
देहरादून। राजधानी में जहां बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखी जानी चाहिए, वहां सरकारी स्कूल खस्ताहाल हालत में जानलेवा बनते जा रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय बापूनगर जाखन इसका ताजा उदाहरण है, जहां बच्चे टपकती छत और गिरते प्लास्टर के बीच पढ़ने को मजबूर हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि जर्जर स्कूलों में बच्चों को न भेजा जाए, लेकिन राजधानी के महज पांच किलोमीटर के दायरे में यह स्कूल प्रशासनिक लापरवाही की तस्वीर पेश कर रहा है।
समग्र शिक्षा के तहत वर्ष 2009 में बना यह स्कूल अब अपनी उम्र पूरी कर चुका है। स्कूल की छत और दीवारों में दरारें हैं, प्लास्टर झड़ रहा है और कक्षाएं पानी टपकने के कारण बरामदों में लगाई जाती हैं। सबसे बुरा हाल कक्षा 3 और 4 के साझा कमरे का है, जहां बच्चों की जान खतरे में है। शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 के मुताबिक 30 छात्रों पर एक शिक्षक होना अनिवार्य है। लेकिन इस स्कूल में 80 छात्र-छात्राओं के लिए केवल दो शिक्षिकाएं हैं। यदि एक शिक्षिका अनुपस्थित हो जाए तो दूसरी को पांचों कक्षाएं अकेले संभालनी पड़ती हैं। इससे बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
बाउंड्रीवाल न होने से अतिक्रमण और खतरे
विद्यालय की बाउंड्रीवाल टूट चुकी है। स्कूल की प्रधानाध्यापिका सीमा नेगी बताती हैं कि कुछ स्थानीय लोगों ने स्कूल परिसर में अतिक्रमण करने की कोशिश की है। छुट्टियों में स्कूल की भूमि पर अवैध कब्जा न हो जाए, इसके लिए उन्हें लगातार निगरानी करनी पड़ती है। सीईओ विनोद कुमार ढौंडियाल के अनुसार स्कूल का पुनर्निर्माण प्रस्तावित है। ग्रामीण निर्माण विभाग ने इसके लिए ₹36.87 लाख का अनुमान तैयार किया है। इसकी पुष्टि के लिए लघु सिंचाई विभाग को पत्र लिखा गया है। इसके अतिरिक्त तुनवाला दो, आराघर दो, धर्मपुर और सहसपुर के स्कूलों में मरम्मत का कार्य किया जाना है।
चकराता, डोईवाला जैसे क्षेत्रों में भी हालात चिंताजनक
जूनियर हाईस्कूल दार्मिगाड चकराता में भी छत का प्लास्टर गिर रहा है। वहीं, डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय झड़ौंद और उच्च प्राथमिक विद्यालय सिमलास में बाउंड्रीवाल नहीं है, जिससे मवेशी, सांप और कीड़ों के प्रवेश की संभावना बनी रहती है। स्कूल परिसर में कूड़े का ढेर बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है। जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक प्रेम लाल भारती के अनुसार राजधानी के 27 स्कूल जर्जर भवनों के चलते पंचायत घरों और निजी भवनों में शिफ्ट कर दिए गए हैं। सभी स्कूलों का सुरक्षा ऑडिट किया जा रहा है और बच्चों को सुरक्षित भवनों में स्थानांतरित किया जा रहा है।
30 करोड़ का आपदा कोष, लेकिन हालात जस के तस
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के अनुसार जर्जर स्कूलों की मरम्मत हेतु 30 करोड़ रुपये आपदा मद से जारी किए गए हैं, ताकि जहां आवश्यक हो, वहां तत्काल कार्य शुरू किया जा सके। बावजूद इसके राजधानी में ही स्कूलों की ये हालत प्रशासनिक उदासीनता की पोल खोलती है। राजधानी देहरादून में सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। बच्चों की जान और भविष्य दोनों दांव पर लगे हैं। अब देखना यह है कि शासन-प्रशासन इन स्कूलों की मरम्मत और पुनर्निर्माण को कितनी प्राथमिकता देता है।