देवघर की सांस्कृतिक विरासत
देवघर की सांस्कृतिक विरासत… देवघर जिला का मुख्यालय देवघर में सनातन धर्म का शैव सम्प्रदाय, शाक्त सम्प्रदाय, नाग सम्प्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय, सौर सम्प्रदाय, कामना का प्रमुख स्थल है। देवघर को चिता भूमि, केतकी वन, हरितकिवन, वैद्यनाथ, वैद्यनाथधाम, बाबाधाम एवं हृदय व हार्दपीठ कहा गया है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
झारखंड राज्य के देवघर जिला का उत्तरी अक्षांश 24.48 डिग्री और पूर्वी देशान्तर 86.7 पर स्थित समुद्र तल से ऊँचाई 254 मीटर (833 फीट) और संथाल परगना के पश्चिमी भाग में अवस्थित है। देवघर जिले के उत्तर में बिहार का भागलपुर जिला, झारखण्ड के दक्षिणी पूर्व में दुमका और पश्चिम में गिरिडीह जिले की सीमाओं से घिरा है। देवघर जिला का मुख्यालय देवघर में सनातन धर्म का शैव सम्प्रदाय, शाक्त सम्प्रदाय, नाग सम्प्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय, सौर सम्प्रदाय, कामना का प्रमुख स्थल है। देवघर को चिता भूमि, केतकी वन, हरितकिवन, वैद्यनाथ, वैद्यनाथधाम, बाबाधाम एवं हृदय व हार्दपीठ कहा गया है।
देवघर जिला का क्षेत्रफल 2479 वर्गकिमी व 957 वर्गमील में 2011 जनगणना के अनुसार 203116 आबादी वाले अनुमंडल 02, प्रखंडों में देवघर,देवीपुर,करौ,मधुपुर,मार्गो मुंडा,मोहनपुर, पालोजोरी, सरवन, सोनाराय, धरही, सारठ एवं 194 पंचायत, 2662 गाँव, थाने 13 से युक्त देवघर जिले का सृजन 01 जून 1981 ई. में हुआ है। देवघर का बाबा वैद्यनाथ,, मंदिर, बैजू मंदिर, त्रिकुट, नौलखा मंदिर, नन्दनपर्वत,वासुकीनाथ मंदिर, शिव कुंड, रावण कुंड, रावनाखाड़, शिवकूप, पर्वतीमन्दिर में माता पार्वती, वैद्यनाथ मंदिर के गर्भगृह में रावणेश्वर ज्योतिलिंग आदि 22 विभिन्न देवों और देवियों की मंदिर है।
लंका अधिपति राक्षस राज रावण द्वारा लाए हुए भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग की स्थापना ब्रह्मा जी एवं भगवान विष्णु द्वारा स्थापित है। वैद्यनाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव को समर्पित रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग पर सावन में कावरिया शिव भक्त बिहार के भागलपुर जिले का सुल्तानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। देवों का घर देवघर के हरिताकिवन या केतकीवन में ज्योतिर्लिंग की स्थापना ब्रह्माजी एवं भगवान विष्णु द्वारा की गई थी।
देव शिल्पिकार भगवान वायुदेव द्वारा रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव को समर्पित रावणेश्वर ज्योतिलिंग अवस्थित किया गया है। मंदिर के श्रृंखला पर भगवान शिव, माता सती, माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी को समर्पित पंचशूल स्थित है। देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा त्रेतायुग में रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण किया गया था। लंकाधिपति रावण के निधन के बाद संथाल का शैव भक्त बैजू द्वारा बैद्यनाथ धाम की स्थापना की। पूरण मल, गिद्धौर के महाराज के वंशज ने 1596 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
वैद्यनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण संथाल राजा दिग्विजय सिंह ने 6 ठी शताब्दी में वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण एवं 9 मंदिर का निर्माण गिद्धौर का राजा पूरण मल ने 1596 ई. वैद्यनाथ मंदिर का अग्रभाग का निर्माण, पूर्व सरदार पंडा की पत्नी रत्नपानी ने 1701 ई. में 22 देव देवियों का मंदिर है। बासुकीनाथ शिव मंदिर के लिए बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती जब तक बासुकीनाथ में दर्शन नहीं किए जाते है। वासुकीनाथ मंदिर देवघर से 42 किमी. दूर जरमुंडी गांव के पास स्थित है।
स्थानीय कला के विभिन्न रूपों में है। नोनीहाट के घाटवाल से जुड़ाव बासुकीनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर हैं। बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन बैजू मंदिर का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है। देवघर से 16 किमी. दूर दुमका रोड पर एक खूबसूरत पर्वत त्रिकूट की गुफाएं और झरनें हैं। बैद्यनाथ से बासुकीनाथ मंदिर की ओर जाने वाले मंदिरों से युक्त पर्वत पर हैं। देवघर से 8 किमी की दूरी पर बालानंद ब्रह्मचारी द्वारा तपोवन में नौलखा मंदिर वास्तुशिल्प युक्त निर्माण कराया गया था। नंदन पर्वत पर बने मंदिर विभिन्न भगवानों को समर्पित हैं।