
अनिल कुमार कक्कड़
देहरादून। जैसा कि पिछले एक सप्ताह से हम सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के गुणों का बखान करते आ रहे हैं। उसी कड़ी में सूत्रों से प्राप्त यह जानकारी भी रोचक है और कुल मामला केवल 65 लाख रूपये का है, जिसका उपयोग महानिदेशक महोदय ने बिलकुल सही किया है। महानिदेशक महोदय का पहला मामला 1 करोड़, दूसरा मामला 40 लाख और आज का मामला केवल 65 लाख रूपये का है। इन सभी मामलों को सुचारू रूप से पूर्ण करने के लिए महानिदेशक महोदय ने अपने विवेक का पूर्ण उपयोग किया है, जो कि काबिले तारीफ है। यदि नियमानुसार कोई वीर चक्र हो तो इनको दे देना चाहिए। आईये दोस्तों समाचार की शुरूआत करते हैं।
वरीयता क्रम को ध्यान रखते हुये ‘‘पर्वत जन‘‘ मासिक पत्रिका ने पहला स्थान प्राप्त किया है। यह मासिक पत्रिका बहुत पुरानी, अच्छी और लोगों में चर्चित भी है। अतः परिणाम स्वरूप महानिदेशक महोदय ने इनको फरवरी 2024 से मई 2025 तक की समयसीमा का आंकलन करते हुये 30 लाख रूपये की राशि भेंट की। सूत्रों से पता चला है कि यह पत्रिका विभागीय दर पर कोई विज्ञापन नहीं प्रकाशित करती है। अधिकांशतः तीन माह के अंतराल में इनको सूचना विभाग से 5 लाख रूपये का विज्ञापन प्राप्त होता है। महानिदेशक महोदय जी अपने आंकलन की गोटी को अन्य समाचार पत्र और पत्रिकाओं की ओर भी भेजिए, जिससे कि विज्ञापन की दौड़ में सभी भाग ले सकें।
दूसरे नम्बर पर महानिदेशक महोदय ने ‘‘उत्तराखण्ड शंखनाद’’ मासिक पत्रिका का नाम जोड़ा है। सूचना विभाग में लगभग सभी अधिकारी-कर्मचारी महानिदेशक महोदय की तारीफ करते हुये थकते नहीं हैं। उपहार देने की बात जब आई तो इस मासिक पत्रिका को सूचना विभाग की ओर से कुल 19 लाख का छोटा सा उपहार दिया गया है। इस उपहार की समयसीमा अक्टूबर 2022 से अक्टूबर 2024 तक की है। सूत्रों ने यह भी बताया कि यह पत्रिका सूचीबद्ध है, लेकिन इस पत्रिका ने विभागीय दर पर विज्ञापन लेने से मना किया हुआ है। सही भी है, जब 2, 4, 5 लाख के विज्ञापन निजी दर पर मिल जायें, तो विभागीय दर को कौन पूछे। महानिदेशक महोदय की जय हो… महोदय आपके विभाग में विज्ञापन प्राप्त करने के लिए वास्तविक नियम क्या हैं, पत्रकारों को आज तक समझ नहीं आया।
बहरहाल, विज्ञापन प्राप्त करने के दौड़ में सूचना विभाग का तीसरा नियम बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस नियम के अनुसार, यदि आप सूचीबद्ध नहीं हैं, तो ढाई साल में आपको 15 लाख रूपये के विज्ञापन मिल जायेंगे। इस बेहतरीन नियम को सभी ने अपनाना चाहिए, जिससे कि सभी खुश रहें और सभी आबाद रहें, विज्ञापन मिलते रहें। यहां बात की जा रही है एक पाक्षिक पत्रिका की, जिसका नाम “हस्तक्षेप” है। सूचना निदेशालय के अनुसार, यह पत्रिका सूचीबद्ध नहीं है। इस पत्रिका को दिसम्बर 2022 से मई 2025 तक सूचना विभाग से 15 लाख रूपये के विज्ञापन प्राप्त हुये हैं। आज अहसास हो रहा है कि सभी पत्रकार अपना समाचार पत्र शुरू करते के बाद सबसे बड़ी गलती करते हैं कि सूचीबद्धता के लिए 18 माह तक रूकते हैं।
तोहफा : सूचना विभाग ने सण्डे पोस्ट को दिये 1 करोड़ के विज्ञापन
महानिदेशक महोदय, एक कष्ट जरूर कर दें कि यदि कोई समाचार पत्र/पत्रिका सूचना विभाग और सूचना निरीक्षा में जमा नहीं हो रहा है। अतः वो अनियमित है तो बाकी को छोड़कर उसी को बड़े-बड़े विज्ञापन देना, यह कौन से नियम के अन्तर्गत आता है। बहुत-बहुत धन्यवाद, अब मिलते हैं सोमवार को… एक नई राशि, नये समाचार पत्र और नये समाचार के साथ…।