जीवन में धन ही सर्वोपरि क्यों ?

सुनील कुमार माथुर

जीवन में आज धन ही सर्वोपरि होता जा रहा हैं । यह बात उचित नहीं है चूंकि आज लोग धन के पीछे सारे संबंधों को भूलता जा रहा हैं । उन्हें ताक पर रखकर वह धन के पीछे इतना अंधा हो गया हैं कि वह अब अपने माता – पिता को भी अपने पास रखना एक बोझ समझ रहा हैं फिर भला वह दूसरे रिश्ते कैसे निभा रहा हैं । यह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है । हर रिश्ते को आज इंसान जबरन ढो रहा हैं कि अगर संबंध न रखे तो लोग क्या कहेंगे । मगर वृध्द माता – पिता को बच्चों की जरूरत है तो बच्चे उन्हें वृध्दाश्राम भेज रहें है । यह कैसी विडम्बना है ।

जीवन में केवल धन ही सर्वोपरि नहीं है । बुजुर्गों का आशीर्वाद अगर सिर पर हो तो जीवन शांति पूर्वक व्यतीत हो जाता हैं और पता भी नहीं चलता हैं कि जीवन में कब बुरे दिन आये थे और कैसे निकल गयें । चूंकि बडे बुजुर्गों के पास जीवन के अनुभवों का अथाह भंडार होता हैं और उन्हें पता होता हैं कि किस मुसीबत से कैसे निकला जा सकता हैं । अतः जीवन में कभी भी बडे बुजुर्गों व माता – पिता की उपेक्षा न करें अपितु उनके जीवन के अनुभवों को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए चूंकि असली धन – दौलत तो उनका अनुभव ही हैं ।

यह ठीक हैं कि जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती हैं और नेक कार्यों को करके जीवन में धन भी कमाना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम धन कमाने वाली मशीन बन जायें और धन की चकाचौंध में इतने अंधे हो जाये कि अपनी सभ्यता , संस्कृति और संस्कारों को ही भूल जाये ।

जीवन में सफलता पाने के लिए कठिन परिश्रम करना होता हैं । कठिन परिश्रम और मेहनत के बिना कोई भी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता हैं । केवल हाथ पर हाथ रखे बैठे रहने से कुछ भी नहीं मिलने वाला हैं । सफलता तो उन्हीं के चरण छूती हैं जो कडी मेहनत करके और अपना पसीना बहाकर ईमानदारी से अपनी मंजिल को हासिल करता हैं ।

आज कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाले दी जाती हैं वह अपनी जगह सही हैं लेकिन उनकी दोस्ती अमीरी-गरीबी की नहीं थी अपितु उस मित्रता में सुदामा की भक्ति का भाव था । लेकिन आज की मित्रता व रिश्ते कृष्ण और सुदामा जैसे नहीं है । आज के रिश्तों में स्वार्थ की बू आती हैं । जब तक हमारा स्वार्थ पूरा होता हैं तब तक ही मित्रता व रिश्ते हैं और जिस दिन विचारों में मतभेद पैदा हुआ कि नहीं सभी रिश्ते समाप्त हो जाते हैं और आरोप- प्रत्यारोप शुरू हो जाते हैं और फिर देखिये कि कैसे एक – दूसरे को नीचा दिखाया जाता हैं और बातों को छाजले में डालकर उछाला जाता हैं ।

जीवन में धन कमाये और खूब कमाये । साथ ही साथ बुरे वक्त से निकलने के लिए भी कुछ धन का संग्रह करके रखना चाहिए । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आज तो भूखे रहें और सातवीं पीढी के लिए धन इकट्ठा करे । किसने देखी सातवीं पीढी । अरे ! धन आपने कमाया हैं । अतः जीवन में आराम से रहें । शान से रहें । अपनी व परिवार वालों की आवश्यकताओं को पूरा करे । यह कहां कि समझदारी हैं कि खुद दुःखी रहकर सातवीं पीढी की चिन्ता करें ।

व्यक्ति को जीवन में धैर्यवान होना चाहिए । वही दूसरी ओर अपनी सामर्थ्य के अनुसार समय – समय पर दान पुण्य भी करते रहना चाहिए चूंकि आपका यह दान – पुण्य रूपी नेक कर्म ही आपकों मोक्ष के धाम तक ले जा सकता हैं । वैसे भी हमारे बडे बुजुर्गों का कहना हैं कि जैसा करोगे कर्म वैसा ही मिलेगा फल । अतः जीवन में कभी भी किसी का बुरा न तो करे और न ही बुरा सोचे।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

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33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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