
धरती से कहीं ओझल न हो जाये “झिलमिल सितारे”, मगर क्या आप जानते हैं कि बचपन से लेकर आज तक आप जिन तारों को निहारते हुए , खुले आसमान के नीचे बैठकर , अपनी दिन भर की थकान भूल जाते हैं,वही टिमटिमाते तारे धीरे-धीरे हमारी आँखों से ओझ़ल होते जा रहे हैं। #सत्यनारायण माथुर (सेवानिवृत तकनीकी अधिकारी, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, आबू पर्वत) जोधपुर, राजस्थान
[/box]आदिकाल से इंसान ने जबसे अपनी नज़रे आसमान की ओर उठाई, तब से उसे दिन में चमकता सूर्य और अंधेरी रात में झिलमिल करते, टिमटिमाते सितारों भरा आसमान और चमकता चाँद नज़र आया। वहीं से इंसान की जिज्ञासा बढ़ी और वह चाँद-सितारों से सजे आसमान को निहारने लगा और अपनी कल्पना को पंख लगाकर गहन अंतरीक्ष में झाँकने लगा। समय के साथ वह इन्ही चाँद-सितारों से अपनी राह बनाने लगा। विभिन्न तारा समूहों का व ग्रहों का और अपने सौरमंडल को पहचान कर विभिन्न खगोलिय घटनाओं का साक्षी रहा है।
आज इंसान इस स्थिति में पहुँच गया है कि वह चाँद- सितारों से आगे निकलकर गहन अंतरीक्ष में अन्य ग्रहों पर पहुँच गया है और आने वाले समय में चाँद पर और मंगल ग्रह पर जीवन जीने की होड़ में लगा है। यही नहीं, इंसान ने गहन अंतरीक्ष में कृत्रिम उपग्रहों और अनेक अंतरीक्ष दूरबीनों को स्थापित कर कई महत्वपूर्ण खगोलिय अवलोकन किये हैं। उसने पृथ्वी व अंतरीक्ष में खगोलिय दूरबीनें स्थापित कर अनेक सौरमंडलों व अन्य ग्रहों की खोज़ तक कर ली है।
मगर क्या आप जानते हैं कि बचपन से लेकर आज तक आप जिन तारों को निहारते हुए , खुले आसमान के नीचे बैठकर , अपनी दिन भर की थकान भूल जाते हैं,वही टिमटिमाते तारे धीरे-धीरे हमारी आँखों से ओझ़ल होते जा रहे हैं। अंतरीक्ष में अरबों-खरबों तारे हैं। आज से लगभग 50-60 वर्ष पहले हम जितने तारे आसमान में देख पाते थे क्या हम अब उतने तारे देख पाते हैँ? आपका स्वयं का जवाब नहीं में होगा। तो आप सोच रहे होंगे कि आखिर तारे खत्म कैसे होते जा रहे हैँ? मगर सच यह है कि तारे तो अपनी जगहों पर ही है, हम सब ने परिस्थितियाँ ऐसी पैदा कर दी है कि आने वाली पीढ़ियाँ शायद इतनी आसानी से तारों से सजे आसमान को न देख पायें।
प्रकृति के साथ जब-जब इंसानों ने खिलवाड़ किया है,तब-तब प्रकृति ने हमें चेताया है और हम सब ने कई तरह की विपदाएं देखी है। अंधेरी रातों में झिलमिल करते तारों की संख्या का कम होना भी इसांन के इसी प्रकार के खिलवाड़ का नतीज़ा है।अगर इंसान प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद नहीं करेगा तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ तारों को नहीं देख पायेगी।शायद उन्हें पता भी न चले कि कभी आसमान में तारे भी जगमगाते थे।
हाल ही में वैज्ञानिको के एक दल ने चेतावनी जारी की है कि आने वाले लगभग 20 वर्षों बाद इंसान रात्रि के अंधकार में टिमटिमाते तारों को नहीं देख पायेगा। इसकी मुख्य वज़ह होगी “ स्काई ग्लो ” अर्थात पृथ्वी पर रात्रि में कृत्रिम प्रकाश इतना अधिक बढ़ जायेगा कि प्रकाश-प्रदूषण के कारण रात्रि में तारे दिखाई नहीं देंगें।वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से , विशेषकर 2016 के बाद से प्रकाश-प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि हमारी अपनी आकाश गंगा “मिल्की-वे” जिसे हम मंदाकिनी के नाम से जानते हैं,उसका भी एक तिहाई हिस्सा भी नहीं देख पा रहे हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि रात्रि में कृत्रिम प्रकाश की चमक प्रतिवर्ष दस प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।उनका दावा है कि जहाँ रात्रि में जगमगाते तारों का दिखना सार्वभौमिक था,अब अत्यन्त दुर्लभ हो गया है।एक अध्ययन के अनुसार विश्व के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दर से आसमान में कृत्रिम रोशनी का प्रभाव पड़ रहा है। यूरोप में यह दर 9.6 प्रतिशत है, तो उत्तरी अमेरिका में यह दर 10.4 प्रतिशत तक बढ़ रही है।
आज दुनिया चकाचौंध हो रही है। आधुनिक तकनीक एवं बढ़ते प्रौद्ध्योगिक विकास से पूरे विश्व के महानगर कृत्रिम प्रकाश की दूधिया रोशनी में चमकते जा रहे हैं। इसी कारण हम पृथ्वी पर प्रकृति के सुंदर नज़ारों से वंचित होते जा रहे हैं।कृत्रिम लाइटों का बैतहासा और गैर-ज़रुरी इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है।
प्रकाश प्रदूषण आज एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। पूरी दुनिया को रोशन करने के चक्कर में हम अपना सुंदर सा आसमान खोते जा रहे हैं। विकास के नाम पर नियम काय़दों की धज्जियाँ उड़ाकर प्रकृति के साथ लगातार खिलवाड़ होता जा रहा है।एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग दो प्रतिशत विजिबीलिटी कम होती जा रही है। यही नहीं धरती पर नज़र रखने वाले हमारे अपने ही सैटेलाईट को इस वज़ह से दिक्कतें आ रही है।
बढ़ते प्रकाश प्रदूषण के कारण सिर्फ आसमान ही नहीं बल्की धरती पर इंसान और अन्य जीव-जन्तुओं पर भी भारी प्रभाव पड़ा है। क्या आप जानते हैं कि इसकी वज़ह से रात्रि में चमकते ज़ुगनुओं की प्रजाति लुप्त सी हो गई है।अन्य पशु-पक्षियों पर भी विपरित परिणाम देखे गये है। जानवरों को संचार की प्रवृति पर भी गहरा असर देखा गया है।प्रकाश पर जीव-जन्तुओं पर कितना प्रभाव पड़ता है, इसका अनुभव पूर्ण सूर्यग्रहण के समय आसानी से किया जा सकता है।
वो भी क्या दिन थे, जब घर की छत पर,खटिया पर बैठकर टिमटिमाते तारों को निहारते थे। टूटते तारों का दिखना या फिर कभी-कभी अचानक से प्रकट होने वाले पुच्छलतारों का दिखना शायद आने वाली पीढ़ी को नसीब न हो। अगर इस गंभीर समस्या का कोई निवारण है तो वह यह है कि हमें रात के समय स्ट्रीट लाईट, हैलोज़न मास्क,कल-कारखानों में लगी मर्करी और बड़ी-बड़ी फ्लड लाईटों पर नियंत्रण करना होगा।
जो कि स्काई-ग्लो के मुख्य कारक हैं। शहरों व महानगरों में उत्सर्जित होने वाली इन्ही रोशनियों के कारण रात की दुधिया रोशनी की चमक में हम तारों को खोते जा रहे हैं। यही नहीं, धरती पर स्थापित खगोल दूरबीनों से होने वाले तारों व अन्य ग्रहों के अवलोकन करने मे भी गंभीर समस्या हो गई है।रात का आसमान बेतरतीब गति से पूरी दुनिया में कृत्रिम प्रकाश से चमकीला होता जा रहा है।
खगोलवैज्ञानिक इसीलिए अब धरती की जगह गहन अंतरीक्ष में दूरबीनों की स्थापना कर रहे हैं।भारत में भी विभिन्न खगोल वेधशालाओं में लगी दूरबीनों से अंतरीक्ष में सितारों के अवलोकन में कृत्रिम प्रकाश से चमकीला होते आसमान से वैज्ञानिकों को लम्बे अरसे से गंभीर समस्या हो रही है।राजस्थान में माउण्ट-आबू में गुरु शिखर पर भी अवरक्त वेधशाला स्थित है।
भारत सरकार व संबंधित राज्य सरकारों को खगोलविदों के साथ मिलकर इस गंभीर समस्या पर गौर करना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति के इस प्रकार की अलौकिक आकाशीय नज़ारों से वंचित न रहे, इसका ख्याल रखना होगा।संबधित क्षैत्रों को “डार्क- स्काई श्रेणी” में रखकर “स्काई-ग्लो” को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
भारत में लद्दाक जिला प्रशासन नें वन्य जीव अभ्यारण के कुछ क्षैत्रों को “ डार्क-स्काई रिजर्व ” के रुप में नामित किया है। ऐसे ही देश में जहाँ-जहाँ खगोल दूरबीनों की स्थापना हो रखी है, वहाँ के आस-पास के क्षेत्रौं को भी “डार्क-स्काई जोन” घोषित करना चाहिए एवं संबंधित क्षैत्र के लोगों को इस संबंध में शिक्षित कर, उचित सेंसर तकनीक पर आधारित प्रकाश व्यवस्था की जानी चाहिए।
साथ ही प्रकाश प्रदूषण फैलाने वाले यंत्रों की दिशा,मात्रा और प्रकार को सुधारना होगा। इसके अलावा स्काई-ग्लो,चकाचौंध,अनावश्यक व अव्यवस्थित प्रकाश पर नियंत्रण करना होगा। वर्ना आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नही करेगी।
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