
सुनील कुमार माथुर
राजस्थान सरकार राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान अभ्यर्थियों को आर्थिक लाभ देने के लिए निशुल्क बसों का संचालन करती है, जो कि एक सराहनीय कदम है। लेकिन इन बसों की संख्या परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की संख्या के हिसाब से बहुत कम होती है, जिसकी वजह से बसों में सफर के लिए सीट पाने के लिए विद्यार्थी खिड़कियों में से चढ़ते हैं और कई बार जख्मी भी हो जाते हैं। भारी भीड़ के चलते महिला अभ्यर्थियों को बड़ी परेशानी होती है, क्योंकि निशुल्क यात्रा करने वालों की संख्या अधिक होती है और बसों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती है।
एक्सप्रेस बसें, जो नियमित रूप से अपने निर्धारित मार्ग पर चलती हैं और जिनमें यात्रियों का रिजर्वेशन भी होता है, उसमें भी यात्री अपनी सीट तक बड़ी मुश्किल से पहुंच पाते हैं। कभी-कभी तो वे बस में चढ़ भी नहीं पाते। सभी प्रतियोगी परीक्षाएं प्रायः शनिवार व रविवार को होती हैं और इन दिनों सरकारी नौकरी करने वालों की छुट्टी होती है। अतः जो अपने गांव या शहर से बाहर रहकर नौकरी करते हैं, वे इन दो दिनों की छुट्टियों में अपने परिवारजनों से मिलने जाते हैं। इसका भी अतिरिक्त भार बसों पर पड़ता है और उन्हें भी यात्रा के दौरान भारी परेशानी होती है। महिला अभ्यर्थियों के साथ उनके अभिभावक भी होते हैं।
अतः बसों की कमी के कारण अभ्यर्थियों और अन्य यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए राज्य सरकार और रोडवेज के आगार प्रबंधक इस ओर तत्काल प्रभाव से ध्यान दें और परीक्षाओं के दौरान बसों की संख्या में वृद्धि करें, ताकि यात्रियों को किसी भी प्रकार की बाधा न हो।
-सुनील कुमार माथुर
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच एवं, स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर, राजस्थान
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