
युवा पीढ़ी और अभिभावक… अनावश्यक जिद करने पर कभी कभार दो थप्पड भी लगाने पडे तो बिना हिचक लगा दीजिए। वह कुछ देर या कुछ घंटे रोकर चुप हो जायेगा, अगर आपने ऐसा नहीं किया और उसकी जिद पूरी कर दी तो फिर जिन्दगी भर आपको ही रोना पडेगा। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
[/box]आज की युवा पीढ़ी को अभिभावकों ने इतना सिर पर चढा लिया है कि वे अपने ही अभिभावकों की बातों की उपेक्षा कर रही हैं। यह कैसी विडम्बना है। प्राचीन समय में अभिभावकों के पास आज जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी फिर भी उन्होंने अपने बच्चों की बेहतर ढंग से परवरिश की। उन्हे आदर्श संस्कार दिये। बच्चों को अपने से बड़ों से कैसे बातचीत करनी चाहिए। इसका शिष्टाचार सिखाया। यही संस्कार वे अपने बच्चों को देते थे।
लेकिन आज संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित हो रहे है जिसके कारण पति-पत्नी दोनों अपने-अपने शौक पूरे करने के लिए नौकरी कर रहे हैं और बच्चे अपने ढंग से बडे हो रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी में संस्कार नाम की कोई चीज नजर नहीं आ रही है। वे अपने को ही तीस मारका समझ रहे।
आज अभिभावक बच्चों की अनावश्यक जिद को भी पूरा कर रहे है और कहते है कि बच्चे है अब इन्हें क्या कहे। ज्यादा बोलों तो कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे। इस बात की चिंता हर समय रहती हैं। ऐसे अभिभावकों से पूछो कि अगर बचपन में ही अनावश्यक जिद करने पर दो चार थप्पड कान के नीचे जमा दिए होते तो आज यह दिन न देखने पडते।
आज बच्चे एक नहीं सुनते। तेज गति से वाहन चलाना, तेज आवाज में टी वी बजाना, मां बाप से तेज व ऊंची आवाज में बात करना, उनकी आज्ञा की अवहेलना करना, मेहमानों, दोस्तों व रिश्तेदारों के सामने भी अपने से बडों को मान सम्मान न देना न्याय संगत बात नहीं है। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों पर आरम्भ से ही कंट्रोल करे।
उन्हें आदर्श संस्कार दे। अनावश्यक जिद करने पर कभी कभार दो थप्पड भी लगाने पडे तो बिना हिचक लगा दीजिए। वह कुछ देर या कुछ घंटे रोकर चुप हो जायेगा, अगर आपने ऐसा नहीं किया और उसकी जिद पूरी कर दी तो फिर जिन्दगी भर आपको ही रोना पडेगा।
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