
सत्येन्द्र कुमार पाठक
मुजफ्फरपुर, जिसे प्यार से “शाही लीची नगरी” कहा जाता है, बिहार का एक प्रमुख शहर है। यह न केवल अपनी अद्वितीय मिठास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि एक समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र भी है। इस शहर की पहचान, सभ्यता और जीवनशैली को यहाँ से गुज़रने वाली नदियों ने सदियों से आकार दिया है। इन जीवनरेखाओं में से एक महत्वपूर्ण नदी है नून नदी। नून नदी मुजफ्फरपुर के इतिहास, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में अमूल्य भूमिका निभाती आई है। यह नदी शहर के विकास की मूक साक्षी रही है।
दुर्भाग्य से आज यह ऐतिहासिक जलधारा उपेक्षा और प्रदूषण के गंभीर संकट का सामना कर रही है, जिससे यह विलुप्ति के कगार पर है। इस आलेख में नून नदी के ऐतिहासिक महत्व, वर्तमान चुनौतियों और इसके पुनर्जीवन के लिए आवश्यक सामूहिक प्रयासों पर चर्चा की गई है। नून नदी हिमालय श्रृंखला से निकलने वाली एक सहायक नदी है जो मुजफ्फरपुर और वैशाली जिलों से होकर गुजरती है। इसका महत्व केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी है। नून नदी का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह नदी मुजफ्फरपुर शहर के विकास में महत्वपूर्ण रही है। इतिहासकार मानते हैं कि सभ्यताएं हमेशा जलस्रोतों के किनारे विकसित हुई हैं, और नून नदी इसका अपवाद नहीं है।
प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष: नदी के किनारे बसे शहर के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाए गए हैं, जो इसके समृद्ध अतीत की गवाही देते हैं।
दस्तावेजी प्रमाण: प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी नून नदी का उल्लेख मिलता है, जो दर्शाता है कि यह सदियों से इस क्षेत्र की जीवनरेखा रही है। इसका प्रवाह मार्ग और जलस्तर उस समय की कृषि, व्यापार और दैनिक जीवन को प्रभावित करता था। नून नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि मुजफ्फरपुर की सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा है।
आस्था के केंद्र: नदी के किनारे अनेक धार्मिक स्थल और तीर्थ स्थल स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था के केंद्र बने हुए हैं। पर्व-त्योहारों पर नदी में स्नान और पूजा-अर्चना करने की परंपरा सदियों पुरानी है।
सांस्कृतिक विविधता: नदी के तट पर होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और त्योहार शहर की अद्भुत सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। ये आयोजन स्थानीय कला, संगीत और परंपराओं को पोषित करते हैं, जैसे छठ पूजा के दौरान नून नदी के घाटों पर उमड़ने वाली भीड़। नून नदी मुजफ्फरपुर की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।
कृषि और उद्योग: नदी के पानी का उपयोग कृषि और उद्योगों में किया जाता रहा है। इसके किनारे बसे गाँवों की सिंचाई इसी जल पर निर्भर थी, जिससे क्षेत्र की कृषि समृद्धि बनी रहती थी।
व्यापार और वाणिज्य: नदी के किनारे बसे शहर के विभिन्न हिस्सों में व्यापार और वाणिज्य के केंद्र विकसित हुए। अतीत में, जलमार्गों का उपयोग माल और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए होता था, जिससे स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिला। आज मुजफ्फरपुर की यह महत्वपूर्ण धरोहर गंभीर संकट का सामना कर रही है। वर्षों की उपेक्षा और प्रदूषण ने नून नदी को विलुप्ति के कगार पर ला खड़ा किया है।
उपेक्षा और प्रदूषण के कारण समस्याएँ:
- जलकुंभी और गाद (सिल्ट): नदी का प्राकृतिक प्रवाह रुक गया है।
- गंदे नाले में तब्दील: कई स्थानों पर यह नदी सूख गई है या गंदे नाले में बदल गई है।
- स्थानीय परेशानियाँ: नदी के नाले में बदल जाने से बीमारियों का खतरा बढ़ा और भूजल स्तर गिरा।
बुनियादी ढांचे की उपेक्षा:
- दुर्घटना का खतरा: नदी पर बने पुलों का संपर्क पथ धंसना यातायात के लिए खतरा है।
- महत्वपूर्ण संपर्क मार्ग: ये मार्ग कई गांवों को जोड़ते हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।
साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने नून और फरका नदी जैसी नदियों के विलुप्त होने पर चिंता व्यक्त की है। जल शक्ति मंत्रालय के राज्य मंत्री डॉ. राजभूषण निषाद और अन्य विशेषज्ञ भी इस समस्या पर ध्यान दे रहे हैं।
नून नदी का पुनर्जीवन:
- जलस्तर में सुधार: भूजल स्तर बढ़ेगा और कृषि को लाभ होगा।
- पर्यावरण और स्वास्थ्य: स्वच्छ नदी पर्यावरण और जैव विविधता को सहारा देगी। बीमारियों का खतरा कम होगा।
- कृषि, उद्योग और पर्यटन: जल उपलब्ध होने से अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, नदी किनारे पर्यटन और वाणिज्यिक गतिविधियाँ विकसित होंगी।
- सांस्कृतिक स्थलों का महत्व: धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की पहचान बढ़ेगी।
संरक्षण और संवर्धन के उपाय:
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) लगाना।
- डी-सिल्टिंग और अतिक्रमण हटाना।
- नदी किनारों पर स्वच्छता और वृक्षारोपण।
- कानून और प्रवर्तन: प्रदूषण और अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई।
- संयुक्त नदी प्रबंधन समिति: सरकारी अधिकारी, विशेषज्ञ और स्थानीय समुदाय का समन्वित प्रयास।
- जन-जागरूकता अभियान: नुक्कड़ नाटक, गीत-संगीत और शिक्षा कार्यक्रम।
मुजफ्फरपुर जिला बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है, जिसमें प्रमुख नदियाँ हैं:
- गंडक: 630 किमी, जिले से होकर बहने वाली प्रमुख नदी।
- बूढ़ी गंडक: 320 किमी, गंगा के मैदान में बहती है।
- बागमती: 586 किमी, जलस्तर बढ़ने पर बाढ़ का खतरा।
- लखनदेई: जिले से होकर गुजरती है।
- अन्य नदियाँ: कदाने और जमुआरी नदी, विलुप्त होने के कगार पर।
नून नदी को “गंदे नाले” से “जीवनरेखा” में बदलने के लिए जन-भागीदारी और सरकारी संकल्प का संयुक्त मॉडल आवश्यक है। अतिक्रमण हटाना और STP लगाना दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। स्थानीय प्रयासों में शामिल हैं:
- नदी मित्र मंडल: युवाओं और बुजुर्गों के समूह द्वारा तट की सफाई।
- जन-जागरूकता अभियान: नदी के महत्व और प्रदूषण के खतरों के बारे में शिक्षित करना।
- प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र और पर्यावरण-अनुकूल व्यापार।
सरकारी सहयोग, नीति निर्माण और तकनीकी हस्तक्षेप से नून नदी का पुनर्जीवन संभव है। सत्येन्द्र कुमार पाठक के अनुसार: “धरोहर का संरक्षण भविष्य की गारंटी है, यह सामाजिक, सरकारी और व्यक्तिगत कर्तव्य है।” नून नदी मुजफ्फरपुर की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पर्यावरणीय धरोहर है। इसके संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए तत्काल, समन्वित और युद्धस्तरीय प्रयास आवश्यक हैं।