
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
दुनियां बड़ी ही निराली है। हर कोई हवा में बातें कर रहा है और हवा में ही उड़ रहा है। हवा में उड़ने की जरूरत पक्षियों को है, इंसान को नहीं, फिर भी वह उड़ने का प्रयास कर रहा है। अरे मेरे भाई! तनिक नम्रता और विनम्रता रखिए और समाज में झुकना सीखिए, आप अपने आप ही ऊंचाइयां छूने लग जाएंगे और पता भी नहीं चल पाएगा कि आप इतनी ऊंचाई पर कैसे आ गए। जो आनंद झुकने में है, वह आनंद अकड़ में नहीं है। अकड़ में रहोगे तो जो मान-सम्मान अभी तक प्राप्त किया है, वह भी खो दोगे। अतः जीवन में सदैव नम्र रहें, स्वस्थ रहें और हंसते-मुस्कुराते रहिए। चूंकि आपकी प्रतिभा ही आपको शीर्ष पर ले जाती है लेकिन आपका व्यवहार ही यह तय करता है कि आप कितने समय तक वहां रहते हैं।
खिलौने से ज्यादा कुछ भी नहीं
विद्वानों का कहना है कि इंसान एक खिलौने से ज्यादा कुछ भी नहीं है, क्योंकि कोई उसके साथ दिल से तो कोई दिमाग से खेलता है। इसलिए इंसान को हर वक्त और हर परिस्थिति में सजग और सचेत रहना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति उसकी भावना के साथ न तो खिलवाड़ करे और न ही वह किसी की हंसी का पात्र बन सके। अगर कोई आपके जज़्बात से खिलवाड़ करना चाहे और आपको पता चल जाता है तो उसे तत्काल टोक दीजिए ताकि वह फिर से आपके साथ घिनौना व्यवहार करने का प्रयास न करे।
मर्यादाएं
हम प्रायः देखते हैं कि कुछ लोग बिना वजह दूसरों के काम-काज में मीनमेख निकालते रहते हैं या फिर बिना जान-पहचान के दूसरों के बीच में जाकर अनावश्यक रूप से बोलते रहते हैं। वे यह भी नहीं देखते हैं कि कौन-सी बात कब बोलनी चाहिए और कहां नहीं बोलनी चाहिए। नतीजन अनेक बार बिना वजह बात का बतंगड़ बन जाता है व बात हाथापाई तक पहुंच जाती है। इसलिए जहां जितनी जरूरत हो, उतना ही बोलें। क्योंकि नमक खाने में कम या ज्यादा हो जाए तो स्वाद बिगड़ जाता है। ठीक उसी प्रकार, अनावश्यक बोल बोलने से शांत वातावरण में भी तनाव व्याप्त हो जाता है।
किसी महापुरुष ने बहुत ही अच्छी बात कही है कि जो बोले जाते हैं वो शब्द होते हैं, जो बोले नहीं जा सकते वो भावनाएं होती हैं और जो बोलना होता है वो बोल नहीं पाते, चूंकि वो मर्यादाएं होती हैं। लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज में मत बोलिए, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊंचा बनाइए कि लोग आपकी आवाज सुनने की तमन्ना करें।