
हरिद्वार। श्रावण मास के आरंभ के साथ ही उत्तर भारत की सबसे विशाल धार्मिक यात्रा — कांवड़ यात्रा — आज से विधिवत रूप से प्रारंभ हो गई। धर्मनगरी हरिद्वार में देशभर से आए शिवभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। हर की पैड़ी पर गंगाजल लेने के लिए श्रद्धालु एकत्र हो चुके हैं और ‘बोल बम’ के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा है।
14 दिनों तक चलेगी यात्रा, 23 जुलाई को चढ़ेगा जल
कांवड़ यात्रा श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से शुरू होकर चतुर्दशी तक चलती है। इस अवधि में लाखों कांवड़िए गंगा से जल भरकर अपने-अपने नगरों, कस्बों और गांवों के शिवालयों तक पैदल यात्रा करते हैं। इस बार 23 जुलाई (बुधवार) को शिव चौदस के दिन गंगाजल चढ़ाया जाएगा। पंचांग की गणना के अनुसार, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी की तिथियों का संगम होने से त्रयोदशी का क्षय हो रहा है, इसलिए जलाभिषेक चौदस को ही किया जाएगा।
गंगा और शिव को समर्पित है यह यात्रा
कांवड़ यात्रा न केवल आध्यात्मिक साधना है, बल्कि यह शिवभक्ति और आत्मनियंत्रण का प्रतीक भी है। यह यात्रा गंगा मैया और भगवान शिव को समर्पित होती है। कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, और अन्य तीर्थस्थलों से पवित्र जल लेकर अपने क्षेत्र के शिवालयों तक पैदल यात्रा करते हैं।
तीन प्रमुख शिव यात्राओं में एक
श्रावण मास में शिवभक्तों की तीन प्रमुख यात्राएं होती हैं:
- कांवड़ यात्रा
- अमरनाथ यात्रा
- कैलाश मानसरोवर यात्रा
इन यात्राओं में कांवड़ यात्रा सबसे व्यापक और जन-भागीदारी वाली यात्रा मानी जाती है। यह जितनी कठिन होती है, उतनी ही भक्तिपूर्ण और आनंददायी भी होती है।
हरिद्वार का विशेष महत्व
हरिद्वार कांवड़ यात्रा का प्रमुख केंद्र है क्योंकि मान्यता है कि काल के प्रथम खंड में कनखल के राजा दक्ष द्वारा दिए गए वचन को निभाने के लिए भगवान शिव स्वयं कनखल पधारे थे। इसलिए यह भूमि शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है।
सुरक्षा और प्रशासन की तैयारी
कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी है। पूरे रूट पर सीसीटीवी, ड्रोन निगरानी, मेडिकल टीम और आपातकालीन सहायता की व्यवस्था की गई है। हरिद्वार, ऋषिकेश, मुजफ्फरनगर और मेरठ जैसे शहरों में विशेष ट्रैफिक प्लान लागू किया गया है। कांवड़ यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह उत्तर भारत की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ी गहराई को दर्शाती है। हरिद्वार से निकलने वाली यह श्रद्धा की धारा अगले 14 दिनों तक शिवभक्ति के महासंगम का प्रतीक बनेगी। श्रद्धालु सावन की इस महायात्रा में सहभागिता कर स्वयं को शिवमय करने निकल पड़े हैं।