर की बड़ी बहन डॉ. आरुषि माथुर ने बताया कि रंगोली बनाने से आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच, दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति बढ़ती है। वहीं दूसरी ओर संतुलित जीवन जीने की कला, सही मार्गदर्शन, आत्मविश्वास और यश भी बढ़ता है। रंगोली रंगों का सुंदर मेल है, जो दिमाग को तेज करता है और जीवन को निखारने का सुनहरा अवसर देता है।
रंगोली मन के विकारों को नष्ट करती है। नई सोच और ऊर्जा मिलती है, वहीं जीवन में आपसी प्रेम और स्नेह की भावना भी बढ़ती है। रंगोली केवल तीज-त्योहार और घर-परिवार के आंगन, चौक या द्वार पर स्वागत-सत्कार की परंपरा ही नहीं है, अपितु जीवन में नई ऊर्जा का संचार भी करती है।
इंजी. अंशुल माथुर और डॉ. आरुषि माथुर का कहना है कि रंगोली का आज भी उतना ही महत्व है जितना पहले था। बस फर्क इतना है कि आज महिलाएं बाजार से कागज या प्लास्टिक पर छपी रंगोली खरीदकर औपचारिकता निभा रही हैं और रंगोली बनाने में लगने वाले समय में मौज-मस्ती कर रही हैं। खैर, जो भी हो, रंगोली का महत्व आज भी है और आने वाली पीढ़ी इसे इसी प्रकार निभाती रहेगी, ऐसी आशा और विश्वास है।
सुनील कुमार माथुर
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच, (स्वतंत्र लेखक व पत्रकार), 39/4 पी डब्ल्यू डी कालोनी, जोधपुर, राजस्थान
Nice article
अति उत्तम एवं उत्कृष्ट कार्य ।