
सुनील कुमार माथुर
स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर, राजस्थान
बछड़े ने गऊ माता से कहा कि मां, बैल दादा बताते हैं कि पहले का इंसान बड़ा ही बुद्धिमान, हष्ट-पुष्ट, ताकतवर व मेहनती होता था लेकिन आज का इंसान पाडे जैसा क्यों आलसी व काम से जी चुराने वाला हो गया। यह सुनकर गऊ माता ने कहा बेटा, पहले हर घर में गाय रखी जाती थी जिसके ताजा दूध का लोग सेवन करते थे। हष्ट-पुष्ट रहते थे। घर-घर में हर वक्त दूध, दही, छाछ व घी होता था।
देशी घी व घर के बने दही, छाछ, घी पौष्टिक होते थे जिसके कारण हर व्यक्ति मेहनती होता था, दिन भर कठिन कार्य करने के बावजूद भी वे न तो थकते थे और न ही बीमार पड़ते थे। सभी के घरों में सुख, शांति और समृद्धि थी।
लेकिन समय बदला, आधुनिकता के नाम पर लोगों ने गाय को रखना बंद कर दिया और कुत्तों को घर में रखना आरम्भ कर दिया। नतीजन घर में जो पौष्टिक दूध, दही, छाछ, मक्खन व घी मिलता था वह बंद हो गया। लोग बाजार से यह सामग्री खरीदने लगे जिसमें शत प्रतिशत मिलावट होती है जिससे लोग बीमार रहने लगे। आलस उन पर छाने लगा और वे काम से जी चुराने लगे।
मां ने कहा बेटा, जो लोग मिलावट करते हैं, स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं, वे कभी सुखी नहीं रहते और पाडे (भैंस का बच्चा) की तरह आलसी बन जाते हैं। मनुष्य का यह आलसीपन ही उसे आगे नहीं बढ़ने दे रहा है। अगर वह आज भी कुत्ते के स्थान पर गाय रखें और सुबह-शाम उसकी सेवा करें तो उसके घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होगा। मां की सीख सुनकर बछड़ा बेहद खुश था।
Nice article
Nice