
आज भी प्रासंगिक है मुंशी प्रेमचन्द का साहित्य व लेखन… उन्होंने अपने को किसी वाद से जोडने के बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलन्त मुद्दों से जोडा। राष्ट्र आज भी उन्ही ज्वलंत मुद्दों से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचंद ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था। चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो… #सुनील कुमार माथुर जोधपुर राजस्थान
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मुंशी प्रेमचन्द इस देश की अनमोल धरोहर है। प्रेमचंद के साहित्य में साम्प्रदायिकता एवं जातीय संघर्ष नहीं है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों व प्रथाओं का विरोध करके साहित्य के माध्यम से मानवीयता का प्रचार-प्रसार किया। प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक है। आज के बाजारवादी युग में भी प्रेमचंद का साहित्य सन्मार्ग की ओर ले जाता है। मुंशी प्रेमचन्द के पात्र आज भी जिंदा है।
उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया – आज का स्त्री विमर्श नारी मुक्ति का नहीं देह मुक्ति का आन्दोलन है। मुंशी प्रेमचन्द के साहित्य में असली नारी विमर्श हैं। उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने हिन्दी साहित्य के माध्यम से जनचेतना जागृत की। प्रेमचंद के साहित्य में भारत की आत्मा प्रतिबिम्बित होती हैं। उनकी लेखनी ने गरीब किसान मजदूर के दुःख को उद् घाटित कर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सता को चुनौती दी। राजनैतिक क्षेत्र में जो कार्य महात्मा गांधी ने किया, साहित्य के क्षेत्र में वहीं कार्य मुंशी प्रेमचन्द ने किया।
वे प्रगतिशील विचारों के धनी थे- मुंशी प्रेमचन्द प्रगतिशील एवं अग्रगामी विचारों के धनी थे। उनके साहित्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति दर्शित होती है। उनकी अनेक कहानियों व उपन्यासों पर फिल्में बन चुकी है। उन्होंने भारतीय साहित्य में कई विधा का आगाज किया। उन्होंने कहानियों के माध्यम से छूआछूत मिटाने का प्रयास किया। ऊनकी दृष्टि मानव की प्रवृत्ति पर थी। वे महान उपन्यासकार तो थे ही, साथ ही तीन सौ से अधिक कहानियां भी उन्होंने लिखी हैं।
सटीक व सार्थक रचनाएं – उनकी रचनाओं में मार्मिकता, यथार्थता एवं स्पष्टवादिता थी आज भी उनकी रचनाएँ सटीक, कालजयी एवं सार्थक हैं। संवेदनशील व्यक्तियों के लिए आज भी प्रेमचंद जी बडे आदर्शवादी हैं। गोदान उपन्यास में अधिकारियों, किसानों एवं गरीबों आदि का मार्मिक एवं सुन्दर चित्रण किया गया है प्रेमचंद जी तो भारत का जीवन हैं। उनका साहित्य राष्ट्रीय चरित्र जागृत करने वाला है।
उपन्यास सम्राट – मुंशी प्रेमचन्द को पढते हुए हम सब बडे हुए है। उनकी रचनाओं से बडी आत्मीयता महसूस होती है ऐसा लगता है कि इन रचनाओं के पात्र हमारे आसपास ही मौजूद है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके मुंशी प्रेमचन्द के पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाक मुंशी के रूप में कार्य करते थे। प्रेमचंद जी के साहित्यिक और सामाजिक विमर्श आज भूमंडलीकरण के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक है और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं न कहीं जिन्दा हैं।
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सदैव ज्वलंत मुद्दों को उठाया – उन्होंने अपने को किसी वाद से जोडने के बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलन्त मुद्दों से जोडा। राष्ट्र आज भी उन्ही ज्वलंत मुद्दों से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचंद ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था। चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो, चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो, चाहे नारी की पीडा हो, चाहे शोषण और सामाजिक भेदभाव हो। उनकी कहानियों और उपन्यासों के पात्र सामाजिक व्यवस्थाओं से जूझते है और अपनी नियति के साथ ही साथ भविष्य की इबारत भी गढते है।









