पारिवारिक समारोहों में भोजन की बर्बादी क्यों

सुनील कुमार

शादी-विवाह या किसी अन्य पारिवारिक समारोह में आयोजित होने वाले स्नेहभोज में प्राय:देखा जाता है कि लोग अपनी थालियों में आवश्यकता से अधिक भोजन परोस लेते हैं। थोड़ा सा खा कर भोजन से भरी थाली जूठन वाली टब में डाल देते हैं। जबकि अपने घर पर थाली में उतना ही भोजन लेते हैं, जितना उन्हें खाना होता है। आखिर ऐसा क्यों?

क्या पारिवारिक समारोह या स्नेह भोज में बनने वाले भोजन पर धन खर्च नहीं होता है? क्या कोई व्यक्ति अपने पारिवारिक समारोह में आपको भोजन की बर्बादी के लिए बुलाता है? क्या किसी के पारिवारिक समारोह में शामिल होकर भोजन की बर्बादी करनाआपको स्नेह से बुलाने वाले का अपमान नही है?

क्या ये उन गरीबों का अपमान नही है, जो किसी समारोह के बाहर एक निवाले के लिए भीख मांगते हैं। धुत्तकारे जाते हैं और इस सबसे ऊपर जब हम भोजन बनाते हैं तो इसे सर्वप्रथम अपने इष्ट देव को चढ़ाते हैं। उनके प्रसाद के रूप में इसे लेते हैं तो क्या ये उस इष्ट देव और अन्नदेवता तथा दिन-रात मेहनत कर खुद फटेहाल रहने वाले अन्नदाता किसान का अपमान नही है?

जरा सोचिए और स्वयं से प्रारंभ करें जितना खाना हो उतना ही लें।हमअपने बच्चों को भी ये संस्कार दें। जितना खाना है… उतना ही लें, भोजन बर्बाद न करें। उतना ही लें थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में। आइए सोचें-समझें और आज से ही भोजन को बर्बाद होने से बचाने की पहल करें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार

लेखक एवं कवि

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बहराइच,उत्तर प्रदेश | मोबाइल नंबर 6388172360)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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