जब घर का ही कोई करे छेड़-छाड़

वीरेंद्र बहादुर सिंह

लगभग रोजाना ही अखबारों में आने वाली रेप की घटनाएं हम सभी को परेशान करती हैं। कोई बड़ी घटना घट जाती है तो बरसाती मेढ़क की तरह कैंडल मार्च और रेपिस्ट को सजा देने की मांग तेजी से उठने लगती है। पर समय के साथ सब शांत हो जाता है। और “जैसे थे” उसी तरह हम सभी अपनी आदत के अनुसार सब कुछ भूल कर अपने-अपने काम में लग जाते हैं। खैर, अखबारों में आए रेप के मामलों में कम से कम रेपिस्ट पकड़ा तो जाता है। बाकी इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं घर की चारदीवारी में ही घटती हैं, जिनके बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं चल पाता।

पता भी चलता हो तो अपना होने की आड़ ले कर इस तरह के लोग छूट जाते हैं। घर में ही छेड़छाड़ और घर में ही दुर्व्यवहार के मामलों में ज्यादातर टीनएजर्स या कम उम्र के बच्चे शिकार होते हैं। अब तो ऐसे मामलों में लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं। लड़कों के साथ भी अभद्रता और छेड़छाड़ के मामले सामने आ रहे हैं। छोटे बच्चों के साथ घर का कोई सदस्य इस तरह का व्यवहार करता है तो बच्चा किसी से कहने से डरता है। उसके अंदर ‘मेरी बात कोई नहीं मानेगा तो? मुझे मारेगा तो?’

इस तरह का डर अधिक होता है। बचपन में घटी इस तरह की घटनाएं बालमन पर हमेशा के लिए बहुत बुरा असर छोड़ जाती हैं। घर में ही सगे-संबंधियों द्वारा की जाने वाली छेड़छाड़ की घटना में जब कमउम्र के बच्चे शिकार होते हैं तो उनके अंदर इतनी समझ नहीं होती कि उनके साथ उनके अपने ही यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? उन छोटे बच्चों को कुछ गलत होने का अनुभव तो होता है। पर यह गलत क्या है और इस व्यवहार के बारे में किससे कहा जाए, इसकी समझ नहीं होती।

उन्हें इस बात का भी डर होता है कि मां-बाप से कहेंगे तो वे नहीं मानेंगे और उल्टा उन्हें ही डांट पड़ेगी। कुछ मामलों में यह भी होता है कि खराब व्यवहार करने वाला ही मां-बाप से न कहने के लिए डराता-धमकाता है। ऐसे मामलों में बच्चों के साथ खराब व्यवहार करने वाले व्यक्ति को जब पता चलता है कि उसके द्वारा किए गए खराब व्यवहार की शिकायत बच्चे ने मां-बाप से नहीं की है तो उसका हौसला बढ़ जाता है यानी वह खराब व्यवहार करने के लिए और प्रेरित होता है। यहां केवल रेप की ही बात नहीं है, गलत स्पर्श, किश या खराब इशारों का भी समावेश होता है।

मां-बाप इस तरह की शिकायत पुलिस से करने से डरते हैं

एक एनजीओ के अनुसार वैसे तो घरेलू छेडछाड़ के मामलों में ज्यादातर मां-बाप ही ढांकने-तोपने का काम करते हैं। कभी-कभी इस तरह के मामले में बच्चा बहुत डर जाता है, जिसकी वजह से उसके व्यवहार में काफी बदलाव आ जाता है। तब पैरेंट्स को साइकोलाॅजिस्ट की मदद लेनी पड़ती है। दूसरी ओर थाने में इस तरह की शिकायतें भाग्य से ही पहुंचती हैं। घर की इज्जत बचाने के चक्कर में घरेलू छेड़छाड़ की शिकायतें मात्र 15 प्रतिशत ही हो पाती हैं। इस बारे में पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जब पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ खराब व्यवहार करने वाले से कुछ कहने में खुद को काफी असहज महसूस करते हैं तो थाने आ कर कहने या शिकायत करने की बात तो बहुत दूर है।

जिस तरह घरेलू हिंसा में थोड़ी-बहुत हिंसा होती है तो ‘स्त्री को थोड़ा सहन तो करना ही पड़ता है’ यह सोच कर लोग शिकायत नहीं करते, उसी तरह छेड़खानी के मामले में भी ‘ठीक है, अब इस बात को ले कर फजीहत नहीं करवानी, संभल कर चलना चाहिए’ यह सोचने वाले लोग ज्यादा हैं। इस बात को बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है, इस तरह की मानसिकता वाले लोग पुलिस तक बात को पहुंचने नहीं देते। ज्यादातर मामलों में तो यह भी होता है कि लोग जानते ही नहीं कि इस तरह के मामलों में सारी पहचान पूरी तरह गुप्त रखी जाती है, जिससे आगे चल कर कोई परेशानी न हो।

छेड़छाड़ को छुपाने से छेड़छाड़ करने वाले को प्रोत्साहन ही मिलता है

बच्चे के साथ जब भी कोई घर का आदमी दुर्व्यवहार करता है और बच्चा इस बारे में पैरेंट्स को बताता है तो पैरेंट्स को उस आदमी के खिलाफ कोई न कोई कदम अवश्य उठाना चाहिए। उस व्यक्ति को टोंकना चाहिए और अगर इस पर भी वह न माने तो पुलिस में शिकायत करने की धमकी देनी चाहिए। ऐसा करने पर छेड़छाड़ करने वाला व्यक्ति बदनामी के डर से कदम पीछे खींच लेगा। जबकि पैरेंट्स ऐसे मामलों में बच्चे को छेड़छाड़ करने वाले व्यक्ति से दूर रहने और जो हुआ उसे भूल जाने की सलाह देते हैं।

छेड़छाड़ करने वाला सगा होने की वजह से संबंध बिगड़ेंगे और घर के अन्य लोगों को पता चल गया तो बात का बतंगड़ बनेगा, इस डर से लोग कुछ कहते नहीं हैं। पैरेंट्स का यह व्यवहार बच्चे के दिमाग पर बुरा असर डालता है। बच्चे को अपने मां-बाप के ऊपर से विश्वास उठ जाता है। क्योंकि बच्चे को भरोसा होता है कि कमउम्र में अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार से पैरेंट्स उसे बचा लेंगे। अगर ऐसे समय में माता-पिता कुछ नहीं करते तो बच्चा निराश हो जाता है और उसका मां-बाप के ऊपर से भरोसा उठ जाता है।

बच्चे के बदले व्यवहार को समझें

अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे के साथ जो हो रहा होता है, बच्चा उस बारे में माता-पिता से कह नहीं पाता। पर उसके व्यवहार में यह बात आ जाती है। ऐसे व्यवहार के बाद बच्चा डरा-डरा रहने लगता है। उसका स्वभाव बदल जाता है। जो व्यक्ति बच्चे के साथ गलत व्यवहार कर रहा होता है, उसके पास जाने से डरता है। बच्चे के इस व्यवहार को पैरेंट्स को समझना चाहिए। टीनेज लड़की या लड़का है तो उसका भी व्यवहार बदल जाता है।

माता-पिता के रूप में अगर आप को अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव नजर आए तो उससे प्रेम से बात करके बदलाव की वजह जानने का प्रयत्न करेंगे तो निश्चित वह बता देगा। माता-पिता को अपने बच्चों को इस बारे में समझाना भी चाहिए। उसे समझा कर कहना चाहिए कि अपने घर का भी कोई व्यक्ति उसके साथ गलत व्यवहार कर रहा है तो वह निडर हो कर बताए। याद रखिए घरेलू छेड़छाड़ में बच्चे को अपने माता-पिता पर भरोसा होगा तो वह निश्चित उसके साथ क्या गलत हो रहा है, जरूर बताएगा। पर अगर उसे इस बात का डर हुआ कि मां-बाप उसे ही गलत समझेंगे तो वह नहीं बताएगा।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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वीरेंद्र बहादुर सिंह

लेखक एवं कवि

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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