अनमोल रत्न

ज्ञान केवल किताबों से ही नहीं मिलता है। किताबों से तो केवल किताबी ज्ञान ही मिलता हैं मगर असली व व्यवहारिक ज्ञान हमें बडे बुजुर्गो, सच्चे साधु संतों का संग करने से, सज्जन लोगों का साथ करने से व जीवन के अनुभवों से ही मिलता हैं इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे अपने अध्ययन के साथ ही साथ बडे बुजुर्गो के पास भी बैठे व उन्हें भी समय दीजिए। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
व्यक्ति यह जानता है कि प्रेम एक अनमोल रत्न है इसके बावजूद भी वह राग ध्देष, ईर्ष्या, अंहकार, घमंड जैसे अवगुणों में ही उलझा रहता हैं। प्रेम और स्नेह में वह शक्ति है जो पराये लोगों को भी अपना बना लेते हैं। इसलिए जीवन में अपनी लालसाओं, इच्छाओं को कभी भी न बढाये अपितु जितना हैं उसमें संतोष कर आनन्ददायक जीवन व्यतीत करें।
जीवन में हर क्षण परिस्थितियां बदलती रहती है। इसलिए हर परिस्थिति में समान रहना सीखें। प्रेम और स्नेह के साथ रहे तो जीवन में शांति ही शांति हैं। प्रेम एक अमूल्य व अनमोल रत्न है। जो हमारे जीवन में आनंद, उत्साह, उमंग, खुशहाली की छलांगें लगाता है और हमारे जीवन के हर पल को शांत व खुशहाल बनाता हैं व हमें कठिनाइयों से व तमाम तरह की मुश्किलों से निकलने की एक नई दशा – दिशा व आनन्द की किरण दिखाता हैं।
तभी तो कहा गया है कि जहां प्रेम और स्नेह हैं वही ईश्वर हैं। प्रेम, संयम, धैर्य, सहनशीलता, परोपकार, दया, करूणा, ममता, वात्सल्य, व त्याग की भावना हम में हैं तो हमें कभी भी क्रोध नहीं आयेगा। हम कभी भी दुःखी नहीं रहेगे और न ही हिंसा के मार्ग पर चलेगे। चूंकि प्रेम और स्नेह में इतनी ताकत होती है कि वह हमें गलत रास्ते की ओर जाने ही नहीं देता हैं। हमारे शुभ चिंतक हमे पहले से ही भटकने से रोक देते हैं।
ज्ञान केवल किताबों से ही नहीं मिलता है। किताबों से तो केवल किताबी ज्ञान ही मिलता हैं मगर असली व व्यवहारिक ज्ञान हमें बडे बुजुर्गो, सच्चे साधु संतों का संग करने से, सज्जन लोगों का साथ करने से व जीवन के अनुभवों से ही मिलता हैं इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे अपने अध्ययन के साथ ही साथ बडे बुजुर्गो के पास भी बैठे व उन्हें भी समय दीजिए। जब आप उनका संग करेगे, तभी आपको व्यवहारिक ज्ञान के साथ ही साथ आदर्श संस्कार भी मिलेगे, मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा भी मिलेगी।
भागदौड़ भरी इस जिंदगी में आज का इंसान नैतिक मूल्यों व आदर्श संस्कारों को भूल गया है या उनकी जानबूझ कर अनदेखी कर रहा है जो एक दुःख की बात हैं। जब हम अपने बडे बुजुर्गो के चरणों में प्रणाम करते हैं तब हमारे मन का घमंड, अंहकार, राग ध्देष, ईर्ष्या जैसी तमाम तरह की बुराइयां दूर हो जाती है।
जब हमारे मन में अच्छे विचारों का आगमन होता है तब मन से सारा कूडा करकट ( बुराइयां ) साफ हो जाता है और जब हम अपने आपकों प्रभु के चरणों में अर्पित कर देते हैं तब मन एकदम निर्मल हो जाता हैं और हमारे मन की बुराईयों के साथ ही साथ बुरे विचारों का प्रवेश द्वार बंद हो जाता हैं और मन निर्मल व शान्त हो जाता हैं अतः जीवन को नरक नहीं अपितु स्वर्गमय बनाएं और जहां अपार खुशियां ही खुशियां हो। हमारे मन में आने वाले विकार ही हमारे सबसे बडे शत्रु हैं। अतः हर वक्त श्रेष्ठ चिंतन मनन करे। श्रेष्ठ बोले। श्रेष्ठ लिखें और श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करें।
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