
विनोद सिंह नामदेव
‘शजर’ इन्दौर, मध्य प्रदेश
आज की बात कल नहीं होती।
इसलिए कुछ पहल नहीं होती।
गीत लिखना मुझे नहीं आता,
माँ पे कोई ग़ज़ल नहीं होती।
मेरे जैसी ग़रीब जां के लिए,
झोंपड़ी क्या महल नहीं होती।
सच बयां कर दिया तो चर्चा है,
हमसे बिलकुल नकल नहीं होती।
ज़िंदगी के दयार की सचमुच,
एक समस्या भी हल नहीं होती।
मैं ख़ुशी बो सका न खेतों में,
ग़म की कोई फसल नहीं होती।
चेहरे पे सल उभर आयें भले,
माँ के दामन में सल नहीं होती।
धर्म की बात और सियासत में,
हमसे ये दल बदल नहीं होती।